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कभी नगरवधु, कभी हरम और अब शेल्टर होम, आज़ाद भारत में भी महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं?

कल जब हम लाल किले की प्राचीर से आज़ादी की 72 वीं वर्षगांठ मना रहे होंगे, तब हमारे सामने ये सवाल खड़ा ज़रूर होगा कि इस आज़ाद देश में हमारी आधी-आबादी यानी महिलाएं कितनी स्वतंत्र हुई हैं? हो सकता है मेरे इस सवाल से कुछ लोग इत्तेफाक ना रखे और कहें कि आज देश के रक्षा मंत्रालय से लेकर विदेश मंत्रालय तक कई राज्यों में मुख्यमत्री, लोकसभा स्पीकर तक और देश के अनेकों शीर्ष पदों पर महिलाएं विराजमान है तो भाई ओर कितनी स्वतंत्रता चाहिए?

किन्तु मेरे हिसाब से ये सिर्फ आत्ममुग्धता या दिल बहलाने वाला उत्तर होगा क्योंकि यदि सफलता या स्वतंत्रता मापने के यही पैमाने हैं तो दिल पर हाथ रखकर कितने लोग जवाब देंगे कि बारहवीं सदी में जब रज़िया सुल्तान दिल्ली की गद्दी पर बैठी थी तब क्या महिलाएं स्वतंत्र थी?

महिलाओं ने अब तक जो भी हासिल किया है वो स्वयं के अनुभव, आत्मविश्वास और मेहनत के आधार पर पाया है क्योंकि पुरुष समाज भी पितृसत्तातमक सोच के दायरे से बाहर नहीं निकला है। स्त्री को सिर्फ एक देह मानने की मानसिकता से क्या अब तक हम निकल पाये हैं? ये सवाल जब हम खुद से पूछेंगे तो निश्चित तौर पर हमें इसका जवाब मिल जायेगा।

दुनियाभर के संपन्न देशों में महिलाओं की स्थिति दर्शाने वाले एक शोध में भारत आखिरी पायदान पर खड़ा है। पर जब हम इस शोध पत्र को घूर कर देख रहे थे, इसे फर्ज़ी और बकवास भरा झूठा शोध पत्र बता रहे थे तब देश में बिहार के मुज़फ्फरपुर में बालिका गृह यौन उत्पीड़न कांड ने ना सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया था।

जब तक हम शर्म की चादर से इस मामले को पूरी तरह ढक भी नहीं पाए थे तब यूपी के चर्चित देवरिया शेल्टर होम का दूसरा मामला हमारे सामने खड़ा हो गया है। भले ही मामला अब CBI के हाथ में है लेकिन देश को महिलाओं के मामलों में जो ज़िल्लत उठानी पड़ी उसकी भरपाई भला महिला उत्थान के कुछ नारे लगा देने से कैसे होगी?

कुछ समय पहले तक हमारा देश अपराध को अपराध की नज़र से देखता था, आवाज़ उठाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सब अपनी राजनीतिक नफा-नुकसान के आधार पर तौलकर आवाज़ उठाते हैं। बाकी बचे देश के लोग तो ये प्राचीन रोमन साम्राज्य के ग्लैडीएटर हैं जो सोशल मीडिया के अखाड़े में उपस्थित होकर अपने-अपने राजनितिक आकाओं के लिए युद्ध करते हैं।

ऐसा नहीं है कि बिहार के मुज़फ्फरपुर या यूपी के देवरिया शेल्टर होम में पहली बार बच्चियों के यौन शोषण के मामले उजागर हुए जिससे हमारा नैतिकता का ग्राफ नीचे गिर गया इससे थोड़े समय पहले लखनऊ के एक मदरसे में भी यौन शोषण का मामला उजागर हुआ था। इससे पहले भी ना जाने राज्य वर राज्य कितने मामले अख़बारों के पन्नों में आँखों के सामने से गुज़र गये।

बहुत पहले जब मैंने आचार्य चतुरसेन शास्त्री द्वारा लिखित ऐतिहासिक गोली उपन्यास में राजस्थान के रजवाड़ों और उनके रंगमहलों की भीतरी ज़िंदगी, राजाओंं-महाराजाओं और उनकी दासियों के बीच वासना-व्यापार का बड़ा मार्मिक जीवन पढ़ा तो मैं सोचता था कितने बुरे राजा रहे होंगे। वासना में डूबे हुए उसी परिवेश की एक बदनसीब गोली की करुण-कथा, जो जीवन-भर राजा की वासना का शिकार बनती रही बाद में फेंक दी जाती या मार दी जाती थी।

लेकिन कहा जाता है जितना बड़ा देश है, उसका उतना ही बड़ा इतिहास होता है राजाओं के “रनिवास” मुगलों के ज़माने में “हरम” के बाद आज वर्तमान में राजनीति से जुड़ें लोग बालिका संरक्षण गृहों में यही काम कर रहे हैं तो आखिर बदला क्या है?

आखिर कहां खो गयी है मानवता? ये कौन सी प्रगति है और कौन सी स्वतंत्रता जहां मासूम बच्चियों की उन्मुक्तता सुरक्षित नहीं है? ये कौन सी प्रगति और विकास है जहां वो संरक्षण गृहों में सुरक्षित नहीं? उसका डर और ये ओछापन हमारे समाज से कैसे खतम होगा? कब तक इसे सिर्फ एक खिलौना समझा जाएगा जिससे जो चाहे खेल ले अपने हिसाब से, आखिर कब तक?

कभी नगरवधु के नाम पर तो कभी हरम की आग में वो जलती रही। एक किस्सा ये भी कहा जाता है कि खुदारोज के दिन अकबर अपनी प्रजा को बाध्य किया करता था कि एक आयोजन हो जिसमें प्रजा अपने घर की स्त्रियों को नग्न करके दरवाज़े पर खड़ा करे ताकि उन स्त्रियों में से सबसे सुन्दर स्त्रियों को अकबर अपने हरम के लिए चुन सके।

आज बालिका संरक्षण के नाम ब्रजेश ठाकुर जैसे लोग यही काम कर रहे हैं लेकिन ये बादशाह तो नहीं? फिर कार्रवाई में देरी क्यों? कठुआ गैंगरेप के बाद सब चाहते थे कि रेप की सज़ा फांसी हो, इसकी मांग गुंजने लगी थी इस गूंज की वजह से मोदी कैबिनेट ने यह तय भी किया है कि वो इस मसले पर लेकर नया कानून बनाएंगे, तो अब देरी क्यों?

महाभारत में जयध्रत वध के समय का एक प्रसंग है जब कृष्ण, अर्जुन से कहते हैं “देखते क्या हो पार्थ! अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है, वो रहा सूर्य, ये रहा जयध्रत बाण चलाओं।” मैं कोई कृष्ण तो नहीं लेकिन एक सामान्य नागरिक की हैसियत से  इतना तो कह ही सकता हूं कि हे महिला उत्थान चाहने वालों वो रहा कानून और ये रहा आपकी पकड़ में आरोपी ब्रजेश ठाकुर, तो मासूम बच्चियों को न्याय दो!

 

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