बिहार के मुज़फ्फरपुर के बालिका गृह में हुए यौन शोषण मामले में तीन महीने की लम्बी चुप्पी के बाद आखिरकार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस घटना को शर्मनाक बताया। राजधानी से सटे मुज़फ्फरपुर में इतने लम्बे समय तक इतना घिनौना कृत्य चलता रहा और नीतीश कुमार मामले के खुलासा होने के तीन महीने बाद भी चुप बैठे रहें।
जनता दल यूनाइटेड या भारतीय जनता पार्टी के एक भी बड़े नेता का बयान इस मामले में नहीं आया। संसद में भी केवल पप्पू यादव और जय प्रकाश नारायण यादव जैसे नेता ही इस घटना पर सवाल उठाते दिखें।
क्या सत्ता के प्रति ऐसी निष्ठा दिखानी ज़रूरी है कि आप अपने गृह राज्य में बहनों-बेटियों पर हो रहे निरंतर अत्याचार पर भी चुप रहें? साल भर पहले जो नीतीश कुमार अंतरात्मा की आवाज़ पर इस्तीफा देते और लेते थे, वो आज 40 के करीब बच्चियों की अंतरात्मा की आवाज़ सुन पाने में भी असमर्थ क्यों हैं?
ये व्यक्ति हमारा, आपका मुख्यमंत्री है? आपका 28 साल का नेता प्रतिपक्ष इस मामले को शुरू से ही उजागर करने में लगा रहा पर ये महोदय चुप्पी साधे रहें? नेता प्रतिपक्ष इनका ध्यान बारम्बार इस घटना की ओर ले जाना चाहता है पर ये ध्यान नहीं देते? क्यों? संसद में गृहमंत्री राजनाथ बाबू ने भी सीबीआई जांच के लिए हामी भरी और राज्य की अनुशंसा मांगी पर इन्होंने वो अनुशंसा करने में भी अनावश्यक देरी की, क्यों?
ब्रजेश ठाकुर की वो आइकॉनिक तस्वीर जिसमें वो हथकड़ी में भी ठहाका लगाते नज़र आ रहा है, आज बिहार में कानून व्यवस्था का मज़ाक उड़ाती हुई बस एक झलक है। इतना सबके बाद भी मुख्यमंत्री महोदय आपको तीन महीने लग गए शर्म आने में। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया जगत में आज बिहार का नाम नीतीश कुमार के कारण शर्म से झुक गया है।
क्या समय नहीं आ गया है कि अब नीतीश जी इस्तीफा दें और राजनीति से सन्यास ले लें? एक दौर था जब नीतीश जी सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते थे। पर आज क्या हालत है हम सब जानते हैं। बेली रोड (जवाहरलाल नेहरू पथ) पहली बारिश में ही टूट गया। जहानाबाद में, गया में बच्चियों और महिलाओं पर अत्याचार हुआ, इस पर भी मुख्यमंत्री चुप रहें। सृजन घोटाला पर भी महोदय चुप रहें।
हां पर इनसे लालू यादव, तेजस्वी या तेज प्रताप के बारे में सवाल करिये, फिर देखिये। हमारे मुख्यमंत्री तब खूब बोलेंगे। याद कीजिये जब ये मामला उजागर हुआ था तो अमित शाह (भाजपा अध्यक्ष) भी बिहार आये थे, शायद सीट बंटवारे की बात को लेकर, पर मजाल है कि उनके मुंह से एक भी लफ्ज़ निकल जाये। मुज़फ्फरपुर या जहानाबाद या गया की घटना को लेकर।
दरअसल, नीतीश कुमार जी को ये भ्रम हो गया है कि उनसे बेहतर कोई हो ही नहीं सकता। 2005 और 2010 की फसल आखिर कब तक काटेंगे नीतीश कुमार? आये दिन अखबार में जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता बयान देते हैं कि नीतीश कुमार बिहार की ज़रूरत हैं। ये घमंड नहीं तो और क्या है? केवल इसलिए कि नितीश कुमार ने एक-आध बार अच्छा काम कर दिया और इस तर्क पर जनता उनको बराबर चुनेगी, ऐसा विश्वास मन में बना लेना सिर्फ दुस्साहस है और साथ ही साथ बिहार की जनता का अपमान है।
अगस्त 2017 में जब नीतीश बाबू ने महागठबंधन में से खुद को अलग कर लिया तो ये ना सिर्फ कुर्सी और सत्ता के प्रति उनका मोह दिखाता है बल्कि बिहारी जनता के जनादेश का अपमान भी करता है। गठबंधन टूटे हुए ठीक से एक साल भी नहीं हुआ और राज्य में कानून व्यवस्था का ये हाल है।
कुर्सी के लिए शरद यादव को भी उन्होंने पार्टी से निकाल दिया। इसी कुर्सी के लिए कभी जीतन राम मांझी से भी उनकी तकरार हुई थी जो उसके बाद उन्होंने कई मंत्रियों के साथ हिंदुस्तान आवाम मोर्चा बना ली। ज़ाहिर है कि नीतीश कुमार की राजनीती में कुर्सी के अलावा किसी चीज़ की जगह नहीं है। आदर्शों की तो बिलकुल भी जगह नहीं थी कभी।
मुज़फ्फरपुर कांड में इनकी लम्बी चुप्पी देखने के बाद ऐसा लगता है, मानवता के लिए भी कोई जगह नीतीश बाबू की राजनीती में नहीं है। अब तो जवाब मिल गया होगा कि आखिर बेटियों की चीख में मौन क्यों बैठा रहा हमारा आदर्श मुख्यमंत्री?