डियर बाबू,
अभी जब कि तुम ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे हो और शब्दों को बोलना सीख रहे हो मैं तुम्हारे लिए एक ऐसा किताब खरीद लाया हूं जिसे शायद तुम तब समझ पाओगे जब तुम 14-15 साल के हो जाओ। शायद जब तुम बोलना सीख जाओ तो तुम हमसे पूछोगे कि जब हमें खिलौने चाहिए थे तब आप किताबे क्यों ला रहे थे?
तो सुनो, आज-कल के सामाजिक और राजनैतिक हालातों को देख कर मैं डरने लगा हूं। जब तुम बड़े हो जाओगे और घर से बाहर जाओगे तो तुम्हारे सामने एक अलग ही दुनिया होगी जहां पर कुछ लोग तुम्हें तमाम तरीकों से बरगलाने का प्रयास करेंगे और तुम्हारे भीतर जाति, धर्म, सम्प्रदाय, देश(और भी न जाने किन-किन आधारों पर) के आधार पर “ज़हर” भरने का प्रयास करेंगे। वो ऐसा करेंगे ताकि उन लोगों की संकीर्ण राजनीतिक महत्वकांक्षा की पूर्ति हो सके और तुम उन लोगों के लिए एक साधन बन सको। जबकि ये सारी चिज़ें मानवता के लिए और व्यक्तिगत तुम्हारे लिए भी बेहद ही खतरनाक हैं।
इसलिए अपने डर को कम करने के लिए मैं जहां भी जाता हूं मेरी नज़र उन चिज़ों को ढूंढती रहती हैं जिससे आसान से आसान माध्यमों के द्वारा तुम अपने देश को, इसकी विविधताओं को और भारतीय संस्कृति को(जो आज से पूर्व वैदिक काल तक जाती हैं) ठीक-ठीक समझ सको। ये देख पाओ कि जब हमारे पास संसाधनों की मात्रा सीमित थी या यूं कह लो कि भारत में जब मनुष्य संगठित हो कर रहना सीख ही रहे थे तब भी वो एक दूसरे की विविधताओं को स्वीकार करके उनका सम्मान करते थे।
तुम देख पाओ कि जब उत्तर वैदिक काल के समय भारत में जाति और धर्म अपने आज के स्वरूप में आ रहे थे उस समय भी हमारे यहां एक साथ कई धाराएं चल रही थी जिसमें जैन, बौध और सनातन प्रमुख रही। इनमें आपस में कहीं कोई विवाद नहीं रहा और सभी एक दूसरे का सम्मान करते हुए एक साथ रहे।
ईसा के जन्म से उसके बाद अनेको शासक हुए जो कि अलग-अलग वंश और स्थान से थे जिनकी धार्मिक मान्यताएं मुख्यत: अलग-अलग ही रहीं जिसमें युनानी हिन्दु, हुण, शाक्य, चोल, मौर्य, गुप्त, मुगल और भी अनेको लेकिन ये कभी भी धार्मिक आधार पर नहीं लड़े ये ज़्यादातर सिर्फ आर्थिक साधनों पर अधिकार और राज्य के प्रसार के लिए ही लड़े
यहां तक की हमारे महान स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई जो कि 1857 ई से आरम्भ होती हैं उसमें भी सभी वर्गों के लोग एक साथ लड़ें। जबकि भारत में उस समय भयंकर गरीबी और निरक्षरता थी। लेकिन इसी दौर में तुम यह भी देखोगे कि 19 वीं सदी आते-आते कुछ लोग धार्मिक आधार पर हमारे समाज को बांटने लगे थे जिसकी परिणीति भारत पाकिस्तान बंटवारा हैं। इसके बावजूद भी उस दौर के हमारे नेताओं ने भारत की विविधताओं को बरकरार रखा और सभी की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए सभी धर्मों मज़हबों को समान मानते हुए भारत में एक धर्मनिरपेक्ष संविधान का राज स्थापित किया।
लेकिन हमारे आज के दौर में कुछ लोग अपनी सीमित स्वार्थ के लिए हमारे इतिहास को बहुत ही गलत तरीके से तोड़-मरोड़ कर समाज में वैमनस्यता फैला कर भारत की महान विविधताओं को खत्म करने पर तुले हुए हैं। समाज को लगातार साम्प्रदायिक बना रहे हैं। मैं तुम्हारे लिए इसी साम्प्रदायिकता से डरकर उन किताबों को ढूंढने लगता हूं जो तुम्हें आसान भाषा में भारतीय संस्कृति, सभ्यता और इसके विकास को समझा सकें। इससे शायद तुम एक बेहतर भारतीय बन सको और अपने समय के इन तमाम ताकतों से लड़कर समाज, देश के लिए कुछ कर सको जिससे तुम्हारे इस प्यारे से मुस्कुराते चेहरे के साथ-साथ और भी चेहरे मुस्कुरा सकें।
उम्मीद है कि तुम एक दिन हमारे इस डर को समझ सकोगे और इस छोटी सी उम्र में खिलौने की जगह किताबों से लादने के लिए हमें माफ करोगे।
बहुत सारे प्यार के साथ तुम्हारे ताता (चाचा)