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मेरी बेटी सांवली और खूबसूरत है लेकिन समाज को उसका रंग गंदा क्यों लगता है?

मुझे काला रंग बहुत पसंद है। मैं किसी भी दिन, गहरी रात के रंग को दिन के चटख चमकीले सूरज से ज़्यादा तवज्जो दूंगी। मुझे हमेशा से ही हलके रंगों के मुकाबले गहरे रंग पसंद रहे हैं। मेरे लिए और मेरे करीबी लोगों के लिए त्वचा का सांवलापन कभी कोई परेशानी नहीं रहा। बल्कि ये एक चीज़ ऐसी थी जो मेरे दिल की धड़कने बढ़ा देती।

इसमें मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता कि मुझे ऐसे ही एक गहरे रंग के सांवले पुरुष से प्रेम हुआ। सभी नए प्रेमियों की तरह मुझे भी शुरुआती दिनों में वो सुन्दर सांवला युवक प्रेम की आभा में चमकता हुआ दिखाई देता। मेरा ह्रदय, उसके गहरे रंग में हज़ारों चमकते सूरज की सुन्दरता को महसूस करता।

जब मैंने पहली बार मेरी बेटी को अपने हाथों में लिया, तो मुझे एक नयी माँ बनने के गर्व का एहसास हुआ। वो बहुत छोटी और सुन्दर थी। उसका रंग भी मेरे सुन्दर पति की तरह गहरा सांवला था।

लेकिन फिर भी यह दुनिया मुझे उसके जन्म लेने के बाद एक करारे थप्पड़ की तरह लगी। मेरी माँ ने मेरी बेटी को पहली बार उनके हाथों में लेने के बाद जो कहा वो मेरी उम्मीदों से परे और बेहद दिल दुखाने वाला था, उन्होंने कहा-“तुम्हे इसके लिए एक लायक दूल्हा तलाशने के लिए काफी मेहनत करनी होगी।मैं मेरे लिए सबसे बेशकीमती मेरी बेटी को उनके हाथों से छीन लेना चाहती थी, दुनिया के एक ऐसे रूप से जो असंवेदनशील है और जिसके साथ उसे अपनी पूरी ज़िंदगी रहना होगा।

जब वो बड़ी हो रही थी तो मुझे उस नस्लभेद(रेसिस्म) की झलक देखने की मिली, जिसका हम भारतीय रोज़ाना अनुसरण करते हैं। त्वचा के गहरे रंग और सांवलेपन को गन्दगी से जोड़ कर देखा जाना काफी आम है। बच्चें जिनकी असंवेदनशीलता को मासूमियत का नाम दे दिया जाता है, मेरी सुन्दर सी बच्ची को हर रोज़ “गन्दी लड़की” कहकर बुलाते। इन्हीं सब कारणों से उसे आसानी से नए दोस्त बनाने में काफी दिक्कतें होती थी, क्यूंकि उसे ‘प्यारी’ नहीं समझा जाता था, इसलिए वो दोस्ती के लायक नहीं थी।

उसे जितने भी टी.वी. सीरियल्स देखने पसंद थे, उन सभी में बार-बार गहरे रंग के लोगों को या तो नकारात्मक किरदारों में दिखाया जाता या फिर उन्हें मज़ाक का पात्र बनाया जाता। मैं उसे कभी-कभी छोटा भीम देखने के लिए ज़रूर छोड़ती ताकि किसी भी अन्य माँ की तरह मैं भी दिनभर की थकान मिटाने के लिए एक छोटी सी नींद ले सकूं।

लेकिन उसमें दिखाई जाने वाली हिंसा (जो उसे अपने खिलाफ लगती) मुझे बेहद परेशान करती। इसमें दिखाई जाने वाली छोटी सी बच्ची जिसके गाल गुलाबी दिखाए जाते हैं और जो मुख्य किरदार की सहायक है (उस हिंसा के अलावा जिसमें मुस्लिमों को नकारात्मक किरदार में और हिन्दुओं को अबसे बेहतर और प्रेम का पात्र दिखाया जाता है) के बारे में सोच कर मुझे कभी-कभी रातों को नींद नहीं आ पाती है। इससे जो सन्देश उसे मिलता है कि लड़कियों की भूमिका केवल एक सहायक की ही है, और उनके लिए सुन्दर दिखना ज़रूरी है, और सुन्दरता का अर्थ है गोरे चेहरे पर गुलाबी गालों का होना।

मैं शिद्दत से दुआ करती हूं कि कोई ऐसा एनिमेटर भी सामने आए और सांवली और गहरे रंग की किसी लड़की की रोचक कहानियां सुनाए। और मुझे अब भी किसी ऐसे इंसान के सामने आने का इंतज़ार है।

मुझे पता है कि इस स्थिति को क्या कहा जाता है। भारत में अभी भी हमें लगता है कि हम वो नहीं हैं, हम इन सब से ऊपर हैं। हम रंगभेद की समस्या के नाम पर दक्षिण अफ्रीका की तरफ देखते हैं, जी हां हम बिलकुल यही हैं। नस्लवादी!

मुझे ये भी लगता है कि यह हमारे देसी पूर्वाग्रहों के साथ मिलकर और अधिक उलझ गया है। उत्तर भारत के लोगों का दक्षिण भारतीय लोगों को देखने का नज़रिया, और सवर्णों का निचली जाति के लोगों को देखने का तरीका जिनकी पहचान उनके गहरे रंग से जोड़कर देखी जाती है। मेरी छोटी सी बेटी के साथ लगातार प्रयोग किये जाने वाले शब्द “गन्दी” से साफ हो जाता है जाति के साथ किस तरह के पूर्वाग्रह और गलत किस्म की भावनाएं जुड़ी हुई हैं।

जब मैं यह लेख लिख रही हूं तो मेरी प्रिय बेटी मेरे साथ मेरे करीब है। मैं मेरी भावनाओं को इस शब्दों के ज़रिये आपके कंप्यूटरों की स्क्रीन तक पहुंचा रही हूं। मुझे उम्मीद है कि इसे पढ़ने के बाद आप कल मेरी बेटी को भी उसी तरह से गले लगेंगे जैसे किसी भी अन्य बच्चे को लगाते हैं। आप देख पाएंगे कि एक गहरे रंग का सांवला बच्चा किसी भी अन्य बच्चे की तरह सामान रूप से रोचक हो सकता है।

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