कभी-कभी कुछ लोग, कुछ घटनाएं देश के पूरे इतिहास को बदल देती हैं। ‘आज़ादी के बाद भारत’ पर एक बहुत लोकप्रिय किताब है “India after Gandhi” जिसे लिखा है रामचंद्र गुहा ने। इस किताब के तीन शब्दों के टाइटल ने गांधी के योगदान को इतना बखूबी बयान कर दिया जितना गांधी जी के ऊपर लिखीं ढेरों किताबें ना कर पाईं।
मैं सोचता हूं कि पीटर स्ट्रॉस जिन्होंने गुहा को यह किताब लिखने के लिए उकसाया, ने उनसे नेपाल के इतिहास पर किताब लिखने को कहा होता तो गुहा “Nepal After Democracy” को आखिर क्या लिखते। 2015 से पहले नेपाल के इतिहास में बहुत सी रिमार्केबल घटनाएं घटीं और बहुत से लोग भी हुए लेकिन इन किसी भी घटना या आदमी को कोई महान टाइटल मिलने की उम्मीद कम है। हां 2015 की एक घटना ने नेपाल को जितना बदला है या यूं कहें कि जितना बदलेगा का आकलन कोई इतिहासकार करे तो नाम “Nepal After Blockade” रख सकता है।
Blockade क्या था और इसका नेपाल और भारत पर क्या प्रभाव पड़ा या आने वाले समय में पड़ता रहेगा, इसे समझने के लिए पहले नेपाल को समझते हैं।
हिमाली-पहाड़ी-तराई में बंटा नेपाल:
नेपाल एक लैंड-लॉक्ड देश है माने इस देश से सटा कोई समुन्दर नहीं है जिस से वो दुनिया के बाकी देशों से समुद्री रास्तों से जुड़ पाए, व्यापार कर पाए। सीधे यह मात्र दो देश यानी एक हम, एक चीन के साथ ही बॉर्डर शेयर करता है। उसमें भी चीन के साथ यह हिमालय वाले रीजन से जुड़ा है जो हिमाली रीजन है, इस से ठीक नीचे पहाड़ी रीजन है। हिमाली और पहाड़ी के दुर्गम होने की वजह से चीन आना-जाना और बिजनेस मुश्किल है, इसके उलट भारत के 5 राज्यों की सीमायें नेपाल से मिलती हैं और आवा-गमन आसान है।
ज़ाहिर है अधिकतर चीज़ों के लिए यह भारत पर ही निर्भर करता है। इसके साथ ही तराई इलाके यानी भारत से सटे इलाकों की बोली, पहनावा, संस्कृति, खान-पान सब कुछ यूपी, बिहार वाला है। यही वजह है कि हमारी शादियां और रिश्तेदारियां भी खूब होती हैं। इसीलिए तो नेपाल और हमारा रिश्ता रोटी-बेटी का माना जाता है।
लेकिन यही रिश्ता जिसे हम फक्र से बताते हैं, नेपाली “एलीट्स” को खटकता भी है और उन्हें नेपाल के लिए खतरा लगता है और इसी “हवा-हवाई” खतरे से निपटने के लिए इन लोगों ने नेपाल का जो खांका तैयार किया उसने नेपाल के इतिहास के काले दिनों में से एक “Blockade” की नींव रखी।
नेपाल की ‘एलिट’ नेतागिरी:
नेपाल से राजशाही पूरी तरह से मात्र 10 साल पहले ही हटा है पर लोकतंत्र आने के बाद भी वहां सत्ता के संघर्ष में जो उठापटक और जोड़-घटाना हुआ उसे देख के भारत की राजनीति शरमा जाए। पिछले 10 साल में नेपाल ने 10 बार प्रधानमंत्री बदले हैं, अभी वाले ओली जी क्रम में ग्यारह पर हैं और ये दूसरी बार है जब वो प्रधानमंत्री बने हैं। गठबंधन की बात करें तो हमारे यहां बीजेपी-पीडीपी गठबंधन या नितीश-बीजेपी गठबंधन नेपाल के नेताओं और पार्टियों को कम्पटीशन दे सकते हैं पर “वो” बात नहीं है।
इसका जो सबसे दुखद पहलु है वो ये कि हम-नेता-हम-नेता का सबसे बड़ा खामियाज़ा जनजातियों को उठाना पड़ा है जिनका रीप्रेज़ेंटेशन ही नहीं हुआ है और वो लोकतंत्र आने के बाद भी हाशिये पर ही रहे। सत्ता में उच्चवर्ग ही हावी रहा है, जो अभी हाल-फिलहाल अपनी गद्दी छोड़ता तो नहीं दिख रहा है। उन्हें ही मैं “एलीट्स” कहके संबोधित कर रहा हूं। एलीट्स को लगता है कि भारत से सटे इलाके में रहने वाले लोग, समूह में होने पर उन्हें चुनौती दे सकते हैं और सत्ता की चाबी ऊपर वाले लोगों से नीचे वाले लोगों के पास आ सकती है।
इसीलिए जब 2015 में नेपाल का नया संविधान बना तो उसमें प्रान्तों का बंटवारा भाषा-बोली-जनजातियों के समूह के आधार पर नहीं हुआ और हाशिये पर रहे लोगों के हाथ फिर से कुछ नहीं आया।
“The Blockade”:
नए संविधान के आने के बाद ‘तराई’ वाले लोग जिन्हें “मधेश” कहते हैं, उन्होंने अपने अधिकारों के लिए विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिए। इसमें 40 से ऊपर लोग मारे गए और हालात नाज़ुक हो गए। भारत ने भी इस संविधान के कुछ हिस्सों पर अपनी आपत्ति जताई जो कि अनुचित कतई नहीं थी। रिश्तेदारी-नातेदारी से जुड़े हुए हम सीधे प्रभावित होने वाले थे ऐसे में “तुम कुछ भी करो, हमसे क्या” वाली नीति तो हम नहीं अपना सकते थे।
इसी बीच मधेशी लोगों ने भारत से नेपाल जाने वाले ट्रकों को रोकना शुरू कर दिया और फिर ऐसा लगातार 135 दिन तक चला जिसे “Blockade” कहा गया। अपने व्यापार के लिए भारत पर आश्रित यह देश पूरी तरह से टूटने लगा। गैस के दाम दस-दस हजार तक चले गए।उस समय यही ओली जी प्रधानमंत्री थे और इस समस्या को एड्रेस करने की बजाय उन्होंने विक्टिम कार्ड खेल दिया जिसे मैं कहूंगा की नेपाल की राजनीति में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए अपना मास्टर कार्ड खेल दिया।
उन्होंने शुरू में तो सिर्फ “Blockade” के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराना शुरू किया लेकिन बाद में आंख मूंद कर हर छोटी-बड़ी चीज़ के लिए भारत को दोष देना शुरू किया ना कि “Blockade” हटवाने के लिए कोई ठोस प्रयास किये।
जब हमारे यहां विरोध-प्रदर्शनों में सड़क जाम होता है तो विरोध कर रहे लोग और सड़क जाम से त्रस्त लोग प्रशासन की तरफ देखते हैं कि वो जाम खुलवाएं। सोचिए अगर प्रशासन लोगों की समस्या को एड्रेस करके जाम खुलवाने की बजाय यह कहना शुरू कर दे कि यह जाम अमुक ने किया है, वो जाम खुलवाए तो यह तार्किक और एथिकल कैसे है?
इस “Blockade” में भारत की भूमिका डिबेटेबल है पर प्रधानमंत्री रहते हुए ओली जी ने राजनैतिक फायदे के लिए आंखे बंद रखी और भारत पर ज़ुबानी हमले चालू रखे। चूंकि टारगेट बड़ा था, और खेल सारा सेंटिमेंट और परसेप्शन का था, परिणाम ओली जी के लिए सकारात्मक रहा। एक आम नेपाली जो महंगे होते सामानों से त्रस्त था, उसने अपने प्रतिनिधि से सवाल के बजाय भारत को कोसना शुरू कर दिया।
और उठी भारत विरोधी लहर:
इसका खामियाज़ा भारत के आम लोगों को उठाना पड़ा, कई लोग जो “Blockade” के बाद नेपाल गए उन्हें डिसक्रिमिनेशन का सामना करना पड़ा। इसके राजनैतिक फायदे नेपाल में शानदार रहे और ओली हाल के हुए चुनाव के बाद फिर से प्रधानमंत्री बने।
प्रधानमंत्री बनने के बाद ओली ने कहा कि वो भारत के साथ संबंधों में और अधिक लाभ उठाने के लिए चीन के साथ अपने रिश्तों को और गहरा बनाना चाहते हैं। चूंकि नेपाल की भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि रेल लाइन बिछ जाने के बाद भी चीन के साथ ट्रेड कभी सुगम और सस्ता नहीं हो पायेगा, नेपाल को भारत की तरफ ही देखना होगा और ओली इस बात को समझते हैं पर राजनीति जो न कराये।
भारत विरोधी फार्मूला ओली के लिए इतना कारगर निकला था कि इसे बाद में छोटी-बड़ी हर पार्टी ने अपनाकर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खीचा। उदाहरण के तौर पर जब हाल में ही मोदी नेपाल गए तो भारत के करीबी कहे जाने वाली पार्टी नेपाली कांग्रेस ने इसी फार्मूला को अपनाया और ओली से बड़ा भारत विरोधी दिखाने की कोशिश की। सोशल मीडिया पर ट्रेंड से लेकर ज़मीनी विरोध प्रदर्शन तक की कोशिश की गयी ताकि लोगों के सेंटिमेंट को भुनाया जा सके।
नज़रिया:
लगातार भारत को भारत के नौकरशाह और सत्ताधारियों के ज़रिये देखने की कोशिश कर रहे ओली या वहां की अन्य पार्टियों के नेता देश में रह रहे लोगों पर इसके पड़ने वाले इफ़ेक्ट से अनजान हैं या बनने की कोशिश कर रहे हैं। नेपाल में जिस तरह का भारत विरोधी सेंटिमेंट जन्म ले चुका है और उसका असर भारत और नेपाल के आम लोगों पर पड़ रहा है वो खतरनाक है।
इसके अलावा भारत को चीन का डर दिखा कर लाभ लेने का जो खेल अब शुरू हुआ है वो यहां के हुक्मरानों को कितना चिंतित करेगा ये अलग सवाल है लेकिन उसने यहां के आम लोगों के बीच नेपाल की छवि को नुकसान पहुंचा दिया तो उसकी भरपाई शायद संभव ही ना हो