मौजूदा सरकार ने हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था को खस्ताहाल करने की जैसे कसम ही खा ली है। सबसे पहले शिक्षा के बजट में कटौती करके देश की शिक्षण संस्थानों को कमज़ोर किया। 2014 में मोदी जी ने जीडीपी का 6% शिक्षा पर खर्च करने का वादा किया था, लेकिन सरकार बनते ही जो 3 .1 % शिक्षा पर खर्च हो रहा था (पिछली सरकार में) उसको भी घटाकर 2015-16 में 2.4% कर दिया गया।
उसके बाद जिस भी यूनिवर्सिटी से सरकार के विरोध में आवाज़ उठ रही थी उन शिक्षण संस्थानों को कमज़ोर करने की कोशिश की गई। चाहे वो हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या के आरोपियों को बचाना हो या फिर JNU के छात्रों पर झूठे देशद्रोह के मुकदमे लगाने हो, मौजूदा सरकार शिक्षण व्यवस्था पर हमला करती रही है।
ऑटोनोमी के नाम पर शिक्षण संस्थानों को निजीकरण के दल-दल में धकेलने का काम भी इसी सरकार ने किया है।
अभी पिछले ही दिनों UGC को खत्म करके HECI के नाम पर शिक्षण संस्थानों में सरकार की दखलअंदाजी को और बढ़ावा दिया जा रहा है।
कल यानि 9 जुलाई 2018 की खबर ने मेरा इस सरकार से पूरी तरह से विश्वास ही उठा दिया है। आपको याद होगा हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने 17 अक्टूबर 2017 को पटना में अपने भाषण में इस देश के 20 शिक्षण संस्थानों (10 प्राइवेट और 10 पब्लिक) को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस घोषित करने का वादा किया था, जिसके तहत हर एक शिक्षण संस्थान को 1000 करोड़ की सरकारी मदद मुहैया कराई जानी थी।
इंस्टीट्यूट के चयन के लिए देश के पूर्व मुख्य चुनाव अधिकारी एन गोपालस्वामी की अध्यक्षता में इम्पावरमेंट एक्सपर्ट समिति का गठन हुआ। 9 जुलाई 2018 को कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर शिक्षण संस्थानों की घोषणा हुई तो सबको इन्तज़ार था कि देश के 20 शिक्षण संस्थानों को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस का दर्जा मिलेगा लेकिन हुआ कुछ उलट ही। कमेटी ने सिर्फ 6 नामों की घोषणा की जिसमें 3 पब्लिक और 3 प्राइवेट संस्थान थे।
कमेटी के अध्यक्ष ने कहा,
ईईसी ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है। हमें आईओई के तहत 10 सार्वजनिक और 10 निजी संस्थानों का चयन करने के लिए कहा गया था, लेकिन हमें 20 संस्थान नहीं मिले।
यानि देश के विकास में JNU और TISS जैसे शिक्षण संस्थानों का कोई योगदान ही नहीं है ?
खैर, कम संस्थानों की हुई घोषणा से ज़्यादा चौंकाने वाली चीज़ थी संस्थानों के नाम। पब्लिक संस्थानों में IIT दिल्ली और मुंबई के अलावा IISc बेंगलुरु को जगह दी गयी जो किसी हद तक यह सम्मान पाने के हकदार हैं, लेकिन प्राइवेट संस्थानों में जगह पाने वाले नाम है मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, बिट्स पिलानी और जियो इंस्टीट्यूट-रिलायंस फाउंडेशन।
सरकार के द्वारा जारी NIRF (राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क) में IIT मद्रास दूसरे स्थान पर IIT खड़गपुर पांचवें स्थान पर है, JNU छठे स्थान पर है और IIT कानपूर सातवें स्थान पर है, जो इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस की सूची में नहीं है।
मनीपाल को NIRF द्वारा भारत में 18 वें स्थान पर रखा गया था और बीआईटीएस (BITS) पिलानी 26 वां स्थान पर था जिनको इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस की सूची में रखा गया है और हद यह है के जिओ इंस्टीट्यूट का नाम NIRF में था ही नहीं।
शायद ही आप में से किसी ने जिओ इंस्टीट्यूट का नाम आज से पहले सुना हो, यहां तक कि गूगल पर भी जिओ इंस्टीट्यूट को ढूंढने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
चाहे बिट्स पिलानी हो या जिओ इंस्टीट्यूट दोनों शिक्षण संस्थान देश के बड़े व्यापारी घराने चलाते हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या इन संस्थानों का चयन कॉर्पोरेट के दवाब में हुआ है?
वैसे भी मोदी जी की अंबानी परिवार से निकटता जग जाहिर है, शायद इसी बात का फायदा जिओ इंस्टीट्यूट को मिला है तभी तो शायद जिस कमेटी को देश में 20 शिक्षण संस्थान चुनने थे वो सिर्फ 6 चुन पाती है और तर्क यह दिया जाता है कि ऐसे संस्थान देश में मिले नहीं। लेकिन वही कमेटी को एक ऐसा संस्थान मिल जाता है जिसका नाम देश के नागरिकों ने इससे पहले कभी नहीं सुना था और सरकार की NIRF रैंकिंग में उस इंस्टीट्यूट का नाम नदारद था।
एक बात और जो गौर करने वाली है वो यह कि कमेटी के अध्यक्ष पूर्व मुख्य चुनाव अधिकारी होने के साथ-साथ आरएसएस की विवेकानंद एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि आखिर JIO जैसे शिक्षण संस्थानों को आखिर किसके दबाब में प्रतिष्ठित लिस्ट में शामिल किया गया है।