लेखक- गौरव शर्मा
14 वर्ष की बेबी का परिवार साल 2010 में बिहार के छोटे से गांव हसनपुरा से काम की तलाश में दिल्ली (भलस्वा डेरी) आ गया था। जब बेबी के पिता (मोहम्मद फ़िरोज) दिल्ली आएं तब बेबी छह वर्ष की थी। बेबी के पिता के साथ उनका परिवार जिसमें दो बच्चे और बेबी के दादा-दादी भी उनके साथ चले आएं।
दिल्ली आने पर शुरुआत में उन्हें अपने रिश्तेदार के घर में रहना पड़ा। कई जगह काम तलाश करने के बाद बड़ी मुश्किल से बेबी के पिता को एक गोदाम में कबाड़ा छाटने का काम मिला। दिनभर मेहनत करने के बाद उन्हें कही जाकर 120 रूपए मिलते थे। जिससे बेबी के पिता जैसे-तैसे अपने परिवार का गुज़ारा चलाते। परिवार बड़ा होने के कारण बेबी की माता (दिननाज़ ख़ातून) को भी काम करना पड़ा (घरों में बर्तन कपड़े धोने का)।
बेबी चिंतन पाठशाला में पढ़ती थी। एक दिन जब बेबी अपने स्कूल से घर आ रही थी तब राह चलते कुछ लड़कों ने बेबी पर कमेंट पास किया। बेबी ने उनकी बात को सुनकर अनसुना कर दिया। बेबी ने उसके साथ हुई अब तक सारी घटना ‘चिंतन’ की शिक्षिका को बताई। शिक्षिका ने उसकी बात सुनी और उससे पूछा तुम क्या चाहती हो ऐसा ही चले या इस समस्या का कोई हल चाहती हो?
बेबी ने शिक्षिका को जवाब दिया कि वो अपनी कमज़ोरी को अपनी ताकत बनाना चाहती है। एक दिन ‘चिंतन’ संस्था में ‘उम्मीद की किरण’ द्वारा कार्यशाला हुई, जिसमें उसे आत्मरक्षा की जानकारी मिली। ‘उम्मीद की किरण’ कार्यशाला जैसे बेबी की ज़िन्दगी में एक नई उम्मीद बन गयी।
धीरे-धीरे बेबी ने चिंतन शिक्षिका की मदद से इन्टरनेट द्वारा जूडो कराटे सीखना शुरू कर दिया। अब बेबी कम-से-कम इतना सीख चुकी थी कि वह इस तरह की मुसीबत का आसानी से सामना कर सकती थी।
एक दिन जब बेबी विद्यालय से ऑटो से घर आ रही थी तभी ऑटो ड्राईवर उसे गलत रास्ते पर ले जाने लगा। ऑटो ड्राईवर द्वारा उनकी बात ना मानने पर बेबी और बेबी की दोस्त चलती गाड़ी से कूद गईं। जब ये बात बेबी की दोस्त के अभिभावक को पता चली तो उन्होंने बेबी को उसकी बहादुरी के लिए इनाम दिया।
फिर एक दिन बेबी जब बाज़ार जा रही तभी बाज़ार में कुछ लड़कों ने बदमाशी की। बेबी ने बाज़ार में उन लड़कों को मुहतोड़ जवाब दिया। बेबी की बात सुनकर आस-पास भीड़ इकठ्ठा हो गयी और उन्होंने लड़कों को पकड़कर ना सिर्फ उनकी पिटाई की बल्कि उन लड़कों को उनके माता-पिता के हवाले करते हुए चेताया भी कि अगली बार इस तरह की गलती उनके बच्चे दोबरा करते हुए पाए गए तो उनके बच्चों को पुलिस के हवाले कर देंगे। इस घटना से बेबी अपनी बस्ती में मशहूर हो गयी। कई ऐसी लडकियां जो स्कूल नहीं जाती थीं, उन्होंने चिंतन पाठशाला में आना और विद्यालय जाना शुरू कर दिया।
आज बेबी ‘चिंतन’ की अन्य लडकियों को समय-समय पर आत्मरक्षा की ट्रेनिंग और जूडो कराटे भी सिखाती हैं। बेबी के माता-पिता जो इस उम्मीद से आए थे कि कुछ समय बाद वो अपने-अपने गांव वापस चले जाएंगे अब वो बेबी को देखकर बहुत खुश हैं। अब वो दिल्ली में रहकर अपने बच्चों को पूरी शिक्षा दिलवाएंगे। उनका सपना है बेबी बड़े होकर पुलिस की नौकरी करे और बच्चों और महिलाओं पर होते आत्याचार को रोके।
(नोट- गौरव शर्मा चिंतन के ‘नो चाइल्ड इन ट्रैश’ प्रोग्राम में फील्ड कोऑर्डिनेटर का कार्य संभालते हैं।)