मुझे याद है मेरा हबीब तनवीर से परिचय कैसे हुआ था। जब मैं लगभग 6 या 7 साल का था तब दूरदर्शन पर ‘गांधी’ फिल्म आ रही थी। जब भी मैं अपनी अम्मा के साथ पुरानी फिल्में देखता हूं, वो मुझे उसके सारे कलाकारों के नाम बताते जाती हैं। एक सीन में जहां जनरल डायर पर जलियांवाला बाग में गोलियां चलाने पर कमिटी बैठी हुई थी और उसी कमिटी में एक भारतीय भी था। हाथ में सिगार, निहायत ही खूबसूरत व्यक्तित्व और आवाज़ में अलग ही कशिश।
तब अम्मा ने मुझे बताया कि ये हबीब तनवीर हैं, बहुत मशहूर थिएटर आर्टिस्ट। बस इतनी ही जानकारी अम्मा के पास भी रही होगी, नहीं तो वो और भी कहानी सुनातीं। खैर, उसके बाद मैंने हबीब तनवीर की फिल्म लम्बे अरसे तक नहीं देखी और कहीं ना कहीं उनके व्यक्तित्व का असर मेरे ऊपर से कम होने लगा। इस बात के लगभग 9 से 10 साल के बाद मेरे हाथों में एक नाटक लगी जिसका नाम था ‘चरणदास चोर’ और लेखक थे ‘हबीब तनवीर’। उस नाटक को पढ़ने के बाद हबीब तनवीर को और जानने की इच्छा जागी और उसके बाद मैंने उनके बारे में पढ़ना शुरू किया। उनके जीवन का एक सबसे मज़ेदार और सबसे महत्वपूर्ण किस्सा आज मैं आप लोगों के साथ बांट रहा हूं कि कैसे हबीब तनवीर हीरो बनते-बनते एक्टर बन गए।
हबीब तनवीर खूबसूरत तो थे ही और जब भी आईने में खुद को देखते होंगे उन्हें खुद में हीरो की झलक दिखाई देती होगी। इसीलिए हबीब तनवीर हीरो बनने बम्बई पहुंच गए। उनके मन में उस वक्त थिएटर का शौक नहीं था और प्रतिरोध के थिएटर का तो बिल्कुल भी नहीं। बड़ी बड़ी ज़ुल्फें रखकर हबीब तनवीर जब बम्बई पहुंचे तब वो एक्टिंग सीखना चाहते थे। इसलिए वो बम्बई इप्टा पहुंचे। उस दौरान बम्बई इप्टा में सीनियर के तौर पर बलराज साहनी नेतृत्व कर रहे थे।
जब हबीब तनवीर इप्टा पहुंचे, उनकी उम्र यही कोई 16 साल के आस-पास थी। बलराज साहनी उस समय एक नाटक का निर्देशन कर रहे थे और उन्होंने हबीब तनवीर को एक 60 साल के बूढ़े का रोल दिया। अब भाई उनकी उम्र 16 और रोल मिला 60 साल का तो लाज़मी है कि हबीब तनवीर को अभिनय करने में दिक्कत हो रही थी। लेकिन बलराज साहनी उनकी लगातार मदद कर रहे थे। एक सीन में उस बूढ़े का बेटा मारा जाता है और उसे देखकर हबीब तनवीर को रोना था।
अब मामला फंस गया, हबीब तनवीर कोशिश करते जा रहे थे लेकिन वो रो ही नहीं पा रहे थे। ऐसे मामलों में निर्देशक आगे बढ़ जाता है और कहता है कि कल तैयारी करके आना। लेकिन उस दिन बलराज साहनी भी अड़ गए कि रोओगे कैसे नहीं? आज जब तक ये सीन आगे पूरा नहीं होगा और अच्छे से पूरा नहीं होगा तब तक रिहर्सल आगे नहीं बढ़ेगा। अब पूरी टीम सिर्फ हबीब तनवीर को देख रही थी। ऐसे में हबीब साहब और घबरा गए और परेशान होकर कुछ भी ऊल जलूल करने लग गए।
काफी देर सब्र करने के बाद बलराज साहनी को गुस्सा आया और उन्होंने कुर्सी से उठकर एक थप्पड़ हबीब साहब को जड़ दिया। अब बलराज साहनी एक दम तंदरुस्त, हट्टे-कट्टे आदमी थे। उसपर से उन्होंने हबीब तनवीर को कस कर थप्पड़ मारा भी था। हबीब साहब को इतना कस के झटका लगा कि कुछ देर उन्हें कुछ समझ में ही नहीं आया कि मेरे साथ हुआ क्या? कुछ देर बाद जब थोड़ा होश आया तो खूब रोने लगें। 1-2 घंटे तक रोए और फिर जब शांत हुए तो बलराज साहनी पास आकर बोले, “अभी जैसे रोए हो उसको याद रखना और अगली बार रिहर्सल में ऐसे ही रोना।”
हबीब तनवीर उस वक्त कुछ समझ नहीं पाए, लेकिन उसके बाद जब उन्होंने उस नाटक में अभिनय किया तो अपने रोने से पूरी ऑडियंस को रुला दिया। हबीब तनवीर खुद कई बार बोलते हैं कि अगर उस दिन मुझे थप्पड़ नहीं पड़ा होता और मैं चीज़ों को महसूस करना शुरू नहीं करता तो आज मैं भी हीरो बनने की जद्दोजहद में लगा रह जाता और इतनी खूबसूरत चीज़ थिएटर मुझसे दूर ही रहती।