बहुत लोग ये सोचकर खुश हैं कि बिहार की बेटी ने नीट टॉप किया है और उसके साथ ये भी कि उसी लड़की ने बिहार बोर्ड भी टॉप किया है। लेकिन मेरी मानिए मुझे कोई खुशी नहीं हुई क्योंकि ये जो आप देख रहे हैं वो बिहार की शिक्षा का दिया हुआ नहीं है, जिसपर हम अपनी रोटी सेकने का काम कर रहे हैं। जब भी हमें ये मौका मिलता है हम सरकार को बदलाव लाने और एजुकेशन सिस्टम सुधारने के लिए आईना दिखाए तो हम पीठ दिखाकर भाग जाते हैं। बहाना क्या बनाते हैं कि कभी बिहार की बेटी ने धोखा दिया तो कभी बिहार की बेटी ने टॉप किया।
मुझे फक्र है कि उसने टॉप किया, लेकिन मुझे खेद भी है कि यहां के टॉपर को बहुत जगह का फॉर्म तक देखने को नहीं मिलेंगे। इस साल भी फेल होने की संख्या आधा से ज़्यादा है।
आज अटेंडेंस की बात करते हैं, लेकिन कल सब कहां थे जब बिहार के कॉलेज और स्कूल में बच्चे नहीं दिखते थे, उस दिन मीडिया कहां थी। क्या ये मीडिया की गलती नहीं है कि वो माइक लेकर सारे प्रिंसिपल और आला अधिकारी से उस वक्त सवाल करती।
बिहार के आधा से ज़्यादा कॉलेज में बस पैसे देकर काम हो जाता हैं। हां, आज मैं बुराई कर रहा हूं बिहार की क्योंकि अगर आप बदलाव देखना चाहते हैं तो आपको सारी बुरी बातों को उजागर करना होगा।
सच मानिए अगर बिहार बोर्ड के एजुकेशन सिस्टम को बदलना है तो ये काम किसी ऐसे इंसान को दे देना चाहिए जिसे सिर्फ शिक्षा से मतलब हो। ये पद और पावर किसी ब्यूरोक्रेट के हाथ में नहीं होना चाहिए। ये तभी बदल सकता है जब इसे सरकारी लोगों के हाथ से निकालकर सिर्फ एक शिक्षा वाले इंसान को दिया जाए।
आज मैं आपको बताता हूं कि मैं बिहार बोर्ड कैसे पास हुआ हूं-
क्या अजीब बात है आज बिहार बोर्ड में किसी ने टॉप कर लिया तो सबकी आंखें लग गई कि वो नीट और बिहार बोर्ड दोनों टॉपर कैसे बन गई। साल 2015 में जब मैं पास हुआ तब तो किसी ने ये सवाल नहीं किया। आप सभी आज जो सवाल कर रहे हैं, पिछले 4 सालों से आप क्या सो रहे थे। आपमें ये कभी हिम्मत क्यों नहीं हुई कि आप जाकर स्कूल और कॉलेज के प्रिंसिपल, बिहार बोर्ड के अध्यक्ष और अधिकारी से ये सवाल करें कि स्कूल और कॉलेज में बच्चे क्यों नही दिखते हैं। आज मैं आपको बताता हूं कि मैं कैसे पास हुआ, क्योंकी आपको आज अपने घर और आस-पास की रिपोर्टिंग करनी सबसे ज़रूरी है और उससे ज़्यादा ज़रूरी है खुद से सवाल पूछना। पिछले 5 सालों से मैं अपने आप से यही सवाल कर रहा हूं कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा, स्कूल और कॉलेज की हालत कब सुधेरेगी।
आज मैं आपको बताता हूं कि मैं कैसे पास हुआ हूं। मेरा 10th साल 2012 में हुआ है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस स्कूल से मेरा फॉर्म भराया था वहां मैं आज तक नहीं गया हूं। ना ही वहां के लोग मुझे पहचानते हैं। बस खुद से और कोचिंग की बदौलत पढ़ा हूं। उसके बाद सीधा 10th का एग्ज़ाम दिया और पूरे स्कूल में टॉप भी किया। वो स्कूल सीबीएसई बोर्ड का था। टॉप करने के बावजूद वहां मुझे कोई नहीं जानता है। आज भी मेरा सवाल वही है कि मीडिया और सीबीएसई के आला अधिकारी कहां थे, क्या उस वक्त उनकी ज़िम्मेदारी नहीं थी इन सबकी जांच पड़ताल करने की। मैं आपको बता दूं कि बिहार में आधा से ज़्यादा बच्चे ऐसे ही पढ़ते हैं। इसके 2 कारण है पहला सरकारी स्कूल की खराब हालत, दूसरा बच्चों के पास स्कूल के महंगे फीस देने के पैसे नहीं होना।
2012 में मैंने डीएवी, बीएसइवी का एंट्रेंस क्रैक करके वहां एडमिशन लिया था, लेकिन कैमिस्ट्री और फिजिक्स के टीचर अच्छे नहीं मिले तो आधे से ज़्यादा बच्चे वहां फेल हो गये। सभी बच्चे दूसरी जगह से 12th करने चले गये। लेकिन मैंने दोबारा से वहां से 11th करने को सोचा, 2014 में अच्छे नंबर आये, लेकिन 7 महीने की फीस नहीं देने की वजह से स्कूल छोड़ना पड़ा।
अब सीबीएसई स्कूल में पैसे देने की हिम्मत नहीं और बिहार बोर्ड जाने का मन नहीं। लेकिन मजबूरी में बिहार बोर्ड के एक स्कूल में डायरेक्ट 12th में एडमिशन लिया, सिर्फ 5 हज़ार लगे और उन्होंने 11th की सारी कॉपी, डायरी, रजिस्टर में सारे जगह मेरा नाम दर्ज कर दिया और मैं हो गया बिहार बोर्ड का स्टूडेंट। वहां भी मैं आज तक नहीं गया हूं और ना ही वहां कोई मुझे जानता है।
2015 में 12th का एग्ज़ाम दिया, बिहार बोर्ड का जो डर था वही हुआ। नंबर आया 59.9 परसेंट, उसी साल आईआईएम के लिए क्वालिफाइड हुआ लेकिन बोर्ड में 60 परसेंट मार्क्स नहीं थे। जबकि मुझे उम्मीद थी कम-से-कम 85 प्रतिशत मार्क्स की।
कॉपी दोबारा चेक करने को दिया। हर कॉपी पर 120 रूपए लगा था, इस हिसाब से 5 कॉपी के 600 रूपए एक स्टूडेंट ने दिया। उसी साल मैं इकोनॉमिक्स पढ़ रहा था और मेरे मन में एक ख्याल आया कि इसी पर रिसर्च करूं, छोटा ही सही लेकिन किया मैंने। ऐसा ख्याल इसलिए आया क्योंकी उस टाइम बिहार बोर्ड के ऑफिस में बहुत भीड़ थी और मेरे पॉकेट में पैसे नहीं। स्टेशन से करीबन 12 किलोमीटर पैदल आया था मैं।
करीबन 7 लाख बच्चे कॉपी को दोबारा चेक कराने को आये थे। इस हिसाब से बिहार बोर्ड का बिज़नेस करीबन 7,00,000*600= 42,00,00,000 (42 करोड़) का था। ऑफिस के बाहर खाने पिने के बिज़ेनस को तो छोड़ ही दीजिये। ओवरऑल मुझे एक बात समझ आई कि बिहार बोर्ड में गड़बड़ करने से बिहार सरकार का फायदा है। क्योंकी इस एक महीने में उनकी भयंकर इनकर भी होती है।
आपको जानकर हैरानी होगी की इसका रिजल्ट नवम्बर या दिसम्बर में आया , जिसमें सिर्फ सारे सब्जेक्ट में 3 अंक बढ़े थे।
वर्ष 2016 में दोबारा से एग्ज़ाम दिया, इस उम्मीद से कि बिहार बोर्ड में इस बार अच्छे से कॉपी चेक होगी। लेकिन, हमारे साथ फिर धोखा हुआ। जहां उम्मीद थी 85 परसेंट की वहां सिर्फ 68% मार्क्स आए, वो भी स्कूल का सबसे ज़्यादा मार्क्स था। मैंने दोबारा कॉपी चेक के लिये दिया बिना डरे लेकिन कोई फायदा नहीं। बिहार बोर्ड ने बिज़नेस तो किया लेकिन कोई सुधार नहीं। बहुत सारे एंट्रेंस क्रैक भी किए, लेकिन एडमिशन के लिए पैसे नहीं थे।
10th से 12th तक आने में काफी वक्त लगा लेकिन यहां से काफी सीख भी मिली। आज अगर बिहार बोर्ड को कोई सुधार सकता है तो वो कोई ऐसा इंसान जिसे सिर्फ एजुकेशन से मतलब हो, ऊपर वाले लोगों से नहीं। बिहार में आज भी करीबन 80 परसेंट स्टूडेंट सिर्फ पैसा देकर काम करवा लेते हैं। और उनका काम हो भी जाता है। ये सच्चाई आप सभी जानते हैं, लेकिन स्वीकारना नहीं चाहते हैं।
आज कॉलेज का भी यही हाल है, कितने कॉलेज में बच्चे नहीं जाते हैं। अटेंडेंस सिर्फ पैसे देने से बन जाते हैं। मुझे बिहार की ब्रांडिंग करनी है, लेकिन झूठ की तर्ज पर नहीं।