हमारे देश में सेक्युलरिज़्म पर बहुत बड़ी बहस है। यहां सेक्युलर होना भी एक फैशन है, जैसे हिन्दू होना और मुसलमान होना। हम लेकिन सेकुलरिज्म की नींव पर चर्चा नहीं करना चाहते। सेक्युलर होने का मतलब क्या है, दरअसल हम अभी इसका आकलन नहीं कर पाए हैं। क्या महज़ अल्पसंख्यक समुदाय का समर्थन करना सेक्युलरिज़्म है? क्या हिंदुत्व को गाली देना सेक्युलरिज़्म है? क्या टोपी पहनकर इफ्तार में जाना या किसी मुस्लिम का होली-दीवाली में शामिल होना सेक्युलरिज़्म है? इसपर चर्चा करना ज़रूरी है।
मुझे निजी तौर पर हिंदुत्व के एजेंडे से दिक्कत है। हिन्दू राष्ट्र ना बने मैं इसके लिए हमेशा काम करूंगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं किसी और धर्म को भारत पर काबिज़ होने देने के पक्ष में हूं। संविधान के अधिकार को और उसके साथ सामाजिक नैतिक को स्थापित कर उसका अनुसरण करना सेक्युलरिज़्म है। अगर कोई ये कहे कि अपने धर्म का पालन करते हुए दूसरे धर्म की इज़्ज़त करना महज़ सेकुलरिज्म की परिभाषा नहीं है, हम लोगों ने इसे ही सेक्युलरिज़्म की परिभाषा मान लिया है।
हमारे समाज में बहुत सारी बुराई है, जिसे धर्म के आधार पर अंजाम दिया जाता है। धर्म को इस बुराई की छतरी इसलिए बनाई जाती है ताकि लोग सवाल ना खड़ा करें। अधिकतर धर्म के आधार पर सबसे ज़्यादा अत्याचार महिलाओं पर होता है। धर्म का पूरा बोझ उनके कंधों पर डाल दिया गया है। ऐसा नहीं है सिर्फ महिलाएं ही इसका शिकार हैं, पुरुष भी धर्म के डंडे से डराये जा रहे हैं।
सेक्युलरिज़्म का मतलब यह भी है कि हमारे सामने घट रही सभी बुराई पर सवाल उठाना होगा। हम यह नहीं कह सकते कि मैं सभी धर्म की इज़्ज़त करता हूं इसलिए इस बारे में नहीं बोलूंगा उस बारे में नहीं बोलूंगा। ये सेक्युलरिज़्म नहीं है, सेकुलरिज्म मानवीय मूल्यों पर आधारित है। मानसिक गुलाम कभी भी सेक्युलर नहीं हो सकता।
महिलाओं को परदे की नसीहत देने वाला कभी सेक्युलर नहीं हो सकता। महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन समझने वाला सेक्युलर नहीं हो सकता। पीरियड्स में उनका मंदिर और रसोई में जाने पर रोक लगाने वाला कभी सेक्युलर नहीं हो सकता। महिलाओं के लिए मंगलसूत्र, सिंदूर और घूंघट अनिवार्य करने वाला कभी सेक्युलर नहीं हो सकता। ये बड़ी चीज़ है ये किसी कथित गैर भाजपाई नेता द्वारा गढ़ी गई थ्योरी नहीं है।
सेक्युलरिज़्म समानता की बात करता है, वो ये नहीं कहता कि ऊपर वाले ने औरत-मर्दों को अलग-अलग काम के लिए बनाया है। आप सोच रहे होंगे कि सेक्युलरिज़्म की बहस को मैं जेंडर पर कैसे मोड़ रहा हूं। क्योंकि शुरुआत यही है, इसके बाद सब कुछ है, सेक्युलर मुल्क मतलब संविधान श्रेष्ठ है। सेक्युलर व्यक्ति मानवीय मूल्यों को बचाने के लिए धर्म से जंग लड़ सकता है। धर्म को लेकर कट्टर व्यक्ति सेक्युलर नहीं हो सकता। क्योंकि सेक्युलर व्यक्ति हर तरह की धार्मिक बुराई के बारे में बोलेगा। वो इसलिए नहीं चुप हो सकता कि कुछ मौलाना और पंडित नाराज़ हो जाएंगे।
धार्मिक बुराई को सिर्फ इसलिए नहीं रोकना कि वो मेरा धर्म नहीं है, ये सेकुलरिज़्म नहीं हो सकता। अगर कल हिन्दू धर्म वाले बोलने लगे कि दलितों में मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए और सती प्रथा उनका धार्मिक मामला है और उसपर सवाल नहीं उठाया जा सकता? तो क्या ये चलेगा? कल कोई बोले हमारे मज़हब के अनुसार महिलाओं को पीटा जाना चाहिए तो क्या हम एक सेक्युलर होने के नाते उसके खिलाफ नहीं बोलेंगे? क्या हम उस वक्त भी यही हवाला देंगे कि मैं तो सभी धर्मों का सम्मान करता हूं?
कल कोई कहे कि हमारे मज़हबी रवायत के अनुसार लड़कियों का खतना किया जाता है। तो क्या हम इसलिए नहीं बोलेंगे कि हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। ये धर्म के ठेकेदारों ने खुद की आंखों पर पट्टी ना बांधकर औरतों को हिजाब में घूंघट की बंदिश लगा दी। तो क्या हम समानता वाला समाज चाहने वाले इसलिए नहीं बोलेंगे कि हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। ऐसा कहने वाले सेक्युलर नहीं हैं बल्कि वो चाहते हैं उनकी धार्मिक बुराई पर सवाल ना करें इसलिए वो दूसरों की धार्मिक बुराई पर चुप रहकर कह देते हैं कि हम तो सभी धर्म का सम्मान करते हैं।
मैंने सोशल मीडिया पर धार्मिक कट्टर लोगों से कई बार बातचीत की है। हिन्दू कट्टरपंथी और मुस्लिम कट्टरपंथी देखा है, दोनों के आंखों में एक ही सपना है अपने-अपने धर्म का वर्चस्व। दोनों चाहते हैं भारत का झंडा उनके मज़हबी झंडों से बदल दिया जाए। मुझे पता है बहुत सारे लोग डरकर खुद को सेक्युलर कहते हैं। मैंने जब-जब हिन्दू राष्ट्र और हिंदुत्व के धुरंधर के खिलाफ बोला और लिखा, तो मुझे गाली और धमकी मिली। मेरे मुंबई में रहने वाले माता-पिता तक को बजरंग दल वालों द्वारा धमकाया गया। मैं नहीं रुका क्योंकि सेक्युलर हूं। मैंने जब हिंदुत्व के धुरंधरों को धोया, तो मुस्लिम समुदाय के व्यक्तिओं का मैं हितैषी बन गया। कई लोग मेरी तारीफ करते थे, वो मुझे अपने कौम के बारे में अच्छा सोचने वाला व्यक्ति समझने लगे, लेकिन वो ये जान नहीं पाए कि मैं सेक्युलर हूं।
मैंने जब बुरखा और हिजाब जैसी गुलामी के प्रतीक के खिलाफ लिखा तो मैं इस्लाम का दुश्मन हो गया। मैंने जब रमज़ान में शराब के साथ लड़की की एक फोटो पर हज़ारों की तादाद में उसे गाली देने वाले, हत्या की धमकी देने वाले और रंडी के साथ इसके साथ सोने वाली कहने वालों के खिलाफ लिखना शुरू किया, तो मैंने इस्लाम पर हमला कर दिया। यही लाइन बजरंग दल के लोग बोलते थे कि मैंने हिन्दू धर्म पर हमला कर दिया। अब मैं इन कट्टर मुसलमानों के लिए आरएसएस का आदमी हो गया हूं। क्योंकि मैंने इनके धार्मिक बुराई को गिनना शुरू किया। मैं जब मोदी को गाली दूं तो तालियां बजती हैं और मौलाना को दी तो गलियां पड़ती हैं। दोनों तरफ अंधभक्तों का टोला है। मुझे मारने की धमकी भी दी गई लेकिन मैं सीरियसली नहीं लूंगा। मुझे पता है वो कुछ नहीं करेंगे।
मुझे एक बात समझ आ गई पिछले महीनों में कि इस मुल्क में सेक्युलर लोगों की तादाद ना के बराबर है। हो सकता बहुत लोग सेक्युलर हैं पर समाज के दबाव के चलते नहीं बता पा रहे हैं। हो सकता है कि इसके लिए उनपर फतवा दे दिया जाए या कोई मंदिर का पुजारी सामाजिक बहिष्कार करवा दे। अगर बाबासाहेब आंबेडकर और भगत सिंह के सपने का भारत का निर्माण करना है तो धार्मिक कट्टरता वालों को एक बंद संदूक में बंद करना होगा। हमें समानता वाला समाज निर्माण करने के लिए और सेक्युलर लोगों की ज़रूरत है। अगर ऐसे लोग नहीं होंगे तो महिला पर होने वाला धार्मिक और सामाजिक अत्याचार नहीं रुकेगा, ना ही उन्हें बराबरी का मौका मिलेगा। हमारा समाज उन्हें सिर्फ बिस्तर ही शान बनाकर रखेगा।
(फोटो प्रतीकात्मक है)