मैं सातवीं क्लास में था। उस वक्त मेरे दोस्तों का सर्कल बदल रहा था। मेरे कुछ दोस्तों के पास मोबाइल आ चुका था और उस वक्त डाटा चिप भी शुरू हो गई थी। डाटा चिप में गाने और वीडियो रखने का बड़ा चाव था लोगों को। स्कूल के खाली समय में कुछ दोस्तों के साथ वीडियो देखने का शौक मुझे भी लग गया था। वो वीडियो अक्सर पॉर्न होता था।
खैर, उन दिनों डाटा चिप से ज़्यादा सीडी और डीवीडी का चलन था और किस्मत से मेरे पास भी डीवीडी प्लेयर थी। छिप छिपकर पॉर्न डीवीडी घर लानी भी शुरू कर दी थी और मौका पाते ही देखने का चस्का भी लग गया था। कुल मिलाकर खुद को मैं बड़ा समझने लग गया था और लगता था कि अब मुझे भी इस लाइन में उतर कर मज़े लेने चाहिए।
हम दोस्तों में अब मज़ाक का कन्टेन्ट बदल गया था। क्लास रूम की खिड़की से दिखने वाले मकान में अब दूर से तांक झांक होने लग गयी थी। जब भी कोई महिला हमें दिखती तो हम एक दूसरे को कोहनी मार उधर देखने लग जाते। अब हमें अपने लिए किसी शिकार की या यूं कहें कि अपनी भूख के लिए खाने की ज़रूरत थी। पता नहीं दोस्त झूठ बोलते थे या सच पर वो इस मिशन में मुझसे ज़्यादा बेहतर खिलाड़ी साबित हुए। उनके पास हर रोज़ नई कहानियां होती थी। कोई अपनी भाभी के शरीर पर हाथ फेरता था, कोई मामी या चाची को फंसाने में कामयाब हो गया था। वो रोज़ अपनी बहादुरी के किस्से सुनाते थे। सबने अपने लिए कोई न कोई लड़की भी छांट ली थी।
मैं इस मामले में फिसड्डी था। मुझे कोई लड़की या तो पसन्द नहीं आती थी या यूं कहें कि हिम्मत नहीं थी लड़कियों से बात करने की। मैं अपनी कमज़ोरी छिपाने के लिए लड़कियों को फुलटू इग्नोर करता था। अब दिक्कत ये थी कि उनकी कहानियां सुन-सुनकर और पॉर्न देख देखकर मुझमें बेचैनी बढ़ रही थी। मैं भी अपने आस-पास की महिलाएं जो मेरी चाचियां या भाभियां लगती थीं या पड़ोस की आंटियां थीं उनके कपड़ों के साथ छिपकर छेड़खानी करने लगा। बहुत बार बाथरूम में मिली पैंटी, ब्रा को सूंघा और जाकर दोस्तों को कहानियां सुनाई। ये काम घर से बाहर ज़्यादा होता था।
कहानियां सुनाकर मैं दोस्तों के बीच अपनी जगह बना रहा था लेकिन बेचैनी यूं की यूं थी। गर्मियों की छुट्टियों में मेरी दो कज़न जो मुझसे दो साल और 3 साल छोटी थी वे मेरे घर आईं। मेरे परिवार में ज़्यादातर लोगों का रंग गोरा है। जब दोस्तों ने उन बहनों को देखा तो उन्होंने उनके बारे में बात की। हालांकि मैं उनके साथ इस बात पर लड़कर आया लेकिन मेरी बेचैनी में मुझे भी आसान शिकार के रूप में वे नज़र आने लगीं। मैं कई दिनों तक इसी ट्राई में रहा। एक दिन मेरी किस्मत ने साथ दिया और मुझसे दो साल छोटी बहन ने मेरी छेड़खानी में मेरा साथ दिया। उस वक्त हम लोगों को जितना पता था, जितना समझ आ रहा था हम लोग वो कर रहे थे। छोटे वाली बहन को भी मैंने नहीं बख्शा और उसके साथ भी छेड़खानी करनी शुरू कर दी।
वो बच्ची थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए वो रोने लग गई तो उसे छोड़ हम दोनों ने मस्ती जारी रखी। उसके कुछ दिनों बाद ही वे लोग चले गए। उसके बाद मैंने कई बार अपने छोटे भाई बहनों के साथ भी ऐसी हरकते करने की कोशिश की। बाद में जब कुछ पढ़ने लिखने लगा तो एक बार बाल यौन उत्पीड़न पर पढ़कर चीज़ों को समझा तब अपने आप को जस्टिफाई नहीं कर पाया।
कई साल तक मैं अपनी उन कज़न से नहीं मिला। जब भी उनसे मिलने का ज़िक्र होता तो मैं टाल जाता, क्योंकि मुझे शर्म आती थी खुद पर और डर भी लगता था। आज जब वो बातें बहुत पुरानी हो चुकी हैं और मैं अच्छी जॉब पर हूं और उन कज़न को मैं अपनी सगी बहनों जितना ही प्यार करता हूं तब भी मैं ये सोचता हूं कि मैंने इतना बड़ा अपराध कैसे कर लिया। मेरे दिमाग में आज भी वो डर या शर्म बरकरार है। उस अपराधबोध से मुक्त नहीं हो पा रहा हूं। मेरे दिमाग में आज भी वे सवाल पहले के मुकाबले ज़्यादा तीखे रूप में चुभते हैं। मेरे वे दोस्त भी मेरी तरह झूठ बोलते थे? मेरी तरह नासमझी में उन्होंने भी ऐसा किया होगा? क्या वे आज ये सब नहीं कर रहे होंगे? क्या मेरी वे कज़न मुझे अपराधी मानती हैं?
पता नहीं मैं ईमानदार हूं या नहीं पर तुम्हें ये बात बताते हुए मैं खुद को हल्का महसूस कर रहा हूं। बहुत बार अपनी बहनों से माफी मांगने का मन होता है, लेकिन हिम्मत नहीं हो पाती। मुझे समझ नहीं आता मैं अपने बच्चों को ये सब करने से और इस सबका शिकार होने से कैसे बचा पाउंगा?