Site icon Youth Ki Awaaz

“रवीश को धमकी देने वाले लोग, धर्म को देश से ऊपर मानते हैं”

देश तमाम मुद्दों और चुनौतियों के बाद भी लगातार आगे बढ़ रहा है, ऐसा मानने वाले लोग ज़रा रूककर सोचे, क्या देश सचमुच आगे ही बढ़ रहा है ? कोई यह सब क्यों सोचेगा? जब लोगों के मन में यह बैठा दिया गया है कि देश नहीं धर्म खतरे में है। और यह वही लोग हैं, जो कभी कहते हैं कि देश, धर्म से भी पहले आता है।हां पहले है, हमें तो कही नहीं दिखता, अगर ऐसा होता तो देश के उन नागरिकों का सम्मान किया जाता जो देशहित की बात करते हैं। जी हां, मैं बात कर रहा हूं उन पत्रकारों की जो आज भी निडर होकर पत्रकारिता करते हैं। वह बिकते नहीं बल्कि सौदों में हुए घोटालों की बात करते हैं।

ताज़ा मामला एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार को जान से मारने की धमकी का है। यह वही पत्रकार हैं, जिसकी वजह से आज शायद 50% लोग समाचार चैनल देखते हैं। धमकियां तो पत्रकारिता में मिलती ही रहती हैं, हमें भी मिलती है, लेकिन अभी जान से मारने की धमकी नहीं मिली।

हद है, इस देश के उस पढ़े-लिखे वर्ग की, जो मुद्दों और समस्याओं को नहीं समझते, इनमें खासकर मेरा  तात्पर्य उन युवाओं से है, जो क्रांति लाने की बात तो करते हैं, लेकिन क्रांति के तरीकों को नहीं अपनाते। इन्ही बेरोज़गार युवाओं के पक्षधर रवीश कुमार ने हाल ही में नौकरी सीरीज़ पर बहुत से एपिसोड किये, प्रशासन से लेकर सरकारें तक सतर्क हुईं। लेकिन ऐसे में सरकार की नज़र में रवीश कुमार फिर से खटकने लगे।

सरकार की नीतियों में कमी को उजागर करना ही पत्रकारिता का कर्तव्य है अब इसको भक्तगण दुश्मनी समझकर रवीश को ठिकाने लगाने की धमकी दे रहे हैं। यह इनकी समझ को दर्शाता है और व्यक्त करता है कि यह केवल भक्त नहीं है, अंधभक्त है। जिनकी आंखों पर उस धर्म का पर्दा डाल दिया गया है, जिसकी रक्षा भक्तों को नही स्वयं ईश्वर को करनी है।

सभी को पता है कि इराक में क्या हो रहा है, अबु बकर अल बगदादी ने जिस आतंक की नीव इस्लाम के खतरे में होने पर रखी थी, आज वह खुद विश्व की नफरत का पर्याय बन गया है।

ठीक उसी की तर्ज़ पर भारत के कुछ लोग चलना चाहते हैं। यहां लोकतंत्र है इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी किसी को धमकी दे सकता है। ऐसे मामलों को केंद्र सरकार का अनदेखा करना गलत है। इससे केवल सरकारों का फायदा है जबकि सभ्य समाज अंधकार की और जा रहा है।

इसके साथ ही सरकार या किसी अन्य राजनीतिक दल से प्रेम भावना दिखाने वाले उन पत्रकारों को भी चाहिए कि अपने व्यक्तिगत फायदों को त्याग कर ऐसी घटनाओं, धमकियों का खुलकर विरोध करें, साथ ही सम्बंधित विभाग को घेरे। जिससे कि आने वाले वक्त में एक निष्पक्ष पत्रकारिता का स्तर तैयार हो सके। जब तक यह सुनश्चित नहीं होगा कि पत्रकारिता निष्पक्ष हो, तब तक कितने ही पत्रकारों को धमकी या मौत मिलती रहेगी।

देश के समाज को भी गंभीरता से हर मुद्दे और विवाद पर सोचना चाहिए क्योंकि जिस धार्मिक खतरे को बताकर आपको मुद्दों से भटकाया जाता है वास्तव में वह धर्म खतरे में नहीं खुद आप खतरे में हैं और अपना यह देश खतरे में है। क्या आप और हमसब मिलकर इन धार्मिक षड्यंत्रों से नहीं निपट सकते। यह हमें ही सोचना होगा और जल्दी ही कोई समाधान ढूंढना होगा, जिससे कि धार्मिक उन्माद फैलाने वालों को सबक सिखाया जा सके।

Exit mobile version