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कभी शिक्षा का केंद्र रहा बिहार आज साक्षरता में सबसे पीछे क्यों?

सबसे अधिक आईएएस और बैंक पीओ वाले आंकड़े पर आप इतरा सकते हैं, पर कुछ कटुसत्य ये भी हैं।

आर्टिकल से पहले कुछ क्विक फैक्ट्स।


* बिहार भारत का सबसे अनपढ़ राज्य है, 61.8 फीसदी साक्षरता दर के साथ यह भारत की साक्षरता दर 74% से काफी पीछे हैं।
* प्रथम कक्षा में नामांकन लिए हुए बच्चों में से केवल 38 फीसदी छात्र बारहवीं तक पहुंच पाते हैं।
* 2014-15 में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अपने हर छात्र पर 39,345 रुपए खर्च किए गए। यह खर्च विद्यार्थियों की शिक्षा , भोजन एवं शिक्षण सामग्री के लिए किया गया था। जबकि बिहार सरकार द्वारा अपने हर छात्र पर उसी वर्ष मात्र 5,258 रुपए खर्च किए गए।
* 2014 तक बिहार में केवल 58% विद्यालयों में लड़के एवं लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था थी।
* बिहार में प्रति लाख बच्चों पर केवल 6 कॉलेज हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत प्रति लाख छात्रों पर 26 कॉलेज का है।

इन बिंदुओं के बाद भी बिहार में अगर सबसे सुखद, आसान और सर्वाधिक मांग वाली कोई नौकरी है तो वह है शिक्षक की। साथ ही साथ अगर सबसे कष्टकारी और मुश्किल कोई नौकरी है तो वह भी शिक्षक की ही है। पर आप सोच रहे होंगे कि एक ही वक्त में यह दोनों कैसे संभव है। बिल्कुल संभव है बस समझने की बात है।

बिहार में B.Ed तथा डी.एल.एड जैसे कोर्सों की बढ़ रही मांग इस बात की पुष्टि करती है कि यहां के छात्रों में रेलवे, SSC तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में जाने की अपेक्षा, शिक्षण कोर्स करने की होड़ ज़्यादा मची है। इसका अंदाज़ा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि डी.एल.एड कोर्स में नामांकन हेतु हर कॉलेज या संस्थान में लाखों की संख्या में आवेदन पहुंच रहे हैं। क्योंकि छात्रों को उम्मीद है कि शिक्षक प्रशिक्षण की डिग्री एक बार मिल जाने पर टी.ई.टी परीक्षा पास कर एक शिक्षक बनने में कोई परेशानी नहीं होगी।

टी.ई.टी की परीक्षा का आलम यह है कि कई सारे ऐसे गिरोह सक्रीय हैं जो लाख-दो लाख लेकर अभ्यर्थी के स्थान पर किसी और को परीक्षा दिलवाते हैं तथा टीईटी परीक्षा उत्तीर्ण करवाने की गारंटी लेते हैं।

साथ ही साथ YouTube पर ऐसे कई सारे वीडियो मिल जाएंगे जिनमें बिहार के शिक्षकों की पोल खुलती नज़र आएगी। वो शिक्षक जिन्हें सही से जनवरी-फरवरी की स्पेलिंग भी नहीं पता है उनपर बिहार के बच्चों का भविष्य सुधारने की ज़िम्मेदारी है। वर्ष 2013-14 में नीतीश सरकार ने एक फरमान जारी किया कि वह शिक्षक जो फर्जी रूप से विद्यालयों में शिक्षक के रूप में भर्ती हुए हैं। वो स्वतः शिक्षक से पद से त्यागपत्र दे दें। अन्यथा कानूनी कार्रवाई के तहत उन्हें दंडित किया जाएगा। इस फरमान के बाद हजारों की संख्या में शिक्षकों ने त्यागपत्र दिया। यह भी इस बात की पुष्टि करती है कि किस प्रकार से बिहार में शिक्षा माफिया सक्रिय हैं।

यह तो बात हुई शिक्षकों के एक पक्ष की, वहीं अगर दूसरे पक्ष की बात की जाए तो यह शिक्षक बिहार में केवल शिक्षा के लिए उत्तरदाई नहीं है। बिहार में होने वाली हर सरकारी योजना, घटना एवं कार्यक्रमों की ज़िम्मेदारी इनपर होती है। शौचालय योजना के आंकड़े एकत्रित करने से लेकर चुनाव प्रक्रिया में भाग लेना, वोटर ID कार्ड बनवाने से लेकर मध्याह्न भोजन को देखना, किताबें बांटने से लेकर स्वच्छाग्रही बनना। यह सारे कार्य शिक्षकों के मत्थे हैं। तथा इन कार्यों के लिए इन शिक्षकों को 6000-12000 रूपए प्रतिमाह दिए जाते हैं। क्योंकि इन शिक्षकों को परमानेंट शिक्षक नहीं बल्कि कॉन्ट्रैक्ट शिक्षक कहा जाता है।

समान काम के लिए समान वेतन हेतु इन शिक्षकों ने सालों से कई आंदोलन किए, धरना प्रदर्शन किए। अंततः उन्होंने सरकार पर कानूनी कार्रवाई तक की। जिसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया कि जब शिक्षक दूसरे परमानेंट शिक्षकों के बराबर ही काम करते हैं तो आखिर इन्हें वेतन समान क्यों नहीं मिलता। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को आदेश दिया है एक समुचित योजना के तहत सभी शिक्षकों को बराबर वेतन दिया जाए। जिसके बाद सरकार की आंखें खुली और उसे अतिरिक्त वित्तीय बोझ झेलना न पड़े इस हेतु सरकार ने अपनी आंतरिक कार्रवाई तेज़ कर दी। तथा कई माध्यमों से कम से कम शिक्षक भर्ती करने की योजना बनाई।

उसके बावजूद सरकार की विफलता बताने के लिए यहां के रोज़गार की स्थिति काफी है। सरकारी परीक्षाओं के नाम पर बिहार सरकार BPSC, BSSC परीक्षाएं आयोजित करती है। पर हाल यह है कि BPSC का अकादमिक वर्ष पीछे चल रहा है। जबकि बिहार BSSC अपनी एक परीक्षा इन 4 वर्षों में भी पूरी नहीं कर सका है। अतः प्रतियोगिता के माध्यम से जो परीक्षार्थी बिहार सरकार में नौकरी पाना चाहते हैं, वो हताश हो चुके हैं। केवल और केवल निराशा नज़र आ रही है।

बिहार सरकार नौकरियां उत्पन्न करने के नाम पर अलग-अलग सरकारी योजनाएं निकालती हैं, स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड, बिहार कौशल विकास योजना इत्यादि। परंतु सरकार के पास वास्तविक नौकरियां बिल्कुल भी नहीं हैं। सरकार को विद्यार्थियों के हित में या चुनाव के लालच में ही सही, इस सन्दर्भ में योजनाबद्ध तरीके से कार्य करना चाहिए, वरना सरकार को याद रखना चाहिए की यह जननायक की भूमि है, क्रांति यहां खून में बसती है। बस धैर्य का बांध न टूटे।

जय बिहार।

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