हमारे देश का दुर्भाग्य है कि सच बोलना जितना कठिन है उससे भी अधिक दुखदायी है, उसके बाद की यातना झेलना। यह यातना और भी ज़्यादा बढ़ जाती है जब मामला सिस्टम में रहकर कोई छोटा कर्मचारी उठाये।
यह बात है आईआईटी मंडी में कार्यरत सुजीत स्वामी की, जो मूलतः: कोटा राजस्थान के निवासी हैं और आईआईटी मंडी में जूनियर असिस्टेंट के पद पर नवंबर 2016, से कार्यरत हैं।
सुजीत एक सरकारी कर्मचारी होने के साथ-साथ सामाजिक कार्यों को भी ज़ोरो से उठाते हैं, इसीलिए जब उन्होंने आईआईटी मंडी ज्वाइन किया तो वहां के कर्मचारियों ने थोड़े दिन बाद ही वहां पर चल रही अनियमितता, जैसे कि भर्ती में भाई-भतीजावाद, करोड़ो का हेरफेर, चहेतों को मनचाहा इन्क्रीमेंट, एडमिशन में घोटाला, निर्माण कार्यों की घटिया गुणवत्ता और छोटे कर्मचारियों के शोषण के बारे में उनको बताना शुरू किया और उम्मीद लगायी कि सुजीत आईआईटी को इस बीमारी से मुक्त करवा सकते हैं।
उसके कुछ दिनों बाद ही सुजीत ने इस बारे में विभिन्न स्त्रोत से जानकारी मालूम की और सूचना के अधिकार के तहत भी जानकारी जुटाना शुरू किया। जब सुजीत को जानकारी मिलने लगी तो वो चौंकाने वाली आयी। उसमें पता चला कि किसी एक के लिए अलग नियम है तो किसी दूसरे के लिए अलग।
किस तरह से चहेतों को नौकरी देने के लिए बाकायदा कमिटी बैठती और विज्ञप्ति उनके अनुसार निकलती है। यही नहीं पेपर से लेकर साक्षात्कार तक पूरी सेटिंग की जाती है कि किसको टॉप करवाना है और किसको फेल।
इन सब घोटाले को जब सुजीत ने सरकार के सामने रखने के लिए उक्त मंत्रालय से समय मांगा तो उनकी कही सुनवाई नहीं हुई। उल्टा आईआईटी को भनक लगने पर वो सुजीत को परेशान करने लगे। उनको एक विभाग से दूसरे विभाग में बिना उनकी ज़रूरत के तबादला कर दिया गया। उनपर अन्य कार्य करने का भी अनैतिक दबाव बनाया गया, विरोध करने पर उनको डांट दिया जाता।
सुजीत परेशान होने लगे क्योंकि सरकार उनकी बात सुन नहीं रही थी। आईआईटी के कर्मचारी नई विज्ञप्ति में होने वाले घोटाले के प्रति चिंतित थे और सुजीत को आकर बताते और उम्मीद लगाते। इधर आईआईटी सुजीत को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था। इन्हीं सब उलझनों के बीच सुजीत तनाव में आ गएं। इसके बाद वह आईआईटी मंडी के ही डॉक्टर को दिखाने पहुंचे। चूंकि डॉक्टर आईआईटी के थे तो खुलकर अपनी मन की बात तो नहीं बता सकें, लेकिन उनको परेशानी का ज्ञान दे दिया और डॉक्टर ने मनोचिकित्सक को दिखाने का सुझाव दिया।
सुजीत जब छुट्टी पर घर आएं तो उन्होंने अपने घर के एक डॉक्टर से सलाह ली। उन्होंने आईआईटी से कुछ महीने रेस्ट और मन और दिमाग को शांत करने एक थेरेपी लेने का सुझाव दिया। सुजीत ने मेण्टल अनफिट बोलकर आईआईटी तीन महीनों की छुट्टी ली, लेकिन आईआईटी में चल रहे गोलमाल की टेंशन अभी भी पीछा नहीं छोड़ रही थी। तबही उनके डॉक्टर ने सुझाव दिया कि आपको जो ठीक लगता है आप वो कीजिए।
दिनांक 21 मई 2018 सोमवार, को सुजीत ने मंडी ज़िले में प्रेस वार्ता करके सारे सबूतों के साथ आईआईटी मंडी के काले कारनामों का चिट्ठा खोल दिया, जिससे पूरे हिमाचल के साथ-साथ आईआईटी में हड़कंप मच गई। उसके बाद ही एक और अधिकारी ने सुजीत का समर्थन करके आईआईटी के ऊपर सुजीत के लगाए गए आरोपों को मज़बूत कर दिया। लेकिन अब आईआईटी के पास सुजीत के आरोपों का कोई जवाब नहीं सुझा तो उन्होंने मीडिया को सुजीत के मानसिक रोगी होने का हवाला देना शुरू कर दिया और कहा कि उसके आरोप मानसिक संतुलन की वजह से हैं, उन पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है।
जबकि सुजीत ने बताया की उनके पास सारे सबूत हैं, और अधिकारी भी उनके समर्थन में हैं। इसके बाद वहीं के बीजेपी के सांसद ने मीडिया के सामने आकर आईआईटी में हो रहे भ्रष्टाचार की पुष्टि की और जांच करवाने की मांग केंद्र सरकार से की है।
इसी बीच एक सवाल ज़हन में चुभ गया कि क्या वाकई में देश के हालत ऐसे हैं कि जो सत्य की आवाज़ बुलंद करते हैं, उनको इस तरह की यातनाएं झेलनी पड़ती हैं। सुना तो यह भी जा रहा है आईआईटी सुजीत के ऊपर कड़ा एक्शन लेने की तैयारी में है।