भारत में औरतों के वस्तुकरण का प्रचलन रहा है, द्रौपदी से लेकर अहिल्या तक, सीता से लेकर माधवी तक। ये भारत की मैगज़ीन की नायिकाओं जैसी हैं जिनकी तस्वीर ऊपर कवर पर लगा कर मैगज़ीन को बेस्टसेलर बनाया जाता है। उपरोक्त महिलायों को ग्रंथों की महिमामंडन के लिए इस्तेमाल किया गया है, और अब ये भारत में एक चलन है। मौजूदा सरकार ने भी यही दोहरी नीति अपनाई है। मत्रिमंडल में महिलाओं को शामिल तो किया है, लेकिन आवाज़ छीन ली है।
हम अपने देश में औरतों की कितनी इज्ज़त करते हैं उसका प्रमाण राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो(NCRB) की यह रिपोर्ट चीख-चीख कर देती है। देश में 2015 (34,651) से 2016 (38,947) तक में रेप में 12.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। गौर करने वाली बात ये है कि इस रिपोर्ट के आकड़ें पुलिस में दर्ज की गयी शिकायतों के आधार पर तैयार किये गए हैं। उन शिकायतों का क्या, जो किसी लड़की की चीख के नीचे दबा दी गयी? उन शिकायतों का क्या जो लड़की की इज्ज़त का हवाला देकर भुला दी गयी ? उन शिकायतों का क्या जो समाज के डर से कभी की ही नहीं गयी? वो आकड़ें कहां से मिलेंगे?
समाज की भी लीला अजीब है, अगर पीड़ित कोई महिला हो, तो पुरुष अपने आप सही हो जाता है। भारत में अगर आप एक लड़की हैं, तो पहले पैदा होने के लिए संघर्ष करना होता है। उसके बाद लड़कियां, लड़कों की बराबरी कर सकती हैं, उस पर तर्क-वितर्क करना पड़ता है। इतना सब कुछ आपने बतौर लड़की अगर झेल लिया हो तो उसके बाद अपनी अहमियत का भी प्रचार करना होता है। वाह रे समाज, जो औरत इस समाज का उत्थान कर रही है, उसके अस्तित्व, शक्ति और विश्वसनीयता पर आप सवाल उठा रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस देश में औरतों को अपनी क्षमताओं का प्रमाण पत्र लेकर घूमना पड़ रहा है।
एक औरत की इज्ज़त मात्र उसके योनि में है इस देश में। एक लड़की समाज की लैंगिक असमानता को अंगूठा दिखा कर अपने लिए जगह बनाती है, स्कूल जाती है, नौकरी करती है, घर संभालती है, भरपूर मेहनत करती है और इज्ज़त कमाती है और यह देखकर समाज के लोग छटपटा जाते हैं। एक लड़की की तरक्की इस देश में अभी भी आंखों में खटकती है।
लेकिन जब उसका रेप होता है तो समाज के नज़र में उसकी इज्ज़त चली जाती है। वो इज्ज़त जिसे उसने सालों लगा दिए थे कमाने में, क्यों? क्योंकि किसी विकृत मानसिकता से ग्रसित पुरुष ने लड़की की योनि बिना उसकी सहमति के स्पर्श किया और समाज के लिए महिलाओं की इज्ज़त तो उसकी योनि में ही होती है। समाज से मेरा भरोसा उठ चुका है तो आप बताइए, न्याय क्या है? एक लड़की की असहमति या एक पुरुष की ज़बरदस्ती?
कैसे किसी लड़की की योनि के साथ हुए बदसुलूकी को उसकी इज्ज़त से जोड़ा जाता है? क्यूं एक लड़की की उसके अपने प्रति ईमानदारी, बड़ों के प्रति इज्ज़त और काम के प्रति लगन को इज्ज़त के तौर पर नहीं देखा जाता? क्यूं किसी की विकृत मानसिकता का दोष लड़की की इज्ज़त से जोड़ा जाता है? जवाब भी मैं आज एक ऐसे मृत समाज से मांग रहीं हूं जिन्होंने लड़कियों की इज्ज़त उसकी योनि भर भी नहीं छोड़ी। वह योनि जो मानव के सृजन का स्रोत है।
दरख्वास्त है उन सारे बुद्धिजीवियों से जो पत्रकार हैं, अपने कलम और शब्दों का सही उपयोग करें। बंद करे लिखना ‘एक लड़की की इज्ज़त लूटी।’ क्यूं वह पुरुष जिसने बिना एक लड़की की सहमती के उसकी योनि को स्पर्श किया सीना ताने घूमेगा? क्यूं उसकी इज्ज़त हर उस गली, नुक्कड़ और मुहल्ले में उछाली नहीं जायगी जहां-जहां तक आपका अखबार या न्यूज़ चैनल पहुंचता है? संभल जाइये इससे पहले कि लड़खड़ाता हुआ समाज आपकी इज्ज़त पर हमला करे।
समाज एक देश का प्रतिबिम्ब है। समाज क्या है, एक प्रश्नचिह्न? या फिर घिसी-पिटी मान्यताओं का एक जीता-जागता स्वरूप? परस्पर समाधिकारिता पर आधारित संगठन ही ‘समाज’ है।
एक लड़की का रेप के बाद नया नामाकरण होता है। समाज उस लड़की को दोषी ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। यह एक बहुत बड़ा कारण है कि यौन उत्पीड़न के बाद लड़कियां/ महिलाएं शिकायत दर्ज नहीं करवाती हैं। समाज को मैं सावधान करना चाहती हूं कि ऐसे बहुत सारे रेपिस्ट खुलेआम घूम रहे हैं जिसका शिकार आपके घर की महिलायें हो सकती हैं। समाज, आप सुरक्षित नहीं हैं, यह नतीजा है आपकी दोहरी मानसिकता का।
अनुरोध है लड़कियों से कि आवाज़ उठाइए, आपकी इज्ज़त आपका व्यक्तित्व है, योनि नहीं। क्या पता हमारी जैसी किसी लड़की ने आवाज़ उठाई होती तो आज आसीफा जैसी कितनी बच्चियां ज़िंदा होती?