सचमुच में महिलाओं/लड़कियों का सम्मान सिर्फ “बेटा और भाई” बनकर ही किया जा सकता है?
दरअसल, बात मेरे मन में वर्षों पूर्व, शायद 2003 से ही मेरे मन में आती रही है, जिस वक्त शायद मैं किशोरावस्था की दहलीज़ पर कदम रखने जा रहा था। जब कभी इसका उत्तर खोजने की कोशिश करता तो मेरे मन में एक अजीब बात आया करती थी कि क्या ये मेरा “यौनाकर्षण” है, फिर तो इसके बाद उस वक्त इस सवाल का जबाब खोजना इस समाज के अनुशासित मर्यादा को तोड़ने के जैसा था “जो मुझे आवारा बताने” को काफी था। खैर, आज भी कहा जाता है पर अब फर्क नहीं पड़ता।
फिर वक्त के साथ समय बदला, मैं बदला और बदला ये जहां और जो न बदला वो था मेरे किशोरावस्था से उपजा सवाल कि क्या सचमुच में महिलाओं/लड़कियों का सम्मान सिर्फ “बेटा और भाई” बनकर ही किया जा सकता है! वक्त के साथ बहुत कुछ बदला और बदल भी रहा है, पर बदल नहीं रहा मेरा वो सवाल। दशकों तक मेट्रो महानगरीय शहर में रहने के बाद भी मेरा सवाल वहीं गोते खा रहा है। शायद मैंने अपने सवाल को ना भूलने के बावजूद भी अपने मन के अलग कोठरी में बंद कर दिया था।
पर पिछले दिनों हुई कुछ घटनाओं ने फिर से इस ओर ध्यानाकर्षण किया, वैसे मैं हरसंभव कोशिशों से लगातार इस तरह के सवालों से जूझता रहा हूं, पर 21/04/2018 को मेरे एक “काबिल और होनहार” दोस्त के फोन कॉल के सवाल ने मुझे अचंभित तो नहीं पर चौंकाया ज़रूर कि समाज में नारी के सम्मान का पैमाना भी तय किया गया है, किया जा रहा है। उसका सवाल था, “तुम जो नारी सम्मान/अधिकार #RespectToWomen #WomenEmpowerment की बात करते हो तो क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी और नहीं है।”
मैंने बड़ी सहजता से उत्तर दिया था कि बहुत सारे पहलू तुम जानते ही हो और ‘गर्लफ्रेंड नहीं है’ का जबाब है नहीं। फिर आगे उसने तपाक से बोला, तुम आगे कोई गर्लफ्रेंड नहीं बनाओगे। मैंने फिर सहज होकर बोला ऐसा तो मैंने नहीं बोला कि आगे क्या होगा, कैसी होगी, क्यों होगी? तो फिर कहता है अच्छा तो तुम अभी भी परहेज नहीं करोगे। मैंने कहा असंवैधानिक और अमर्यादित भी नहीं है तो परहेज़ कैसा ? खैर, तुम छोड़ों यार भविष्य की बात में क्यों पड़ते हो।
इन सभी बातों का मतलब झट से उसकी अगली बातों से समझ आ गया कि जब तुम “गर्लफ्रेंड” बनाने से परहेज़ नहीं रखते तो नारी सम्मान की बात क्यों करते हो? तब मुझे बड़ा अजीब लगा क्या ये मेरे “काबिल और होनहार” दोस्त की सोच है? तब मुझे लगा सचमुच में लाडले सिर्फ “माँ और बहन” को ही सम्मान का हकदार मानते हैं। साथ-साथ समाज अभी भी नारी सम्मान को रिश्ते से परिभाषित करने में लगे हैं।
बात को समाज से जोड़ने का भी मेरा सिर्फ एक कारण है कि हम हमेशा सुनते हैं, “पढ़ा-लिखा शहरी समाज” नारी और अन्य मुद्दे पर गांव-देहात से दो कदम आगे सोचता है। पर कुछ इस तरह परिभाषित करने का तर्क मेरे पास पढ़े-लिखे शहरी समाज के बीच से ही आया।