डिप्रेशन यानि मानसिक अवसाद को हमारे देश में इतना सीरियसली लिया नहीं जाता। अगर देखा जाए तो आज के वक्त में डिप्रेशन की बीमारी बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। अक्सर हम लोग सर दर्द की शिकायत करते हैं और डिस्प्रिन या कोई अन्य जेनरिक दवा लेकर इलाज भी खुद ही कर लेते हैं। ये अनदेखी आने वाले समय में घातक साबित हो सकती है।
मेरी एक दोस्त है जो लगभग 20 से 25 दिन लगातार ICU में रही है और कारण है मानसिक अवसाद।
हम कभी कॉलेज में अच्छे दोस्त हुआ करते थे। जब उस कॉलेज से निकले और दूसरे कॉलेज गए तो फिर दोस्त भी बदल गए और सबकी राहें अलग हो गई। कोई प्राइवेट सेक्टर की तरफ निकल गया तो कोई सरकारी नौकरी की तलाश में तो कईयों के घर बस गए। मैं और वो अपनी क्लास में हमेशा फर्स्ट और सेकंड टॉपर हुआ करते थे। मैंने भी नौकरी के लिए सरकारी नौकरी का विकल्प लिया और उसने भी।
मेरे घर में दीदी थी, भाई था तो डिस्कस करते रहते थे। उसके घर में भाई बाहर जा चुका था और बहन शादी और बच्चे में व्यस्त रहती, ऐसे में उसने कई सारे पेपर दिए मगर कोई भी क्लियर नहीं हुआ या जो हुआ वो कैंसिल हो गया। नौकरी के दबाव का आलम ये हुआ कि वो इसी चीज़ की चिंता और तनाव में रहने लगी कि सभी दोस्त व्यस्त हो गए हैं या उनकी जॉब लग गई है और बस वो रह गई है।
ये तनाव इस कदर बढ़ता रहा कि उसे 24 घंटे सरदर्द रहने लगा लेकिन उसने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। बस डिस्प्रिन ली और काम चला लिया और फिर SSC का पीछा शुरू। एक पल ऐसा आया कि उसे खाने-पीने का भी होश नहीं रहा, फिर तबियत इस कदर बिगड़ी कि उसको ये ही होश नहीं रहा कि वह बोल क्या रही है। हर वक्त यही कहना कि वो तो मर गई है अब ये पूजा-पाठ करके वक्त ज़ाया ना करो।
तब जाकर एक न्यूरोलॉजिस्ट से कंसल्ट किया, उसके एक-दो काउन्सलिंग सेशन हुए लेकिन तब तक बात काफी आगे जा चुकी थी। उसने अपने परिवार वालों को पहचानना ही बंद कर दिया था। इसके बाद वह 25 दिनों तक ICU में रही और अब भी वो पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाई है। उसे कुछ ध्यान में आ जाए तो ठीक है, नहीं तो अब भी वह किसी को पहचान नहीं पा रही है। डॉक्टर कह रहे हैं कि तीन से चार महीने तक उसकी दवाइयां चलेगी और दिमाग को पूरा रेस्ट दिया जाना ज़रूरी है तभी उसके ठीक होने की संभावना है।
क्यों हम इन छोटी-छोटी चीज़ों को इतनी गंभीरता से नहीं लेते? बस सर दर्द समझ कर बीमारी की अनदेखी ना करें, अब उसकी जड़ें आगे और बहुत आगे तक फैल चुकी हैं।
ये इतनी घातक हैं कि इससे रोगी अपनी जान लेने पर भी मजबूर हो सकता है। अपने आस-पास के लोगों, अपने प्रियजनों से बात करिये, उनकी मानसिक दशा को समझिये और अगर वो ऐसी किसी बीमारी से ग्रस्त हैं, तो उनके दोस्त बनिये और इस अंधेरे गर्त से निकलने में उनकी मदद कीजिये।