अपने भविष्य के निर्माण हेतु जब हम गांव से निकलकर शहर की ओर अपना पहला कदम बढ़ाते हैं तो बहुत सी कल्पनाएं हमारे मन में उमड़ती-घुमड़ती हैं और मन ही मन एक सुन्दर भविष्य की रचना कर डालती हैं। बड़े-बड़े संस्थानों में दाखिला लेने की होड़ सी लगी होती है और उसमें अपने लिए जगह बना लेना विजय की शुरुआत मानी जाती है।
कुछ सालों से देश के उच्च संस्थान में लगातार हो रही घटनाएं इस सवाल के जवाब को ढूंढ़ना ज़रूरी बना देते हैं कि क्या उच्च संस्थान स्टूडेंट्स की अपेक्षाओं पर खरा उतर पाते हैं या नहीं? ऐसा ही एक संस्थान है “बिरसा कृषि विश्वविद्यालय” जो झारखण्ड की राजधानी रांची शहर के बीचोबीच स्थित है, आजकल लगातार विवादों में बना हुआ है।
उक्त संस्थान के महिला छात्रावास में कुछ दिन पहले अज्ञात युवकों द्वारा यौन हिंसा की घटना की खबर सामने आई थी। खबरों की सत्यता पता करने मैं विश्वविद्यालय परिसर पहुंची, जहां 19 फरवरी की रात ये घटना होने की बात सामने आई थी। संस्थान के कर्मचारियों से उपरोक्त घटना के संदर्भ में चर्चा करने से मालूम पड़ा कि ऐसी किसी घटना के घटित होने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण किसी के पास था ही नहीं।
मैंने परिसर में उपलब्ध सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने का निर्णय किया और पूरे परिसर में बे रोक-टोक घूमती रही, इससे यह तो स्पष्ट हो ही रहा था कि कोई भी बाहरी व्यक्ति संस्थान परिसर में आराम से प्रवेश भी कर सकता है और बगैर किसी बाधा के जब चाहे कहीं भी आ-जा सकता है। लचर सुरक्षा प्रबन्ध साफ-साफ सामने था।
वानिकी विभाग स्थित “प्रकृति महिला छात्रावास ” की महिला छात्राओं ने 19 फरवरी की रात को इस घटना की शिकायत की थी। वहां की वार्डन ने कहा कि यह अब तक की ऐसी पहली घटना थी और ऐसी कोई भी घटना पूर्व में कभी घटित नहीं हुई है। साथ ही यह भी बताया कि किसी ने भी किसी को भी प्रत्यक्षत देखा नहीं, सिर्फ खिड़की पर ठक -ठक की आवाज़ आई थी जिससे छात्राओं को यह लगा कि कोई तो है जो किसी निहित मंशा से खिड़की खटखटा रहा है। इसके बाद लड़कियों ने तुरंत ही शिकायत की और गॉर्ड ने पूरे छात्रावास परिसर का चक्कर लगाया पर आस पास कोई भी नहीं दिखा अपनी तस्सली के लिए उसने हवा में फायरिंग भी की पर दूर-दूर तक कोई नहीं था |
वार्डन की बात को स्थापित करने हेतु जब मैंने छात्रावास के सुरक्षा घेरों का जायज़ा लिया तब मैंने देखा कि छात्रावास की दीवारों पर रेजर वायर तो लगा हुआ है पर दीवारें इतनी नीची हैं कि कोई भी आसानी से छलांग लगाकर अंदर प्रवेश कर सकता है। विज़िटिंग बुक में जब मैंने एंट्री देखा तो समझ आया कि उसमें भी एंट्री शायद ही की जाती है,सीसीटीवी कैमरा लगे हुए तो हैं पर उनमें से कुछ काम कर रहे हैं और कुछ नहीं।
छात्राओं ने कहा कि हमें अब कोई शिकायत नहीं है और हमारी परेशानियों के निवारण के लिए प्रशासन ने करवाई शुरू कर दिया है, चूंकि वीसी हमारी शिकायतों पर ध्यान नहीं देते और ना ही समस्याओं की गहराई समझने को तैयार थे इसीलिए हम सभी ने घटना को सार्वजनिक करना आवश्यक समझा। वार्डन का कहना था कि हमने तुरंत ही एक्शन ले लिया है और महिला छात्रों की समस्याओं का हल निकालने की पूरी कोशिश की जा रही है।
यहां के हालात का जायज़ा लेने के बाद मैं पहुंची हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट, वहां के छात्र एवं छात्राओं से हमें इस विवि की कई सारी और भी खामियों का पता चला। इसी संकाय के एक विद्यार्थी ने बताया कि कुलपति किसी भी समस्या पर ध्यान नहीं देते और ना ही हमारी शिकायतों पर अमल किया जाता है। बाहरी लोगों का परिसर में आना -जाना आम बात है और यहां के विद्यार्थियों से वे मारपीट तक कर के निकल जाते हैं, पुलिस कम्प्लेन के बाद भी पुलिस इन्हें अज्ञात बता कर एफआईआर दर्ज करती है जबकि उन्हें सभी लोगों की जानकारी होती है।
बातों के क्रम में छात्र-छात्राओं से पता चला कि सुरक्षा पदाधिकारी की नियुक्ति अनुबंध पर की गयी है जो डिसेबल्ड हैं (अपंगता का प्रकार ज्ञात नहीं हो पाया), छात्रावास के अलावा किसी भी सेक्योरिटी गार्ड्स को बंदूकें उपलब्ध नहीं करवाई गई है। सीसीटिवी कैमरे लगे हुए तो हैं पर ज़्यादातर काम ही नहीं करते और ना ही समुचित रख-रखाव की व्यवस्था है।
इसी संकाय के एक विद्यार्थी और कई कर्मचारियों से पता चला कि कोई भी उच्च अधिकारी किसी भी घटना की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता। स्टूडेंट्स वेलफेयर के लिए अस्सी-अस्सी लाख रूपए तक दिए जाते हैं पर उसमें से आठ लाख तक भी खर्च नहीं किये जाते।
कृषि जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं उसके क्षेत्र में अनुसंधान हेतु इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी थी और आज भी इसके सञ्चालन हेतु आईसीएआर द्वारा काफी फण्ड जारी किये जाते हैं। यहां संसाधनों की कोई कमी नहीं है कमी है तो प्रशासन की कार्यपद्धत्ति मे।|
जैसा कि यहां के विभागीय सदस्यों एवं विद्यार्थियों द्वारा पता चला कि छात्र -छात्राओं की समस्याओं को न तो सुना जाता है और ना ही उसपर उचित कार्रवाही की जाती है। विवि के इस तरह से विवादों में घिरे रहने से उसकी साख कमज़ोर होती जा रही है, परिणामस्वरूप छात्र संख्या में भी गिरावट दर्ज की जा रही। महिला छात्रावास की वार्डन का कहना था कि मीडिया द्वारा घटना को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है जो अपेक्षित नहीं था।
ये जानकारियां लेने के पश्चात मैंने महसूस किया कि विवि की समस्याओं का इस तरह से सार्वजनिक होना पुरुष एवं महिला दोनों विद्यार्थियों के लिए परेशानियों को जन्म देता है। महिला छात्राओं के लिए तो यह और भी परेशानी का सबब बन जाता है क्यूंकि कई महिला स्टूडेंट्स के परिजन ऐसी खबरों से डर जाते हैं और बीच में ही पढ़ाई छुड़वा कर उन्हें घर ले जाते हैं।
जैसा की मैं समझती हूं सरकार को चाहिए कि सभी संस्थान को समुचित स्वायत्ता दी जाये और कुलपति की नियुक्ति में पारदर्शिता बरती जाये। साथ ही एक अलग सुरक्षा तंत्र स्थापित की जाये जहां महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला कर्मचारियों की नियुक्ति भी उचित संख्या में की जाये। इसके अलावा एक ऐसे शिकायत सेल की स्थापना की जाये जहां सभी समस्याओं को सुना जा सके और उसके निपटारे का उचित प्रबंध किया जा सके। सभी कर्मचारियों की नियुक्ति में भी पारदर्शिता बरती जाये तभी विवि में एक कुशल प्रबंधन हो पायेगा और बच्चों को बिना किसी डर के अपनी पढ़ाई पूरी करने को प्रेरित करेगा। वो कहते हैं ना कि एक सुखद वातावरण ही एक सुंदर भविष्य का निर्माण कर सकता है।
श्वेता सुमन Youth Ki Awaaz के फरवरी-मार्च 2018 बैच की ट्रेनी हैं।