23 जनवरी 2018 को दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस में अपनी फिल्म ‘पैडमैन’ के प्रचार के लिए अक्षय आये थे। बड़ी भारी संख्या में स्टूडेंट्स अपने प्रिय अभिनेता को देखने जुटें। इस भीड़ को फिल्म यूनिट और विद्यार्थी परिषद की ओर से सैनेटरी पैड बांटे गए।
अक्षय के सामने सैनेटरी पैड हवा में लहराकर यह संदेश देने की कोशिश की गयी कि माहवारी से जुड़े मुद्दों और समस्याओं पर खुलकर बात करने की ज़रूरत है। खूब उत्साह और शोर के बाद वे पैड्स जो अभी थोड़ी देर पहले तक जागरूकता का परचम बने हाथों में लहरा रहे थे, पूरे कैंपस में जहां-तहां छितरे पड़े थे। देखते ही देखते नए, साफ सैनेटरी पैड कूड़े के ढेर में बदल गए। ऐसे आयोजनों से ना तो अवेयरनेस आती है ना ही शर्म की दीवारें तोड़ने से इनका कोई लेना देना है।
इससे कहीं बेहतर क्या यह नहीं होता कि इन नए, साफ सैनेटरी पैड्स को किसी ऐसी संस्था को दिया जाता जहां महिलाएं काम करती हैं। किसी स्लम, विद्यालय, कार्यालय, फैक्ट्री या ज़रूरत की ऐसी ही किसी दूसरी जगह भेंट किया जाता जहां इनका सही इस्तेमाल होता।
ट्विंकल खन्ना सोशल मीडिया पर बहुत मुखर हैं, लेकिन साल भर पहले जब फिल्म बननी शुरू हुई या उससे भी पहले जब कभी ‘अरुणाचल मुरुगनाथम’ के बारे में सुना होगा तब तस्वीर नहीं लगाई। अब मुहिम की तरह इसे चलाना चाह रही हैं ताकि फिल्म प्रमोशन हो। प्रचार के लिए और बहुत से तरीके हो सकते हैं लेकिन ‘सेल्फी विद पैड’ उनमें सबसे सस्ता, चलाऊ और चमकाऊ तरीका है। इसीलिए ट्विंकल खन्ना, राधिका आप्टे और अब आलिया तक सब इस मुहिम में अपना योगदान दे रही हैं।
इधर फेसबुक भी ट्विंकल खन्ना के इस आह्वान में शामिल हो पीछे-पीछे चल पड़ा है। पीछे चलना बाज़ार का काम है। बड़े मुद्दों पर साथ-साथ चलिए और हर बड़ी चिंता को प्रमोशनल इवेंट में बदल देने की हड़बड़ाहट से बचिए। ऐसे मुद्दों पर अतिरिक्त की भावुकता नहीं, अधिक जागरूकता की ज़रूरत है।
बड़ी भारी संख्या में पैडमैन की चिंताओं से सरोकार रखने वाले इन युवाओं से पूछ कर देखिए, क्या आपने अपने आसपास ऐसी सैनेटरी पैड वेण्डिंग मशीन को देखा है, जहाँ से ज़रूरत के समय सैनेटरी पैड लिए जा सकें। बाकी जगहों की बात तो छोड़िए, सिर्फ इतना ही बताइए कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कितने कॉलेजों में ऐसी मशीनें हैं, जहां से लड़कियां अचानक आ गयी डेट के बाद जाकर सैनिटेरी पैड ले सकें। पैड के परचम लहरा देने से विश्वविद्यालय में जागरूकता नहीं आयेगी, ना ही सेल्फी लगाने से सोसायटी में।
बात बोल्ड होने और बोल्ड दिखने से ज़्यादा गम्भीर है। असली चिन्ताएं अब भी वहीं हैं जिनसे अरुणाचल मुरुगनाथम लड़ रहे हैं।
उन्होंने जो बेहद ज़रूरी काम किया वो ये नहीं की पैड बनाया, बल्कि महंगी कीमतों पर बेचे जा रहे ज़रूरत की चीज़ को उन्होंने स्वास्थ्य लाभ और उपलब्धता के कारण सस्ती कीमतों में तैयार करने की चुनौती को पूरा किया। आप अपनी अतिरिक्त भावुकता में बात को कहीं और मोड़ दे रहे हैं। आप काले पोलिथीन में पैक करने, केमिस्ट से मांगकर लेने की शर्म तोड़ने के लिए ‘सेल्फी विद पैड’ हुए जा रहे हैं। आप झिझक तोड़ने की जो मुहिम चला रहे हैं उसे लेकर तो फेसबुक जनता काम भर की जागरूक है। लेकिन पीरियड्स से जुड़ी स्वास्थ्य सम्बंधी बातें इन सबमें हर बार पीछे ही छूट जाती हैं।
असल मुद्दा है टैक्स फ्री सैनिटेरी पैड का, सस्ते दामों पर उसकी उपलब्धता का। सभी सार्वजनिक, कार्यालयी स्थलों पर सैनेटरी पैड की सहज उपलब्धता की। बात इससे और बड़ी है। माहवारी की असहनीय पीड़ा, उपचार, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए उठाए जाने वाले ज़रूरी कदम, जानकारी के अभाव में होने वाली बीमारियों से जुड़ी बातें ऐसे चमकाऊ अभियानों में हर बार अनुत्तरित रह जाते हैं। जिनके जवाब कोई और नहीं ढूंढेगा हमारे लिए। हमें यहीं, इस बड़े सोशल प्लैटफॉर्म पर उन्हें ढूंढना, जानना और बांटना है।
इस बड़े मुद्दे की अहमियत एक प्रमोशनल इवेंट जितनी ना रह जाए इसलिए इसकी गम्भीरता को समझें। अभी जिस पैड की हम चर्चा कर रहे हैं हो सकता है आगे चलकर पीरियड्स में देखभाल का ये तरीका भी बदल जाए। सैनेटरी पैड के इस्तेमाल से होने वाले स्वास्थ्य सम्बंधी असर को लेकर अब तो कई नए शोध आ रहे हैं, उन्हें पढ़िए। ऑर्गेनिक पैड, क्लॉथ पैड, हाईजीन वॉश और पीरियड्स पर बार-बार, लगातार बात कीजिए। बात कीजिए ताकि सही और जवाब नए रास्ते मिलें। खुश, स्वस्थ और जागरूक रहिए तब डालिए एक बढ़िया-सी सेल्फी। और हां, अपना ध्यान रखिए।
एडिटर्स नोट: अपराजिता शर्मा दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस, हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। अपराजिता हिमोजी भी बनाती हैं।