क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति की कल्पना कर सकते हैं जो पोलियो होने के बावजूद भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे खेल में भाग ले जहां अत्यधिक शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है? राजिंदर सिंह रहेलु इस सवाल का जवाब हैं।
इंडियन पैरा ओलम्पिक पॉवरलिफ्टर रहेलु का जन्म 22 जुलाई 1973 को पंजाब के जलंधर ज़िले के मेहसमपुर गांव के एक नुक्ता कश्यप राजपूत परिवार में हुआ था। छोटे से परिवार में हुए इनके जन्म की खूब खुशियां मनाई गई, लेकिन 8 महीने के बाद इनकी माँ को इनके पोलियोग्रस्त होने का पता चला। एक ऐसी बीमारी जिसका पता चलने के बाद सारे परिवार में मायूसी छा गई।
इसके बाद लोगों ने उनके परिवार को सहानुभूति देना शुरू कर दिया, वहीं कुछ लोग यह भी कहने लगे, “ऐसी ज़िन्दगी होने से अच्छा तो ना होना है।” लोगों के इन शब्दों के जवाब में रहेलु आज एक अर्जुन अवार्डी हैं, जो उन्हे डॉ. कलाम द्वारा प्राप्त हुआ। इनकी यह कहानी इस वीडियो में देखें-
रहेलु का कहना है कि उनके परिवार का साथ और साहस, उनकी हिम्मत बना। पॉजिटिव थिंकिंग, आगे बढ़ते रहना, पीछे मुड़ के तो देखना ही नहीं है, ऐसी बातों ने रहेलु को इतना तो बता ही दिया था कि शारीरिक विकलांगता यानी फिजिकल डिसेबिलिटी उनके जीवन में बाधा नहीं है।
इस एहसास और उनके माता-पिता की हिम्मत के साथ उन्होंने 1996 में सुरेंद्र सिंह राणा से वेट लिफ्टिंग सीखनी शुरू की और उन्हें काफी सराहना मिली। इसी सराहना से मिले जोश से रहेलु ने कोच पवन गोनेल्ला के साथ मिलकर पंजाब के लिए गोल्ड जीता और एशियन बेंच प्रेस चैंपियनशिप दिल्ली में पहला अटेम्प्ट दिया। 1998 में वो नेशनल पॉवरलिफ्टिंग चैंपियनशिप के विजेता बने, एथेंस (ग्रीस) में 2004 समर पैरा ओलम्पिक्स में 56 किलोग्राम श्रेणी में भाग लिया, 157.5 किलो वजन का भार उठाने के बाद उन्होंने अंतिम स्टैंडिंग में चौथा स्थान हासिल किया। 2006 में उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया और 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में वह सिल्वर विजेता रहे। इस तरह उनकी उपलब्धियों का सिलसिला बढ़ता रहा।
इस सफर के दौरान उन्होंने अनेकों कठनाइयों का सामना किया, जहां उन्हें आने-जाने में दिक्कतें आई लेकिन उन्होंने उस समस्या का हल ढूंढा और एक सस्ती सी व्हील चेयर अपने लिए बनवाई। उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि उनका मानना है, “कोई भी परिस्थिति आपको रोक नहीं सकती।” रहेलु आज ‘पंजाब सोशल आर्गेनाइजेशन’ का हिस्सा हैं और ‘पैरा स्पोर्ट्स एकैडमी पंजाब’ में वेट लिफ्टिंग कोच भी हैं।
“पैसे से ज़्यादा हिम्मत के दो शब्द इंसान को कहां पहुंचा सकते हैं”, इसका उदाहरण रहेलु खुद हैं। एक गरीब परिवार का विकलांग बालक आज इंडियन पैरालिम्पिक पॉवरलिफ्टर है।