देशभर में सैनेटरी पैड को लेकर चर्चा गर्म है, सोशल मीडिया पर सैनेटरी पैड्स को लेकर लोग पोस्ट लिख रहे हैं और सेल्फी पोस्ट कर रहे हैं। एक ऐसे विषय पर जिस पर सामान्य रूप से पहरेदारी रहती है, तमाम तरह के धार्मिक अंधविश्वास और कुप्रथा की परंपरा रही है, वैसे विषय पर इस तरह से पहली बार लोग काफी खुलकर बात करते दिख रहे हैं।
लेकिन दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनका मानना है कि इस चर्चा के केन्द्र में सिर्फ अक्षय कुमार हैं जो पीरियड्स जैसे संवेदनशील मुद्दे को बाज़ार के हवाले करना चाहते हैं। लेकिन अक्षय कुमार के साथ-साथ अरुणाचलम मुरुगनंथाम के बारे में भी लोगों को जानने का मौका मिल रहा है, जिन्होंने काफी परेशानियों के बावजूद सैनटरी पैड्स जैसे संवेदनशील मुद्दे पर काफी काम किया।
लेकिन वहीं दूसरी तरफ ओडिशा के गंजम ज़िले में एक ‘पैड वुमन’ भी हैं, जिनके बारे में कोई बात नहीं कर रहा है। उनके बारे में भी हम सभी को जानना चाहिए। बी गोपम्मा मछुआरे समुदाय से आती हैं। भारत के दूसरे समाजों की तरह ही ओडिशा के मछुआरे समुदाय में भी पीरियड्स को अपवित्र और अस्वच्छ माना जाता है।
अन्य समाजों की तरह ही ओडिशा के गंजम में भी समाज और महिलाओं के बीच इस सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया के बारे में कई तरह के मिथ और अंधविश्वास प्रचलित हैं।
महिलाओं को इस दौरान घर के मुख्य कामों और लोगों से दूर रखा जाना, धार्मिक कार्यों के लिये अपवित्र घोषित कर देने जैसी समस्याएं आम हैं। यही वजह है कि महिलाएं खासकर लड़कियां पीरियड्स के दौरान अपने कपड़ों को असुरक्षित जगहों पर छिपा कर रखती हैं, वो उन कपड़ों को खुले में नहीं सुखाती। इस तरह के कपड़े जो न तो ठीक तरह से सुखाये जाते हैं और न ही साफ तरीके से रखे जाते हैं को बार बार इस्तेमाल करने लड़कियों में कई तरह की गंभीर बीमारियों की आशंका बनी रहती है।
यहां तक कि इन बिमारियों के बारे में लड़कियां शर्म के कारण खुलकर बात भी नहीं कर पाती हैं और ऐसे मामले तब सामने आते हैं जब स्थिति काफी बिगड़ चुकी होती है। इस तरह के प्रैक्टिस की वजह से महिलाओं में कैंसर और दूसरी गंभीर बिमारियां भी देखी जाती हैं।
बी गोपम्मा बताती हैं कि हम ग्रामीण लड़कियों और महिलाओं की इन समस्याओं को देखते हुए उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिये पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहते थे।
लेकिन इसमें एक रुकावट थी- पैसे का अभाव। गांव के नज़दीक बाज़ार तो है लेकिन वहां जाकर पैड्स खरीदना गरीब लड़कियों के लिए मुमकिन नहीं है। ‘दिव्य ज्योति महिला विकास’ एक स्वंय सहायता समूह है जिससे गोपम्मा जुड़ी हुई हैं। उन्होंने सैनटरी पैड को बाजार से जोड़ने का प्रयास किया। पैड्स बनाने का ट्रेनिंग लेकर एक छोटी सी मशीन लगाई गई, जहां हर रोज़ करीब चार से पांच सौ सैनेटरी पैड्स बनाए जाते हैं। पैड्स बनाने के काम में स्थानीय लड़कियों और महिलाओं को जोड़ा गया और फिर जागरूकता के साथ-साथ आर्थिक मदद भी इन महिलाओं को मिल सकी। पैड के एक पीस की कीमत 3 रुपये है, जिसे स्थानीय दुकानों और स्वंय सहायता समूहों में बांटा जाता है। गोपम्मा अभी 27 गांवों में काम कर रही हैं।
इस काम में कई चुनौतियां हैं। मसलन, पैड्स को लेकर जागरुकता का अभाव। इसलिय दिव्य ज्योति महिला विकास का काम सैनटरी पैड्स को बेचने से ज़्यादा उसके बारे में जागरुकता लाने का है। स्कूलों और कम्यूनिटी में स्थानीय भाषा में विडियो, डॉक्यूमेंट्री, ग्रुप डिस्कशन, वर्कशॉप जैसे काम को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाता है।
आज गोपम्मा के साथ पूरी एक टीम इस मुद्दे पर काम कर रही है। न सिर्फ पीरियड्स बल्कि जैविक खेती और महिलाओं के दूसरे मुद्दों पर भी काम किया जाता है। इस काम के लिये बी गोपम्मा को ‘चेंज एजेंट ऑफ ओडिशा-2017’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
जब अक्षय कुमार सैनटरी पैड्स को लेकर मीडिया की खबरों में हैं, उस वक्त ज़मीनी स्तर पर इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर काम करने वाली बी गोपम्मा जैसी स्थानीय नायिका के काम को दर्ज किया जाना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।