मेरा नाम रामेश्वर मालवीय है। मैं मध्य प्रदेश के गांव- बरुखेड़ी, पोस्ट-मऊ, तहसील-पचोर, जिला- राजगढ़ से हूं। मैं एक अनुसूचित जाति वर्ग का छात्र हूं और एक छोटे से गरीब किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूं। तमाम सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझते हुए मैंने 2015-16 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल (म.प्र.) के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के एमएससी ईएम (M.Sc. E.M.) कोर्स में प्रवेश लिया।
कोर्स की फीस की पहली किश्त मैंने अपने मामा से उधार लेकर भरी थी। आर्थिक तंगी के कारण मैं फीस की दूसरी किश्त नहीं भर पा रहा था, जिसकी सूचना मैं तमाम ज़िम्मेदार लोगों को पहले ही दे चुका था।
बाद में मैंने दोस्तों से उधार लेकर ऑफलाइन फीस जमा करने का निवेदन किया, लेकिन नियमों का हवाला देकर फीस जमा नहीं की गई। मैंने फीस में कुछ राहत देने के लिए भी आवदेन किया था, लेकिन उसे भी मान्य नहीं किया गया। शायद इसलिए क्यूंकि मैं दलित वर्ग से आता हूं, अगर मेरी जगह किसी अन्य वर्ग का छात्र होता तो उसे राहत दे दी जाती।
मेरा एनरोलमेंट हो चुका था और दूसरी किश्त के साथ परीक्षा फीस भी जमा करनी होती है, जो मैं नहीं भर सका था। इस वजह से मेरा परीक्षा फॉर्म नहीं भरा जा सका और मुझसे कहा गया कि, तुम्हारा प्रवेश निरस्त हो गया है। लेकिन मुझे अभी तक प्रवेश निरस्त होने का आदेश विभाग से नहीं मिला था। मैंने फिर से दूसरे सेमेस्टर में बैठने का आवदेन किया, जिस पर संस्था के तमाम ज़िम्मेदार लोग मुझे पूरा साल आश्वासन देते रहे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस तरह मेरे जीवन का एक कीमती साल खराब कर दिया गया, क्यूंकि यह एक दलित-आदिवासी विरोधी संस्था है।
मेरा एक साल खराब होने से मैं बुरी तरह टूट चुका था। कई बार अपने आप को खत्म करने का मन भी बना चुका था, लेकिन किसी तरह मन को काबू किया, क्यूंकि मेरी शादी हो चुकी थी। मेरे पीछे और भी ज़िंदगियां थी, मेरी पत्नी, माँ-बाप और परिवार को देखकर मैंने निश्चय किया कि मैं दुबारा कोशिश करूंगा। मुझे पत्रकारिता में बहुत रुचि है, क्यूंकि मैं एक नए क्षेत्र में जाना चाहता था। मीडिया में दलितों और आदिवासियों की संख्या और स्थिति को देखते हुए मैंने इस क्षेत्र को चुना था, ताकी इन तबकों के लोगों की आवाज़ बन सकूं। लेकिन मुझे क्या पता था कि मैं एक ऐसे विश्वविद्यालय में जा रहा हूं, जहां मेरी आवाज़ को ही दबा दिया जाएगा।
मैंने अगले वर्ष 2016-17 में विश्वविद्यालय के उसी विभाग के मास्टर आॅफ ब्राॅडकास्ट जर्नलिज्म (MBJ) में प्रवेश लिया। इस बार मैंने कोर्स बदल दिया था क्यूंकि इसमें फीस कम थी।
मेरा जो एक साल बर्बाद हो चुका था उसकी जानकारी मेरे घरवालों को नहीं थी और उन्हें आज भी इस बारे में पता नहीं है। मैं पूरा साल घर वालों से झूठ बोलता रहा और आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित होकर तनाव का जीवन जीने लगा।
इस वजह से मैं साइनस इंफेक्शन की गंभीर बीमारी का शिकार हो गया, जिसका मेरे जीवन पर गहरा असर पड़ा। मैंने इन सभी परेशानियों को झेलते हुए अपनी पढ़ाई को जारी रखा। मैं अपनी सभी परेशानियों को अपने अंदर दबाकर क्लास अटेंड करने लगा। इसी बीच मैं बीमारी के कारण वि.वि. नहीं जा पाया और मुझे लम्बी छुट्टी लेनी पड़ी। इलाज के बाद जब मैं लौटा तो तत्कालीन विभागाध्यक्ष मुझे प्रताड़ित करने लगे।
यह घटना 17-10-2016 की है जब विभाग के एचओडी बोले, “तुम इस तरह गायब रहोगे तो परीक्षा नहीं दे सकोगे।” जब मैंने कहा कि सर मैं बीमार था, आप से छुट्टी लेकर गया था और मेरे पास मेडिकल भी है। तो जवाब में एचओडी बोले, “मैं मेडिकल-वेडिकल मान्य नहीं करता हूं, नियम तुम्हें पता हैं या मुझे?” इसके जवाब में मैंने कहा, “सर मेडिकल तो मान्य होता है और मैं इस विश्वविद्यालय का ही विद्यार्थी हूं, कुछ नियम तो मुझे भी पता है।”
इसके बाद एच.ओ.डी. भड़क गए और आपा खोकर बोले- “तुम मुझसे बहस कर रहे हो, तुम अपना पिछला साल भी खो चुके हो अब भी कहीं के नहीं रहोगे। तुम कामचोर, नीच-निकम्मे हो, तुम जैसे लोग पढ़ने लायक ही नहीं होते। तुम्हारे साथ यही होना था, पागल हो तुम और क्लास से तुरंत बाहर निकल जाओ।” मैं यह सब चुपचाप सुनता रहा, लेकिन क्लास से बाहर जाने की बात मुझे समझ नहीं आई। फिर मैंने कहा कि सर मेरी गलती क्या है जो मैं कक्षा से बाहर जाऊं, मेरी गलती बता दीजिये मैं चला जाऊंगा। एचओडी यह सुनकर और भड़क गए और बोले कि मुझसे ज़बान लड़ाता है। इसके बाद उन्होनें चपरासी को कहकर गाॅर्ड को बुलाया और मुझे कक्षा और विश्वविद्यालय से बाहर करवा दिया।
मैंने इस घटना का विरोध किया और मेरे साथ हुए जातिगत भेदभाव कि शिकायत कुलपति, कुलसचिव, अजाक थाना, अजाक एसपी, मानवअधिकार आयोग, मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और एचआरडी सहित तमाम जगहों पर की, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
मुझे बस आश्वासन दिए जाते हैं कि ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन इंसाफ और हक की मेरी ये लड़ाई आज भी जारी है। मेरे घर के हालात ठीक नहीं है, घर में दरवाज़ा तक नहीं है। खस्ताहाल टपकती छत के रूप में सिर के ऊपर मौत मंडरा रही हैं, जो कभी भी गिर सकती है, इसके साथ विश्वविद्यालय का पहाड़ भी मेरे सिर पर खड़ा हैं। माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में यह कहानी केवल मुझ अकेले की ही नहीं है, जातिवाद का दंश झेलने वाले स्टूडेंट और फैकल्टी के यहां ऐसे दर्जनों किस्से मौजूद हैं।
मेरा आपसे अनुरोध है कि आप मेरी इस कहानी को पूरी दुनिया के सामने रखें, जिससे पता चल सके कि आखिर मीडिया में दलित-आदिवासी समुदाय के लोगों की संख्या नहीं के बराबर किन वजहों से है।
एडिटर्स नोट: इस मामले में Youth Ki Awaaz ने यूनिवर्सिटी प्रशासन से बात की-
यूनिवर्सिटी के वीसी बी.के. कुठियाला का रामेश्वर मालवीय के संबंध में कहना था, “इस स्टूडेंट की अटेंडेंस का मामला है, पूरी जानकारी के लिए रजिस्ट्रार से बात कर लीजिए।”
रजिस्ट्रार संजय द्विवेदी ने कहा, “यह स्टूडेंट यूनवर्सिटी में MBJ कोर्स के अंतिम सेमेस्टर का छात्र है, जो उक्त मामले के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाती आयोग में गया था। आयोग के आदेशानुसार रामेश्वर मालवीय की फीस वापस कर दी गई है और राष्ट्रीय अनुसूचित जाती आयोग के निर्देशों के अनुसार कार्रवाई की जा रही है।”
इसके बाद जब Youth Ki Awaaz ने रामेश्वर मालवीय से बात की तो उन्होंने बताया, “मुझे पहले से ही तमाम तरह के आश्वासन दिए जाते रहे हैं। मुझसे कहा जाता रहा है कि मेरा साल खराब नहीं होने दिया जाएगा और दोषियों पर उचित कार्रवाई की जाएगी, लेकिन अभी तक किसी के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया है और ना ही मुझे अभी तक फीस ही वापस की गई है। यूनिवर्सिटी प्रशासन से यही जवाब मिलता है कि कार्रवाई चल रही है।”