रजनीश त्यागी:
यह कहानी 43 वर्ष की शकुन्तला देवी की हैं जो की भलस्वा, उत्तर-पश्चमी दिल्ली में आपने तीन बच्चो के साथ रहती हैं। शकुंतला एक निम्न मध्यम वर्ग से आने वाली औरत हैं जिनके सपने भी उनकी ही तरह बहुत सरल हैं। लेकिन उनके सपनो को पूरा करने की यात्रा बिल्कुल भी सरल नहीं थी। बारहवीं कक्षा के बाद आर्थिक परेशानियों की वजह से उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी और सन 2000 में एक सामूहिक विवाह सम्मलेन में श्री रामेश्वर सिंह से उनकी शादी करा दी गई।
शादी के एक माह बाद ही निजी कारणों से बाकी परिवार के सदस्यों से उन्हें अलग होना पड़ा, उनके पति एक फैक्ट्री मे कार्य करते थे पति का वेतन 5000 रूपये माह था। उनका वैवाहिक जीवन वैसा ही था जैसे कि किसी आम निम्न मध्यम वर्ग का होता है- कमजोर आर्थिक स्थिति, भविष्य की चिंता, रोजमर्रा की उलझने आदि। सन 2005 तक तीन बच्चों की माँ बनने के बाद ज़िम्मेदारियां और बढ़ गई| शकुन्तला का सपना था कि अपना घर हो और तीनो बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करे, शकुंतला देवी चाहती थी दोनों बेटे सरकारी नौकरी करे तथा बेटी फैशन डिजाइनर का कोर्स करे और आपना व्यपार चलाएं।
जब उनके बच्चे स्कूल जाने के लायक हुए, तो शकुन्तला देवी को स्कूल में छोटे बच्चों को पढ़ाने का प्रस्ताव मिला। परन्तु उनके पति ने विरोध किया, शकुंतला ने ये कहकर समझाया कि जिस स्कूल में पढ़ाना चाहती हैं, उसमें ही उनके बच्चे पढेंगे और एक बच्चे की फीस भी माफ हो जाएगी, तो सुबह से दोपहर तक पढ़ाने में क्या बुराई है? इस तरह उनके पति मान भी गये| हालांकि स्कूल में उनका वेतन बहुत ही कम था, मात्र ७०० रूपए। उनके पति तथा उनका खुद का भी यही मानना था कि यह वेतन आटे में नमक के बराबर है, परन्तु 700 भी बहुत महवपूर्ण थे, उनका जीवन किसी तरह आगे बढ़ाने के लिए!
लेकिन सितम्बर माह 2010 मे पीलिया और बुखार की वजह से और इलाज ना होने के कारण, उनके पति का देहांत हो गया और शकुन्तला बिल्कुल अकेली पड़ गई। अपने बच्चों को अब उन्हें अकेले ही संभालना था अपनी एक छोटी सी नौकरी के अलावा उनके पास कोई सहारा नहीं था। बहुत सी दिक्कत परेशानियों के साथ जीवन आगे बढ़ रहा था। उन्होंने घर का खर्च चलाने के लिए किसी से पैसे उधार लिए, पर वापिस समय से नहीं दे पा रही थी।
उन्होंने कुछ और काम ढूंढने का प्रयास शुरू किया। सन 2015 में चिंतन के ‘नो चाइल्ड इन ट्रैश’ कार्यक्रम में उन्होंने शिक्षिका के पद पर कार्य करना शुरू किया। उनके अनुसार चिंतन से उन्हें बहुत बड़ा आर्थिक सहारा मिला हैं, अब उन्होंने कुछ रूपये बचाना शुरू कर दिए| यहाँ सहकर्मी मददगार है। यहां पर आकर उनके शिक्षण कौशल में वृद्धि हुई। उन्होंने कहा की चिंतन में बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाना, उन्हें काफी पसंद आया| चिंतन में आने के १ साल बाद वो अपना एक छोटा सा घर खरीद पाई!
उनका मानना है कि चिंतन में आने के बाद से उनके जीवन में काफी बदलाव आया है। उन्होंने यहां आने के बाद आगे पढ़ने के बारे में सोचा और वह चाहती हैं कि अपने सपनों की बागडोर संभाल ली! वे चाहती है उनके बच्चे आगे पढ़े तथा स्वाबलंबी बने उनकी बेटी बरवी कक्षा में है तथा साथ ही साथ सिलाई भी सीख रही है उनके बेटे जो अभी 10वीं तथा 9वीं कक्षा में पढ़ रहे हैं इतनी संगर्ष भरी ज़िंदगी होने के बाद भी शकुन्तला हमेशा खुश रहती है हम उनके इस कभी ना हारने वाले जस्बे को सलाम करते है हमारे लिए ये एक प्रेरणा स्त्रोत कहानी है और हम दुआ करेंगे कि वह अपने सपने पूरे कर सकें।