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पुरुषों का सेक्स प्लेज़र और महिलाओं का सेक्स गंदी बात!

स्वरा भास्कर के स्वर को और मुखर करते हुए मैं ये पोस्ट लिख रही हूं।

उनके शब्दों में ”रेप सर्वाइवर्स को भी ज़िंदा रहने का पूरा हक है, पति या उनके पुरुष रक्षक की मौत के बाद भी महिलाओं को ज़िंदा रहने का पूरा हक है, हां महिलाओं के पास ये अंग होता है, लेकिन उनके पास और भी बहुत कुछ है। इसलिए  पूरी ज़िंदगी वजाइना पर केंद्रित, इस पर नियंत्रण करते हुए, इसकी पवित्रता बरकरार रखने की कोशिश में नहीं बीतनी चाहिए क्योंकि वजाइना के बाहर भी एक ज़िंदगी है ”

हमारे समाज की विडंबना ही है कि वो आधुनिकता का आवरण ओढ़ कर पुरुषों को अपनी मर्ज़ी से जीने का समर्थन करता है, वहीं दूसरी ओर महिलाओं को सिर्फ इज़्ज़त बचाने लिए बने दायरों में सीमित कर रखा है।

आधुनिकता की बड़ी बाते करने वाले लोग, वजाइना की पवित्रता पर जितना ज़ोर देते हैं उतना महिलाओं के किसी अन्य मुद्दे पर नहीं देते हैं। लोग अच्छी डिग्रियां, संपन्नता, मान-सम्मान हासिल करने के बाद खुद को आधुनिक होने का दंभ भरते हुए नहीं थकते हैं, सामाजिक मुद्दों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं सुधारों के ऊपर चर्चाएं करते हैं, कैंडल मार्च में  सेल्फियां लेते हैं, फोटो खिचवाते हैं और बड़ी शान से अपने फेसबुक पर # लिखकर डालते हैं, लेकिन वही लोग महिलाओं को लेकर निहायत ही दकियानूसी सोच का भी तहे दिल से समर्थन करते हैं, दोहरी सोच की परम्परा निभाते हुए भी नहीं थकते हैं।

मैं एक सच्चा किस्सा बताना चाहूंगी- “मां बाप ने अपनी एक बेहद पढ़ी लिखी और नौकरी पेशा लड़की की शादी अच्छे घर में तय कर दी, ससुराल पक्ष के लोग आधुनिकता का दंभ भरते नहीं थके तो मां बाप ने सोचा लड़की यहां सुखी रहेगी। शादी तय होने के कुछ दिनों के बाद ही होने वाले कथित पति ने लड़की से उसकी वर्जिनिटी पर सवाल करने शुरू कर दिए, लड़की के लिए ये बेहद अपमानजनक पल होते थे लेकिन वो सामाजिक भय से चुप रही, ये सिलसिला शादी के कुछ हफ्तों पहले तक चलता रहा, लड़के ने यहां तक बोला कि लड़की को उसे डॉक्टर का सर्टिफिकेट देना होगा जिसमें उसके वर्जिन होने को सही बताया गया होगा तभी वो उस लड़की को शादी के बाद स्वीकार करेगा। इन सब किस्सों में उस लड़के कि माँ भी उसका साथ दे रही थी। आखिरकार लड़की ने अपने भावी भविष्य की कल्पना करके शादी से मना कर दिया।

एक और दूसरे किस्से में -”लड़की ने अपने होने वाले आधुनिक मंगेतर से वुमेन सेक्शुएलिटी के बारे में बात करते हुए ये पूछ लिया कि क्या तुम  मुझे बेहतर सेक्सुअल लाइफ दे सकोगे? तो मंगेतर उसे बोला कि मैंने ’50 शेड्स ऑफ़ ग्रे’ जैसी किताबें पढ़ी तो हैं क्योंकि मैं बेहद आधुनिक हूं, लेकिन बेहतर सेक्शुअल लाइफ के लिए मुझे, तुम्हें यूरोप लेकर जाना पड़ेगा क्योंकि इंडिया में रहकर तो मैं तुम्हे सिर्फ बच्चे पैदा करने तक ही कुछ कर सकता हूं,उससे ज़्यादा कुछ कोशिश करूंगा तो मेरा परिवार मुझे गलत समझ लेगा।” लेकिन तुम्हें ऐसी बाते करते हुए शर्म आनी चाहिए।

ये दोनों कहानियां और स्वरा भास्कर का लेटर, समाज का दकियानूसी और दोहरेपन से भरा हुआ चेहरा हमारे सामने लाती हैं।

सभी मर्दों को अपनी बीवी छुईमुई सी और वर्जिन चाहिए होती हैं, ताकि वो उनकी अहम् से भरी सेक्शुअल फंतासी(जिसमे वर्जिन होना और पहले बार सेक्स में ब्लीडिंग होना अनिवार्य है) में खरी उतर सके, और वो ताउम्र उसको हिफाज़त के नाम पर सात पर्दों के अन्दर रख सकें। लेकिन दूसरी तरफ उन्हें अपनी ज़्यादा सेक्शुअल डिज़ायर को पूरा करने के लिए एक वेश्या भी चाहिए जिसके साथ वो खुलकर वो सब कर सके जो उन्हें अच्छा लगता है। क्योंकि जो औरत उनके घर में है उसकी तो कोई अपनी इच्छा नहीं होती है, होगी भी तो वो ज़ाहिर करके चरित्रहीन जैसी उपाधियां पाने की हिम्मत नही रखती हैं।

ये वही दुनिया और रीति रिवाज़ है, जहां औरत मात्र मनोरंजन और संतानोत्पति का ज़रिया है। यहां राम-कृष्ण पर सवाल नहीं उठते हैं वरन सीता अग्निपरीक्षा देती है और राधा वियोग में मर जाती है। यहां पति युद्ध में मारा जाता है तो पत्नी मजबूरन सती हो जाती है, मरियम को सिर्फ वर्जिन मेरी के रूप में पूजा जाता है और फातिमा को सिर्फ मोहम्मद की वजह से जाना जाता है।

हम आधुनिक होने के लिए एक तरफ विदेशी तौर तरीकों को बड़ी ही शिद्दत से अपनाते हैं, उनकी तरह कपड़े पहनते हैं, उनकी तरह बोलने का अभ्यास करते हैं, उनका लिव इन वाला रिवाज़ भी चोरी छुपे निभाते हुए चलन में ला रहे हैं, उनकी तरह किसी एक से बंध कर जीवन भर साथ रहने को भी गलत समझने लगे हैं, लेकिन हमने महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, उनकी सेक्शुअल डिज़ायर, उनकी वर्जिनिटी को लेकर अपनी सोच में ज़रा भी आधुनिकता का समावेश नहीं किया है, जो करना सच में आधुनिक होने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।

हमें ये मानना होगा कि वर्जिन होना ना होना औरतों का चरित्र तय नहीं करता है, ये उनकी अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकार है कि उन्हें कब और किसके साथ सेक्स करना है, नहीं करना है, उनका अपना शरीर है उनकी अपनी इच्छाए हैं।

एक महिला अपनी सेक्शुअल डिज़ायर ज़ाहिर कर रही है, तो वो चरित्रहीन नहीं हो जाती है,क्योंकि ये दुनिया औरतों की भी है।

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