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‘काश! तुम्हारा सर्वगुण संपन्न होना मेरी तरह ज़रूरी होता भाई’

मैं यह खुला खत अपने भाई को लिख रही हूं। एक लड़की जब तक अपने घर में रहती है बस एक लड़की होती है, लेकिन उसे एक अच्छी बहू बनाने की प्रक्रिया बचपन से ही उसकी माँ शुरू कर देती है। रसोई घर, आंगन, बेडरूम या यूं कहें कि घर के कोने-कोने में उसकी शादी होने तक मॉक ड्रिल चलता रहता है।

रोटी गोल बनाने से लेकर दही वड़ा रूई की तरह मुलायम बनाने तक, बिस्तर ठीक करने से लेकर चाय में दूध सटीक मात्रा में डालने तक एक कर्मठ बहू और बीवी बनाने की ट्रेनिंग में माँ कोई कसर नहीं छोड़ती। एक अच्छी बेटी, अच्छी बहन, अच्छी बहू के चोंचले में  एक लड़की चक्की बन जाती  है। वो चक्की जो ताउम्र गोल घूमती है और पिस जाती है उस लड़की की ज़िंदगी।

इस खत का मकसद किसी भी माँ की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। लेकिन अगर आप वह माँ हैं जिन्होंने कभी अपने बेटे को घर का काम करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया है, अगर आपके हिसाब से आपके बेटे का घर का काम करना उसे कम मर्द बनाता है तो ये खत आपके लिए है। अगर आप अपने बेटे को नकारा बना रही हैं तो इस समाज में उसे योग्य सिद्ध करने के लिए किसी लड़की का सहारा ना लें। शादी के लिए किसी खास लड़की की फरमाइश ना करें क्योंकि आपके बेटे में कुछ ऐसा नायाब नहीं है।

मुझे नफरत है समाज के ऐसे दोगलेपन से जहां शादी लड़कियों के ऊपर बोझ और लड़कों के लिए उपलब्धि होती है।

तरस आता है मुझे हर उस माँ पर जो अपनी बेटी को महज़ एक गुलाम बनने की ट्रेनिंग देती है और अपने बेटे को नकारा बनाती है। मुझे नफरत है ऐसी दोहरी मानसिकता वाले लोगों से जो शिक्षित होने का दावा करते हैं। तो बात इतनी सी है कि आप अपने बेटे को समझाएंगी नहीं या यूं कहें कि बेटा आपकी समझ से बाहर हो गया है। तो मुझे लगा कि मैं ये इस बात की शुरुआत अपने भाई को समझा कर करूं।

भाई,

गलत हुआ है तुम्हारे साथ बचपन से, किसी और ने नहीं हमारी माँ ने गलत किया है तुम्हारे साथ, तुम्हें किसी योग्य जो नहीं बनाया। ना तुम्हें खाना बनाना आता है, ना कपड़े धोना, ना सूखे कपड़ों को तह लगाना आता है। माँ ने कभी तुमको डांट नहीं लगाई ना, वरना आज तुम भी योग्य होते। इतनी अयोग्यता के साथ अगर तुम एक लड़की होते तो तुम्हारी शादी नहीं होती। लेकिन तुम तो लड़का हो या यूं कहो कि बेटा हो।

तुम्हारा सर्वगुण संपन्न होना अनिवार्य थोड़े ही है, तुम्हारे लिए घरेलू काम, स्कूल की एक्स्ट्रा करिकुलर क्लास की तरह कंपल्सरी भी नहीं है। लेकिन अगर अनिवार्य होता वो भी सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, सभी लड़कों के लिए तो शायद मुझ जैसी बहुत सारी लड़कियों के लिए अच्छा होता।

खैर माँ को तुम्हें जो सिखाना था वो सिखा दिया, जैसे पालना था वैसे पाल दिया अब मेरी सुनो।

तुम्हारी बहन को सुबह उठना होता है, चाहे बीमार हो या नींद ना पूरी हुई हो, क्योंकि मेरे बगल में सोया हुआ मेरा पति, जिसकी माँ ने उसे नकारा बनाया है, सुबह उठकर चाय नहीं बना सकता। बेटा है ना! अपनी बेड टी की ज़रूरत भी वह मुझसे पूरी करवाता है। जिस बिस्तर पर हम दोनों सोते हैं वो ऑफिस से आने के बाद मैं ठीक करती हूं, मेरा पति नहीं कर सकता। हालांकि बिस्तर लगाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है लेकिन ये काम तो लड़कियों की कुंडली में लिख दिया गया है।

मुझे कितनी भी ज़ोर की भूख लगी हो, पहले मेरे पति को खिलाना होता है, क्योंकि वो अपना पेट खुद नहीं पाल सकता। रोटी गरम खानी पसंद है, बनानी नहीं। कपड़े भले ही हर जगह बिखरे हों लेकिन समेटेगा कौन, वही सेवक रूपी पत्नी या बहू।

तो मेरी शादी की तैयारी में जो तुम पूरी रात नहीं सोये, तुम्हारा भागना-दौड़ना, बैंड-बाजा, खातिरदारी, सबकुछ व्यर्थ चला गया। तुम्हारी बहन कब बहू से घर की दासी बन गई पता नहीं चला। तुम्हारा खून यह पढ़कर इतना खौला होगा कि तुम उसके बहाव को अभी अपनी नसों में महसूस कर रहे होगे। लेकिन इसके बाद क्या?

तुम भी कुछ साल बाद एक लड़की से शादी करोगे। कहने को बहुत प्यार करोगे, लेकिन वह प्यार उस लड़की की घरेलू दासी बनने का वेतन होगा। वो भी मेरी तरह ऑफिस से आते ही सेकंड शिफ्ट शुरू कर देगी। तुम्हारी माँ की भी उम्मीद घर में आई एक नयी लड़की से दोगुनी हो जाएगी। जो काम तुम्हारी माँ पिछले 20 साल से ठीक नहीं कर पाई,  वो चाहेंगी कि वो नई लड़की जो अपना घर, माँ-बाप, दुलार छोड़ कर आई है, झट से ठीक कर दे। इन सबके बीच तुम मृत सागर की तरह सोफे पर बैठकर टीवी देखना, लेकिन याद रखना कि वह भी किसी की बहन होगी।

तुम्हारी बड़ी बहन,
शाम्भवी।

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