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Pehli baar.

आज पूरे 3 महीने हो गये परिवार दोस्त ओर उस शहर से मिले उनको जी भर के देखे,वसे तो रोज किसी ना किसी से फोन पर वीडियो चेट पर बात हो ही जाती थी, पर सब की आंखों में देखकर बात करे बहुत दिन हो गये है, सुबह सुबह घर के पोर्च में बैठ कर चाय पर चर्चा तो बस अब यादें ही रह गयी है,

वसे कल मैनेजर से बात तो हुई थी  इस बार फाइनली  छुटियाँ कंफर्म हो ही गयी है, अब घर जाने की खुशी में दिन काटने में मजा आ रहा है, ऐसा लग रहा है फिर से कोई नया अचीवमेंट मिलने वाला है ओर इसी बीच सभी के लिए कुछ ना कुछ शॉपिंग भी कर ली है, वो होता है ना की शहर से बाहर जॉब करती हूँ तो सभी को लगता है की बड़ी हो गयी ही तो इसी इमेज को ओर थोड़ा इमपेक्टफुल बनाने के लिए भी जरूरी था,

ऑफिस ओर दोस्तो के साथ वक़्त बिताते बिताते, आज घर पहुचने का दिन आ ही गया, फ्लाइट रात में 4 बजे थी और आर्ची पहले ही घर पहुँच गयी थी तो मैं अकेली ही सफर करने वाली थी, वैसे तो कई बार अकेले सफर किया है, पर ये सफर बिल्कुल नई जगह पर था और वक़्त भी ऐसा जो डर और ख़ौफ़ की परछाई आपके मंन को जिंझोड़ दे। पर इतने वक़्त बाद घर जाने की खुशी इन सब से ऊपर थी, पैकिंग अब पूरी हो गयी थी और जाने का वक़्त भी हो गया था, एकदम से कैब ड्राइवर का फोन आया जिसे दिन में ही बुक कर लिया था कि “मेम में नही आ सकता आप दूसरी कैब बुक करलो” अब ये जरनी बड़ी अलग सी ओर डरात्मक बनती जा रही थी, पहले तो वक़्त का तकाजा फिर अकेले इतना लंबा सफर अब ये कैब वाले ने भी मना कर दिया,ओर आज यदि लेट हो गए तो फ्लाइट भी मिस हो जाएगी ,अब कैसे भी करके घर तो जाना है, तो मैंने कुछ पल खुद को समझाते होए खुद को ढांढस बंधाया ओर एक लंबी सांस ली,बस अब किसी भी हालत में घर तो जाना है,अब 11:45 हो गए थे 12:00घर से निकलना था तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट लेना ही बेहतर समझा, घर लॉक करने के बाद सारा सामान जिसमे मेरे समान से ज्यादा घर वालो के लिए गिफ्ट थे, अकेली निकल पड़ी थी घर के लिए कुछ दूर ही बस स्टैंड था,वहाँ पहुचने के बाद जरा से इंतज़ार के बाद ही बस आ गयी, बस में चढ़ि तो देखा कि पूरी बस खाली पड़ी है सिर्फ एक आद चेहरे देखने को मिल रहे है , एक लड़की होने के नाते डर था कि कुछ भी हो सकता है पर अभी घर पर पहुचने का एक्साइटमेंट इस डर को भुला रहा था भर हल्की हल्की बारिश हो रही थी, अब बस चल पड़ी थी यहां से एयरपोर्ट लगभग 1 घंटे की दूरी पर था, ये सफर अकेले ओर डर के साथ ओर बड़ा लग रहा था, इतनी ही देर में एक दोस्त का व्हाट्सअप्प आया और उससे बात होते होते कब वक़्त निकल रहा था पता ही नही पड़ा, मैं अपनी कुछ बाते उनसे साझा कर रही थी और वो भी , कुछ गाने दोनो साथ मिलके यूट्यूब पर सुन रहे थे, इसी तरह कब वो वक़्त निकल गया और मैं फाइनली एयरपोर्ट पहुची ओर अंदर जाने के बाद मैं कब घर के लिए रवाना हो गयी पता ही नही पड़ा।

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