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बेहद गैरज़िम्मेदाराना है गुजरात चुनाव में पाकिस्तान को मुद्दा बनाना

भारतीय लोकतंत्र, विश्व में एक सफल लोकतंत्र के रूप में स्थापित हुआ है। यह भी सही है कि भारत, लोकतंत्र के कई सिद्धांतो पर खरा नहीं उतरने के बावजूद भी बहुत ही तरलता के साथ आगे बढ़ता जा रहा है। चुनाव लोकतंत्र में पावन उत्सव की तरह होता है और भारत इसे लगभग हर साल किसी न किसी रूप में मनाता रहता है। पंचायत और विधान सभा से लेकर लोकसभा चुनावों के रूप में यह पर्व लोकतंत्र की उम्र बढ़ने के साथ-साथ भारत के नागरिक के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग भी बनता चला गया।

चुनाव को लोकतंत्र में सिर्फ जीत या फिर हार के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाता बल्कि चुनाव प्रजातंत्र को हर समय मजबूत करने की प्रक्रिया है। बहरहाल गुजरात चुनाव इस देश में, हाल में हुए सारे चुनावों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है वो इसलिए भी कि यहां पिछले 22 साल से एक ही पार्टी अर्थात भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।

मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस ने इस चुनाव में अपना पूरा दम-खम लगाया हुआ है। चुनाव के जानकारों का मानना है कि इस चुनाव के बारे में किसी भी तरह का अनुमान लगाना बेमानी है तो साफ़ है कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों में कांटे की टक्कर है। लेकिन इस चुनाव में उठाए गए मुद्दे चौंकाने वाले हैं।

यहां गुजरात चुनाव में, पाकिस्तान का मुद्दा सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी की तरफ से उठाया गया है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टी पाकिस्तान के साथ मिलकर गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हराना चाहती है। पाकिस्तान सरकार ने इस बात खंडन करते हुए कहा कि उन्हें भारत के गुजरात चुनाव में कोई इंटरेस्ट नहीं है।

पाकिस्तान का मुद्दा वैसे तो राष्ट्रीय राजनीति तथा भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन पाकिस्तान को भारत के घरेलू चुनाव या कहें कि राज्य स्तरीय चुनाव में लेकर आने की भारत को अंतरराष्ट्रीय जगत में कीमत चुकानी पड़ सकती है।

जहां एक ओर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ दुनियाभर के देशों को भारत अपने पक्ष में लामबंद करने की पहल कर रहा है, वहीं राज्य स्तरीय चुनाव में पाकिस्तान के नाम पर वोटों के ध्रुवीकरण के प्रयास, भारत के सामने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिक्कतें खड़ी कर सकते हैं। यह बात पाकिस्तान के हक में जाती दिखती है जहां पाकिस्तान, भारत के किसी भी आरोप को सीधे यह कहकर खारिज कर सकता है कि भारतीय पार्टियां, भारत में चुनाव जीतने के लिए इस तरह के अनर्गल आरोप गढ़ती रहती हैं। ऐसे में यहां भारत के पास ज़्यादा कुछ करने या कहने को बच नहीं पाता है।

यह सिलसिला बिहार के चुनाव से ही शुरू हो चुका था जहां भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने बिहार में उनकी पार्टी के हारने पर पाकिस्तान में पटाखे फूटने की बात कही थी। इस तरह के हल्के बयान विदेश नीति को प्रभावित कर सकते हैं। यह बात तब भी साफ हुई थी जब प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान पर एक अराजनीतिक बयान लालकिले के प्राचीर से दिया था। बहरहाल गुजरात चुनाव में पाकिस्तान के मुद्दे को प्रधानमंत्री के द्वारा उठाने से, पाकिस्तान की जिरह वैश्विक पटल पर मजबूत हो सकती है।

यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति को घरेलू राजनीति से बिल्कुल अलग रखने की बात कतई नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के मुद्दे को बार-बार सिर्फ चुनाव में लाने से भारतीय विदेश नीति पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। प्रधानमंत्री को ऐसे बेबुनियादी संगीन आरोप लगाने से बचना चाहिए। गुजरात का चुनाव एक राज्य भर का चुनाव है, इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने से भारत को नुकसान भी हो सकता है।

वैश्विक राजनीति और घरेलू राजनीति में तालमेल के साथ कुछ बुनियादी अंतर भी होता है, जिसे प्रधानमंत्री को समझना चाहिए। उन्हें कम बोलना चाहिए और सटीक बोलना चाहिए, जिससे उनकी बात का वजन विश्व स्तर पर बढ़ेगा वरना उनकी बात को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महज़ चुनावी जुमला समझकर अनदेखा किया जा सकता है। गुजरात चुनाव भारत की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर और विदेश नीति में इसकी कोई खास महत्ता नहीं दिख रही है।

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