गंभीर फिल्मों के अलावा हल्की-फुल्की मनोरंजक फिल्मों का भी अपना महत्व होता है । 2013 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘फुकरे’ एक ऐसी ही फिल्म थी। फिल्मकार ने इस फिल्म में दिल्ली की संस्कृति और खासतौर पर यहां पलने-बढ़ने वाली निम्न मध्यवर्गीय युवा पीढ़ी की विशेषताओं और खामियों का बखूबी इस्तेमाल किया था। बिना वल्गेरिटी परोसे इस फिल्म ने थोड़े यथार्थ और अधिक कल्पना के मिश्रण से जो कमाल किया था, उसे दर्शकों ने खूब पसंद भी किया था।
पिछले कुछ वर्षों से हिन्दी सिनेमा के सीक्वल्स बनाने की परंपरा खूब विकसित हुई है। सफल मनोरंजक फिल्मों के साथ ऐसे प्रयोग अधिक हो रहे हैं। अक्सर ऐसी फिल्में दर्शकों पर सफलतापूर्वक आज़मा लिए गए फॉर्मूले को अधिक भुनाकर पैसा बनाने का साधन भर होती हैं। दु:खद यह है कि इस शुक्रवार प्रदर्शित हुई फिल्म ‘फुकरे रिटर्न्स’ भी इसका अपवाद नहीं है।
‘फुकरे’ देख चुके जिन दर्शकों को चार वर्ष बाद रिलीज हो रही ‘फुकरे रिटर्न्स’ का ट्रेलर देखकर फिर से अच्छे मनोरंजन की अपेक्षा रही होगी, उन्हें निराश होना पड़ सकता है। ‘फुकरे’ को देखते हुए दर्शकों ने महसूस किया होगा कि इसमें एक भी दृश्य ऐसा नहीं था जिसे आप जबरन ठूंसा गया दृश्य कह सकते थे। ‘फुकरे’ की सबसे बड़ी विशेषता उसकी सहजता और तारतम्यता थी, वह ‘फुकरे रिटर्न्स’ में लगभग ग़ायब है ।
फिल्म कई बार बहुत उबाऊ लगती है। इसमें कुछ पात्र और कुछ दृश्य भी जबरन ठूंसे हुए लगते हैं। इसके दृश्यों में बाघों और सांप के जो प्रसंग जोड़े गए हैं, वह भी अनावश्यक हैं और इनका फिल्मांकन भी संवेदनशीलता के साथ नहीं हुआ है। ‘फुकरे’ में सभी फुकरों को लगभग बराबर की तवज्जो दी गयी थी। लेकिन फिल्म में से ‘चूचा’ नामक पात्र को मिली अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रियता को शायद भुनाने के लिए ही, इस बार पात्रों के महत्व को लेकर संतुलन का ध्यान नहीं रखा गया है।
मेरे खयाल से सीक्वल में ‘फुकरे’ की सृजनात्मकता को विस्तार देने के लिए जितनी मेहनत और एकाग्रता की ज़रूरत थी, निर्देशक मृगदीप सिंह लांबा ने उसमें भारी कोताही बरती है।
बहुत संभव है कि भारी मुनाफे का सौदा समझकर इस फिल्म पर जमकर पैसा लगाने वालों का भी निर्देशक पर दबाव रहा होगा। मुझे लगता है कि मृगदीप क्रियेटिव हैं और संवेदनशील भी लेकिन इस फिल्म के बाद यदि वे अपने पतन को महसूस नहीं कर पाए तो बेहतर कर पाने की उनकी संभावना और भी कमज़ोर होती चली जाएंगी।
‘फुकरे’ में एक बेहद सुन्दर गीत भी था ‘अम्बरसरिया मुंडया वे’। वो गीत आज भी लोगों की ज़ुबान पर है, लेकिन ‘फुकरे रिटर्न्स’ का कोई गाना भी प्रभावशाली नहीं है। ऐसा लगता है कि उम्दा कलाकारों के लिए भी अच्छे अभिनय का अवसर मुहैया करा पाने में यह फिल्म असफल रही है। कुल मिलाकर यह कहना सही होगा कि फिल्म एकसाथ लगभग सभी मोर्चों पर कमज़ोर रह गई है। संभव है कि ‘फुकरे रिटर्न्स’ बॉक्स ऑफिस पर अच्छी खासी कमाई कर ले, लेकिन इससे यह सच बदल नहीं जाता कि यह फिल्म दर्शकों के साथ एक प्रपंच से अधिक कुछ नहीं है।