आप गुस्सा हैं और होना भी चाहिए, आखिर देश की शान की बात जो है। लेकिन ऐसी ही शान और ताकत तब भी दिखाने की ज़रूरत है, जब किसी नारी पर अत्याचार हो रहा हो। किसी महिला को प्रताड़ित किया जा रहा हो। कोई औरत आग में जल रही हो और वो आग जौहर की नहीं दहेज की आग है।
यह मेरा नहीं इस देश की हर महिला और हर बेटी का कहना है। उसका सवाल है कि एक फिल्म के विरोध में अपनी ताकत दिखाने वालों आप तब कहां थे जब देश में किसी औरत पर अत्याचार हो रहा था? तब जब दहेज की आग में देश की कई बेटियां जल रही थी? आज एक फिल्म के विरोध में पूरा देश खड़ा है, लेकिन यह देश तब एकसाथ नहीं होता जब एक औरत को दहेज के लिए ज़िन्दा जला दिया जाता है।
रानी पद्मावती की वीरगाथा पर मुझे कोई संदेह नहीं है, होना भी नहीं चाहिए। पर एक फिल्म के विरोध में उतरे इन वीरों पर मुझे थोड़ा कम ही विश्वास है। आपके विरोध पर नहीं पर आपकी वीरता पर मुझे थोड़ा कम विश्वास हो पा रहा है। इसकी वजह बस इतनी सी है कि हमारे देश में यहां तक कि राजस्थान में हिंसा के ऐसे कई मामले हमें देखने को मिले हैं, जिससे मानवता शर्मसार हुई है।
इस संदेह का कारण मेरी नज़र का कुछ आंकड़ों पर पड़ना था, जिसे आप भी देखिये- वर्ष 2001 में दहेज हत्या के 6,551, वर्ष 2006 में 7,618 और वर्ष 2012 में 8,233 मामले दर्ज किए गए। इसी तरह वर्ष 2015 में दहेज़ हत्या के 7634 मामले सामने आए। इन आंकड़ों से ज़ाहिर है कि देश की महिलाओं का दहेज की आग में जलने का सिलसिला सालों से जारी है।
ये हमारी वो बेटियां हैं, जो जौहर की नहीं दहेज की ज्वाला में जली हैं। हम सब जिस तरह से अभी विरोध के लिए एक हुए हैं, ठीक उसी तरह से इन बेटियों को बचाने और न्याय दिलाने के लिए भी एक हों, हर युवा संकल्प लें कि दहेज के लिए न तो उसकी बहन को जलने देगा न ही उसकी पत्नी को।
आज हमारे पड़ोस में ही कोई महिला दहेज की आग में जल रही है तो क्या हमने अपनी आवाज बुलंद की है? यह सोचना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि वीरभूमि की वीरांगनाओं के बारे में इतना सोच रहे हैं तो हमें हमारे देश की बेटियों के बारे में भी थोड़ा सा खयाल कर लेना चाहिए।
हमारे ही समाज के कुछ लोगों को तो महिलाओं पर अत्याचार करने, उनके उत्पीड़न करने में सज़ा का डर तक नहीं रहता है। बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि जिस तरह से हो रही है तो मुझे नहीं लगता कि हमें किसी फिल्म का विरोध करना चाहिए। क्याेंकि इसका समाधान फिल्म का विरोध करने से नहीं होगा। हमें जब तक देश की महिलाओं की चिंता नहीं है, तब तक हमें कोई हक नहीं है कि हम किसी का विरोध करें।
विरोध करें तो देश की महिलाओं के हित के लिए। हमारी वीरभूमि का मान अगर रखना ही है तो हमारे देश की महिलाओं के लिए भी थोड़ी चिंता जताना शुरू कर दीजिए, जिससें हमारी वीर भूमि का नाम हमेशा बना रहे।
इस गरिमा को हमें खुद ही बनाना होगा, नहीं तो कहीं ऐसा ना हो कि बस एक टूरिज़्म क्षेत्र बनकर ही रह जाए हमारे राज्य का गौरव और यहां की वीरांगनाएं। इसे अगर वीरभूमि का दर्जा दिलवाला है और राजस्थानी मिट्टी की संस्कृति को बनाए रखना है तो महिलाओं की सुरक्षा का संकल्प लेना बहुत ज़रूरी है। हम जिस दिन महिलाओं को सम्मान करना सीख जाएंगे, उस दिन से न तो किसी महिला को जौहर करना होगा और न ही किसी महिला को दहेज की आग में जलना पड़ेगा।
थम्बनेल और फेसबुक फीचर्ड फोटो आभार: flickr