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मीडिया की गिरती साख और युवा पीढ़ी के भटकते कदम

अभी कुछ दिनों पहले TV पर गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल का एक sex video (जिसमें sex नहीं बल्कि बातें ही हो रही थी) आया था। जिसे लेकर भारत की बिकाऊ मीडिया में तूफान आ गया था। प्रत्येक चैनल पर दहाड़ते हुए एंकर उस वीडियो को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर दिखा रहे थे।
उन्हीं दो दिनों में भारत के अलग अलग शहरों में तीन रेप हुए। देश की राजधानी दिल्ली में महिला से गैंगरेप, भोपाल में दस वर्ष की मासूम बच्ची के साथ बलात्कार, उत्तर प्रदेश में विधवा महिला की बलात्कार के बाद हत्या (जो कि कुछ उदाहरण मात्र हैं)। लेकिन किसी भी न्यूज़ चैनल ने इन घटनाओं का जिक्र तक नहीं किया। सिर्फ एक – दो अखबारों ने छोटे से कोने में इनका जिक्र करते हुए अपनी औपचारिकता पूरी कर दी।
तब क्यों खामोश हो गये थे वो बिकाऊ एंकर जो बात-बात में ‘DNA’ करते हैं, ‘ताल ठोकते’ हैं, ‘आप की अदालत’ लगाते हैं, ‘जनता के लिए जवाब’ माँगते हैं, ‘डंके की चोट’ कहते हैं? मासूम, विधवा और अकेली औरत की इज्जत लुट रही थी और भारत की मीडिया हार्दिक पटेल की CD मिलने का जश्न मना रही थी। इससे ये साबित होता है कि न्यूज़ चैनल TRP बढ़ाने के लिए अपने नैतिक दायित्व को भूल कर किसी भी हद तक गिर सकते हैं।
ये घटनाएं तो एक उदाहरण मात्र थी, मगर देश में बढ़ती रेप की घटनाओं पर सरकार व मीडिया की चुप्पी जहाँ वैश्विक पटल पर देश की गिरती हुई साख की तरफ इशारा करती हैं वहीं सरकार व मीडिया को कटघरे में खड़ा कर रही हैं। एक तरफ जहाँ अपने मूल कर्त्तव्य से भागती मीडिया जनता में अपना विश्वास खोती जा रही है वहीं हवस की आग में जलती भारत की युवा पीढ़ी का भविष्य गर्त में जा रहा है।
देश के भविष्य (युवा वर्ग) औऱ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लड़खड़ाते क़दमों को संभालने की तुरंत सख्त जरूरत है वरना अपने अंधकारमय भविष्य के लिए हमें तैयार रहना होगा।

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