Site icon Youth Ki Awaaz

’हम भारत के लोग’ में वो लोग जिन्हें नज़रअन्दाज़ कर यूँ ही छोड़ दिया

हम सभी ने प्रायः प्रायः ये पहली लाइन हम भारत के लोग(We The People Of India ) तो पढ़ा सुना होगा ही , अरे भई हाँ हमारे संविधान की उदद्देशिका की शुरूवात यही से होती है और सच कहूँ तो हमारी पहचान की शुरूवात यहीं से होती है । जब भी हमें वैश्विक तौर पर देखा जाता है तो भारतीय के रूप में ही देखा जाता है ।

हम भारतीयों ने ही बहुत से भारतीयों को नज़रअन्दाज़ कर दिया है , जानना चाहेंगे मैं किनकी बात कर रहा हूँ तो आगे ज़रूर पढ़े…

हमने अपनी भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में कुछ ऐसे लोगों को पीछे छोड़ दिया है , जो आने वाले समाज के आधार स्तम्भ हो सकते हैं ,आज मैं बात कर रहा हूँ हमारे आसपास नज़र आने वाले कुछ ऐसे छोटे-छोटे बच्चों की जो व्यर्थ ही घूमते हुए नज़र आते है और हम सभी उन्हें नज़र अंदाज़ कर अपने काम में व्यस्त हो जाते है । ये बच्चे प्रायः वे होते है जिनके माता-पिता इनके लिए दो वक्त की रोटी के लिए परिश्रम कर रहे होते है जिन्हें हम रोजी के मज़दूर या कचरे उठाने वाले या दैनिक वेतन भोगी भी कहते हैं । सीधी भाषा में कहूँ तो वे लोग जो आज भी रोज़ 10-20₹ का तेल 10₹ का नमक रोज़ ख़रीदकर अपना और परिवार का पेट भरते हैं ।

आज भी यह श्रमिक व कर्मकार वर्ग बहुत बड़ा है मगर इनके ख़्वाब बहुत ज़्यादा बड़े नहीं हैं ।

 देखभाल व पढाई के अभाव में ये बच्चे इधर उधर कभी खेलते कूदते , कभी ऐसे ही घूमते रहते है । सरकारों ने तो सरकारी स्कूल खोल दिये जहाँ जैसी भी हो पढ़ाई हो न हो किसी को कोई मतलब नहीं कितने बच्चे आ रहे हैं और फिर आने के बाद वे दिन भर क्या करते हैं स्कूल करिकुलम जिससे बच्चे का चौतरफ़ा विकास हो के लिए कोई प्लान नहीं नज़र आता । ये बस पानी की धार में बहते हुए बड़े होते हैं जिनका ध्यान ना सरकारों ने उतना दिया ना ही हम भारत के लोगों ने 

फिर होता है इन बच्चो का शिकार और नशे का व्यापार

अब जब इन बच्चों पर ना घर में कोई ज़्यादा ध्यान देने वाला था ना ही स्कूलों में इन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा था तब इनका ध्यान देने के लिए कुछ अज़ीज़ मित्रों से इनका संपर्क होने लगता है , वो मित्र जो नशे में पहले से व्याप्त होते हैं ।और फिर धीरे से बीड़ी फिर सिगरेट शराब गाँजा सुलोशन और न जाने क्या क्या ही , मैंने कई महानगरों में सुलोशन (टायर पंक्चर को चिपकाने के लिए जो ट्यूब मिलती है ) को रूमाल में डालकर उसे सूंघते हुए बच्चे देखें हैं जिन्हें आप ना कुछ कह सकते हैं ना कोई और ही , ये बच्चे धीरे-धीरे नशे को अपना स्वभाव बना लेते है और जब उन्हें नशे का उनका सामान नहीं मिलता , तब वे छोटे-मोटे अपराधों को जैसे अपने से छोटे लड़कों को धमकाना लड़ाई झगड़े छोटी छोटी चोरियाँ कुछ सामान बेच देना ऐसे अपराधों को अंजाम देकर उनकी पूर्ति करते है और तब तक ये भी अपने से बड़े बच्चों के (जिन्होंने उन्हें ये सब सिखाया था ) के उम्र के हो चुके होते है जिनके संपर्क में आने से वे इस राह में आ गए थे और ये भी वे ही कार्य करने लगते है । 

जब नशे और बच्चे के बिगड़ने की बात घर में पता चलती है तो जवान बच्चे को सुधारने का एक ही है चारा इसकी शादी कर दो ।

अच्छा जब इनके करतूतों की बात इनके घरों में पहुँचती है और वे भी तंग आ जाते हैं तो एक ही उपाय है , जिसे समाज में का अनिवार्य तत्व कहना चाहिए जिम्मेदारियों से बाँधने के क्रम में इनकी शादी कर दी जाती और फिर यदि वो थोड़ा सही राह पर आता भी है तो शिक्षा और अच्छी संगत के अभाव के चलते उसे रोज़गार के लिए वैसे ही काम मिलते हैं जिनसे सिर्फ़ घर की रोज़ी रोटी चलती है और दिन पूरा काम में ही गुजरता है शाम थकान इतनी होती है कि थकान उतरने दो घूँट दवा का काम दारू करने लगती है ।

फिर वही चक्र समय का पहिया चलने लगता है जिसमें इन भारत के लोगों (बच्चों ) पर ध्यान नहीं दिया गया । 

 फिर से वही पहिया चलने लगता है , इनकी संतान भी इन्ही की तरह ही जीवन यापन करती है और कभी कभी तो ये भी होता है की ये स्वयं ही कई बड़े अपराधों की ओर चले जाते है । जिनसे सुधारने के लिए हम कितने ही सुधार गृह का इस्तेमाल कर लें इनका सुधार नहीं होता | 

हम भारत के लोगों ने आख़िर क्या किया है और क्या कर सकते हैं ?


 सरकारों ने कई प्रयास किये हैं , अवयस्क अपराधियों के लिए बाल सुधार गृह रखा है , इन श्रमिक व कर्मकार वर्ग के लिए आवासीय शिक्षण संस्थानों में वृद्धि कर सकती है इन्हें सेना के लिए प्रशिक्षित कर सकती है , खेलों के लिए प्रशिक्षित कर सकती है । आज समाज के बौद्धिक व समझदार वर्ग को खासकर मैं ये आग्रह करना चाहूँगा हमारे उस वर्ग से जो retirement ले चुके होते है और वे भी जो अपनी ज़िम्मेदारी में इन्हें जोड़ सकते हैं । सभी को मिलकर  नशे व जुर्म को बढ़ावा दे रही इस कड़ी को तोड़ना होगा , इसके लिए हम सभी मिलकर छोटे छोटे सोशल ग्रुप बना सकते हैं और जागरूकता अभियान चला सकते हैं तरीक़े कई हैं बस आगे आना ज़रूरी है और ऐसा नहीं है कि ये व्यथा सिर्फ निम्न वर्ग के लोगों की है ये व्यथा कई उच्च वर्ग की भी है जहाँ के बच्चे भी आधुनिक बनने के नाम पर इस राह में चले जा रहे हैं । उस चक्र की कहानी फिर कभी…….

Exit mobile version