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देश का युवा कहां उलझा हुआ है?

मोदी जी ने अपने एक भाषण में कहा था कि हम सबसे युवा देश हैं, हमारे पास युवा शक्ति बहुत है। युवा चाहे तो क्या नहीं कर सकता।
अब सवाल ये उठता है कि क्या युवाओं को फिक्र है अपने देश की प्रगति की? सिर्फ युवाओ की भीड़ होने से कुछ नहीं होगा।
आज कल का युवा क्या सोचता है या किन चीजों में उलझा हुआ है? युवा उन चीजों में उलझा है जिनसे देश के विकास का दूर-दूर तक कोई वास्ता ही नहीं, जबकि हमारी प्राथमिकताएं कुछ और हैं। जो युवा किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं उनको चाहिए कि उनके आस-पास की समस्याओं को अपने नेता तक पहुचाएं लेकिन नहीं, सब अपने मोहल्ले, गांव, शहर में अपनी-अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं।
अब पद्मावती के विरोध को ही देख लो, मुझे तो ताज्जुब होता है कि लोग सरकार से इस बात पर नहीं लड़ते कि देश मे शिक्षा व्यवस्था चरमराई हुई है, बेरोजगारी है, भुखमरी है, गरीबी है बल्कि इस बात पर लड़ते हैं कि पद्मावती बैन हो। जबकि इस मुद्दे का देश की प्रगति से कोई लेना-देना नहीं है।
युवाओं को किसी भीड़ का हिस्सा बनना ज्यादा पसंद है जैसे किसी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एक जुलूस निकाला, पुतला फूंका तो जाके उस भीड़ में शामिल हो गए, जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे। और ये सब केवल फोटो खिंचा के सोशल मीडिया पर डालने तक ही सीमित है। ऐसे लोग पाकिस्तान का विरोध करते हुए तो दिख जाएंगे, जिससे उन्हें महसूस होता है कि उनसे बड़ा कोई देशभक्त है ही नहीं, लेकिन अगले ही दिन किसी दीवार पर पेशाब करते हुए भी नज़र आ जाएंगे।
अगर आज का युवा बेरोज़गारी, भुखमरी, अशिक्षा, गरीबी, सूखा, किसान आत्महत्या इन गंभीर मुद्दों पर नहीं सोचता है तो उसका युवा होना व्यर्थ है। हमें अगर अपने देश को आगे बढ़ाना है तो हमें अपने आंदोलनों की प्राथमिकताएं बदलनी पड़ेगी।

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