हो गई उदास प्राकृति किसान कि दशा को देखकर, जीवन में त्याग और बलिदान की पराकाष्ठा बन किसान दे रहा जीवन रस भर कर, देख रहा है यह सोचकर हमारी तरफ शायद समझ आ जाए उनकी व्यथा मन के घर,
हम बिन तुम न जी पाओगे, क्या सीमेंट प्लास्टिक और लोहा खाओगे, हम तुम्हारा जीवन है हम बिन तुम न जी पाओगे, हमको समय से पहले बचा लो वरना सोना और खजाना भोजन पर लूटाओग। धन्यवाद आपका मित्र कृष्ण पाठक। जय श्री राम।