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उपेक्षा..!!

उपेक्षा

विभा जब दो वर्ष की थी,माता पिता दोनों ही एक सड़क हादसे में गुज़र गये विभा को चाचा ने पाल-पोष कर बड़ा किया,रंग साँवला,बहुत ही भोली दुनिया के छल कपट की हवा उसे छूकर भी न गुजरी थी,

शीघ्र ही परमात्मा ने सुखद संयोग ला दिया मन में हजारों सपनों को समेटे विभा कमल की जीवन संगिनी बनकर उसके घर चली गई,
उसे विदा करके चाचा ने भी अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर ली,
कमल और उसके परिवार का व्यवहार विभा के प्रति बहुत अच्छा नहीं था,
किन्तु परिवार से अधिक विभा को कमल की उपेक्षा कष्ट देती रही,
धीरे धीरे समय बीतने लगा, किसी रिश्तेदार के द्वारा विभा को पता चला कि कमल किसी अन्य लड़की से प्रेम करता था परिवार के दबाब में उसने विभा से विवाह किया है,
न कमल और न ही उसका परिवार विभा को पसंद करते हैं,
जीवन में सदा ही प्रेम से वंचित विभा ने इसे भी अपना भाग्य मानकर स्वीकार कर लिया,
घर का काम और सबकी फ़रमाइशों को पूरा करते हुये तीन वर्ष बीत गये,
अब सासू माँ वारिस के लिए कमल पर दबाव बनाने लगीं,
ईश्वर की कृपा से परिवार को वो सुखद समाचार भी मिल ही गया जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था,
किन्तु विभा के लिये कुछ भी न बदला उसके जीवन में वही उपेक्षा कायम रही,
समय पंख लगाकर उड़ रहा था
आज विभा के माँ बनने का समय आ गया था घरवाले उसे अस्पताल ले जा रहे थे,
विभा कमल की एक नजर के इंतजार में उसकी ओर एकटक देखती रही,किंतु सदा की भाँति
उसके दामन मे निराशा ही आई,

अस्पताल पहुँच कर विभा को भीतर ले जाया गया,
बाहर सबको अपने कुल के चश्मो चिराग़ का बेसब्री से इंतजार था,

कुछ देर बाद डॉ एक कागज लिए बाहर आया और बोला इस पर हस्ताक्षर करें ,
माँ या बच्चे में से किसी एक को ही बचाया जा सकता है बतायें किसको बचाना है हमारे पास ज्यादा समय नहीं है,
परिवार वालों के बीच कुछ संवाद होता है,
निर्णय लिया जाता है कि बच्चे को बचाया जाये,

ऑपरेशन थियेटर की खिड़की से कमल विभा को झाँक कर देखता है,
विभा जैसे ही कमल को देखती है प्रसव वेदना के बीच उसके गालों पर दो आँसू लुड़ककर अपना अस्तित्व खो देते हैं,
कमल का मन विचलित हो जाता है,
वह सिसक सिसक कर रोने लगता है
उसकी अंतर आत्मा उसे धिक्कारने लगती है,
उसने विभा के प्रति जो भी बुरा वर्ताव किया था वो सभी पल उसके समक्ष तांडव करने लगते हैं,
वह दौड़ता हुआ आता है और डॉ के पैरों में गिर जाता है”डॉ साहब मेरी विभा को बचा लो”
घर वाले कमल को सम्भालते हैं और कहते हैं हम निर्णय ले चुके हैं बेटा हमें बच्चे को बचाना है
कमल चीख़ता है “जिसको मैंने देखा नहीं जिसे जाना नहीं उस औलाद के लिए मैं अपनी विभा को नहीं खो सकता ये मेरा अंतिम निर्णय है मुझे मेरी विभा चाहिए”
डॉ भीतर चले जाते हैं
अगले दिन विभा को होश आता है कमल का हाथ विभा के हाथ में होता है
समय ने मौन का बाँध तोड़ दिया कमल विभा से बोलता है “एक पल के लिए भी तुम्हें खो देने के विचार से मेरे जीवन का अस्तित्व ही शून्य हो गया था”माँफी माँगते हुये कमल रोने लगता है विभा उसे सम्भालती है ,

कुछ देर बाद डॉ अकर विभा को उसका बच्चा सौंपते हैं और बोलते हैं ये भगवान का चमत्कार है इतनी जटिल परिस्थिति में भी माँ और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं
विभा ईश्वर को धन्यवाद देती है और सोचती है
“परमात्मा इतना भी निष्ठुर नहीं जो मेरे जीवन की हर खुशी मुझ से छीन ले”।

#मेघा योगी गुना (म. प्र.)

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