हर शहर में आज जाम है, कहीं वीवीआईपी कल्चर की वजह से, कहीं सड़को को खोद देने से, कहीं अंधाधुंध गाड़ियों को चलाने से।
मैं इलाहाबाद में रहता हूं। वहां जाम का ऐसा कहर है कि आप कह दे शहर जाम से कराह रहा है।
इस जाम में जो सबसे ज्यादा बुरी बात है वह अनावश्यक कानफाड़ू हॉर्न का तेजी से बजना।
एक आदमी अभी शाम को अपने ऑफिस से काम करके निकल रहा था दिन भर काम करके वह थोड़ा थका हुआ था। जैसे उसने अपनी कार को सड़क और लाया उसको बिना किसी कारण के हार्न की कान फाड़ देने वाली आवाजें सुनाई देने लगी। वह रास्ते मे कुछ देर बाद इतना चिड़चिड़ा गया कि उसे ध्यान ही रहा कि कब उसने कब उसने कार को सड़क के डिवाइडर से भिड़ा दिया।
आज वही आदमी नही बल्कि हम सब लोगों में से कोई न कोई ऐसा कर दे रहा है। हॉर्न बजना चाहिए लेकिन व
वहां जहां उसकी जरूरत है। न की एक लंबी लाइन में जहां हॉर्न बजाने से जगह नही मिलेगी बल्कि आगे वाले के आगे बढने से मिलेगी वहां दिल से कमजोर आदमी भी है। एम्ब्युलेंस में कोई मरीज भी है। कई लोग तो सड़क पर हॉर्न लगतार बजाते हुए चलते है।