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आरक्षण आखिर कब तक?

हमारा समाज बहुत से उतार चढ़ाव देखे है, सालो वर्षो तक मुुुुगलो और  अंग्रेेजो कि गुलाम् रहे इस भारत देश में कुुुछ लोग मदिरा , मांस का सेवन करने, गन्दगी  सेे रहने, उन्माद फैलाने  तथा अर्थ का अनर्थ करने की।  चेस्टा को रोकना कुछ सामाजिक हीत साधने   वालो को रास नहीं आई और वो इसको  मंंदीर , सवर्ण बनाम दलित कर दीये और इन्होंने एक दोहा मनु स्मृती से निकाला जो की किसी ने इसे सही से पढा भी नहीं की ढोल गवार सूद्र, पसु, नारी ये हे ताड़ना के अधिकारी।

कुछ जातीय हित साधनों वालो ने इसे गलत तरिके से इस प्रकार बताया कि ताड़ना मतलब मारना होता है, जबकि सच ये था कि ताड़ना मतलब नजर रखना होता है।  इन्होंने कहा सुुद्र मेला ढोते थे, अरे जब उस जबाने में सोचालय हुआ ही नहीं करते थे लोग खेतो में जाया करते थे तो आप ने मेला ढोया कहाँ पर, इन्होंने ने लोगो के जेहेन में एक भ्रम की स्थिति पैदा कर के अपने को पीड़ित बता दिया और दूसरे ऊँची जाती को अत्याचारी , जब की सच ये था कि ऊँची जाती ने हमेसा अपनी जान देकर , वस्तुओं का त्याग कर के इनके हितों की रक्षा की इनका हमेसा मार्गदर्शन किया। देश का गौरव बढ़ाया , अविष्कार किया, लोगो को जागरूक किया।

पर अपने को पीड़ित बताने वाली इन जातियो को   भारत के आजादी में भी कोई खास योगदान नहीं रहा , लेकिन जैसे ही देश आजाद हुआ ये अपने अलग देश की मांग तक करने लगे।

अरे मूर्खो मनु जी ने तो चार ही जातीय बनाई थी , पर ईस संबिधान ने हज़ारो जातीय बना कर एक दूसरे के खिलाप खड़ा कर दिया है।

इनको इस अनुचित माग को रोकने के लिए आरक्षण जैसी कलंकित वयवस्था 10 सालो के लिए किया गया पर कुछ राजनेतिक भेड़िये इसे वोट के लिए बढ़ाते चले गए और आज ऐसी स्थिति आ गई की हर कोई इस आरक्षण की मांग कर रहा है, इससे राष्ट्र की संपत्ति की हानि हो रही लोगो की जान जा रही है, देश अधर की तरफ जा रहा और योग्यता आरक्षण की बेदी पर हर रोज बलि चढ़ रही है, इसके बावजूद हमें अपने आप को हमेशा निर्दोष साबित करना पड़ता है।

क्या ऐसे बनेगा हमारा देश महान, क्या ऐसे अयोग्य होंगे देश की व्यवस्था में जो शून्य अंक आने पर भी उनकी नियुक्ति हो जाती है ।

 

1.क्या जाती प्रमाण पत्र बनवाना जातिवाद को बढ़ावा देना नहीं है।
2. जब ओबीसी क्रिमी लेयर में आ सकते है तो फिर st/ sc क्यों नहीं आ सकते।

उन सभी का स्वागत है जो जानते है कि आरक्षण एक छलावा एक धोका है , खास कर ओबीसी के लोगो में , अगर आरक्षण रहा तो भी उनको उतना ही अधिकार मिलेगा जितना आरक्षण ना रहने पर तो फिर आरक्षण के नाम पर बदनाम क्यों , आइये हम आने वाली पीढ़ी को एक नया भारत दे।

कुछ लोग कह रहे है कि आरक्षण धोका है, सवर्णो के पास 51% है, तो में उनसे यही कहूँगा की इस 51% में सिर्फ सवर्ण ही नहीं अपितु अल्पसंख्यक,(जेन, सिख, मुस्लिम, बुद्धिस्ट, ईसाई, यहूदी जैसे ना जाने कितने धर्म के लोग भी इसी श्रेणी में आते है जो सामान्य वर्ग के लिए बची सीटो और मोके के लिए अपनी योग्यता का इस्तेमाल करते हे, में ये बता दू की तुम्हारे आरक्षण जो 50% मिला है उनमें सिर्फ कुछ जातीया भर है, उसके बावजूद तुम हमारे लिए बचे मोको में भी अपना हाथ साफ कर देते हो और हमारे में हमारे सवर्ण समाज के अलावा भी ना जाने कितने धर्म के लोग भी है जो बचें सीट में भी अपनी दावेदारी पेश कर देते है, इसीलिए कहता हूं कि सब मिलकर इसे हटाते है। और यदि इसके बाद भी तुम्हे लगता है कि यह एक धोका हे,
तो छोड़ दो ना आरक्षण, आओ सब मिलके इसको ख़त्म करे और पूरे 100% में मोके के लिए मेहनत करे और आगे बड़े , जिसमे कबिलियत और योग्यता होगी वो आगे जाएगा।

जब आरक्षण जाती आधारित है जो 50% है, तो जो बचें 50% है उनमें सवर्ण जातियों के अलावा बाकी धर्म के लोग क्यों?

कुछ लोग कहते है कि इसे जाती की जनसंख्या के हिसाब से कर दे तो ,

अगर जाती के जनसंख्या के आधार पे होगा तो फिर जितने अमीर लोग है , वही इसका लाभ उठाते रहेंगे, बाकि गरीब लोगो की इस्थिति ऐसे ही बने रहेंगी। और जो इस्थिति आज के समय है वही कल भी रहेगी, अमीर अमीर होता जायेगा। और गरीब और गरीब होता जायेगा।

आइये हम सब मिलकर इस कुप्रथा को ख़त्म करे और नए भारत का निर्माण करे।

धन्यवाद ।

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