हाथों_में_देश_की_सुरक्षा_की_बागडोर_पर_खुद_का_घर_है_असुरक्षित!
पिछले माह असम के डोकलाम में गोड्डा का लाल श्रवण उरांव शहीद हुआ! झारखंड इस बलिदान से ममार्हत है! जिस दिन शहीद का शव गोड्डा में उसके पैतृक आवास पहुंचा तो पूरा गाँव एक झलक पाने को बेताब था!
विधायक अशोक भगत, उपायुक्त भुवनेश प्रताप सिंह के साथ महागामा के अनुमंडल पदाधिकारी संजय पांडेय भी शहीद के अंतिम संस्कार में शामिल हुए! सेना के अधिकारी भी शोक संतप्त परिवार से मिलकर दिलासा दिए!
भारत में प्रतिदिन कोई ना कोई सैनिक कहीं ना कहीं देश के लिए शहीद हो रहा है और अब देश को इसकी आदत भी हो गयी है! कुछ लोग इसे एक घटना मानकर समाचार सुनते है और तत्काल ही भूल भी जाते है!
जिस दिन शहीद का पार्थिव शरीर गोड्डा पहुंचा तो मैं भी वहां गया था! जब शहीद को उसके घर ले जाय गया तब मुझे अत्यंत दुःख हुआ कि एक सैनिक जिसके हाथ में देश की रखवाली की जिम्मेदारी होती है ताकि देशवासी शुकून से सो सके लेकिन उसका ही घर खुद असुरक्षित था! फूस का घर जिसका कई हिस्सा गिर चूका था और उसी में उसके माता-पिता रहते थे! घर के अंदर छप्पर इतना नीचे था कि कोई भी बिना झुके आंगन में नहीं जा सकता था!
उसके घर को देखकर मुझे बहुत दुःख हुआ! शहीद की भले सरकारी नौकरी थी लेकिन उसके माता-पिता और भाई आज भी मजदूरी कर ही पेट पालते थे! क्या उनपर सरकार की नज़र नहीं पड़ी कि इनको भी प्रधानमंत्री आवास देना है!
आज शहीद कि पत्नी को सरकार से मुआवजा और जमीन भी मिलेगा लेकिन उस शहीद का क्या जो झोपडी में जन्म लिया और झोपडी(बंकर) में ही सदा के लिए सो गया!
आज मैं झारखण्ड सरकार, विधायक अशोक भगत और उपायुक्त से आग्रह करता हैै कि देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद को जनने वाली माँ को एक आवास मुहैया करा दे! यही उनकी तरफ से उस बलिदानी परिवार के लिए एक सच्ची श्रन्धांजलि होगी!
जय हिन्द!
अभिजीत तन्मय