हम तुम्ही से रहे तुम हमीं से रहे,
देखो कैसे दोनो अजनबी से रहे,
छुईमुई सा जैसा हुआ रिश्ता हमारा,
कभी खिले से रहे कभी मुरझे से रहे.!
कभी बात करने को बरसों हो जाते,
कभी पल भर में तुम हमें दीख जाते,
खुली आंख तो हमको मालूम पड़ा,
चाहकर भी कभी हम दर्शन न पाते,
यशस्वी कभी हम जन्म से रहे,
तुम्हें खोकर देखो अकेले पड़े..!!!
जगत का है कैसा ये रूप निराला,
कभी छोड़े फूल कभी भोके भाला,
होंठ की बांसुरी तुम कभी चली आओ,
जरा देखो मुझको और मुस्कुराओ,
चला आया तन्हा अकेले यहाँ तक,
जैसे चंदन की लकड़ी में सर्पों की माला,
उत्तरों में हम सदा प्रश्नों से रहे,
हम तुम्हीं से रहे तुम हमीं से रहे,
देखो कैसे दोनों अजनबी से रहे..!!!
सौरभ तिवारी