आज इस बात को लिखते वक्त मैं वह सब हूबहू महसूस कर सकता हूँ जो पिछले कई बर्षों से मेरे देहाती अंचल में बसे माँ-बाप ने और देशभर के अन्य किसान भाइयों ने महसूस किया है। उदाहरण के तौर पर, मैं अपने स्कूल-कॉलेज की शीतकालीन छुट्टियों में अपने माँ-बाप की सहायता करते हुए कई बार इस समस्या को स्वयं ने वास्तविकता में बड़ी नजदीकी से आहूति बनकर देखा व झेला हैं ।
हैवी इंडस्ट्रीज को इलेक्ट्रिसिटी रात को भी दी जा सकती है। कल-खरखानों में कर्मचारी रात को भी काम कर सकते हैं। लेकिन किसान को इस भयंकर सर्दी की बीच महज 5 घंटे के लिए, और वह भी रात 10 बजे से सुबह 4 बजे तक की कड़कड़ाती ठंड के बीच? कैसी विडंबना है ये ???
सुबह-शाम कड़ाके की सर्दी और ठंडी हवाओं के बीच, कोहरे व ओंस में काम करना, दिन भर खेतों में लगे रहना, शाम को खाना खा के फिर से रात की कड़कड़ाती ठंड, कोहरे और औंस के बीच फसल में पानी देने के लिए सुबह तक खेतों में खड़े रहना, इस डर से की कहीं मेड़ फूटकर पानी का ओवरफ्लो फसल को तहस नहस ना कर दें। सुबह से फिर वही प्रक्रिया। इंसान सोयेगा कब? बिना पर्याप्त आराम के वैसे ही पागल हो जाये !
और हाँ, यह कहानी सिर्फ पुरूष की नहीं है, गाँव की महिलाएँ शहरों की तरह सिर्फ गृहणी ही नहीं होती साहब, बल्कि बेशक महिलाएं पुरुष से ज्यादा बड़ी किसान होती हैं। मैंने स्वयं यह सब बड़ी नजदीकी से आंकलन किया है कई बार ये सब, मुझसे पूछिये इस अनुभव के बारें में, कैसा लगता है ?
जो किसान हर प्राणी-मात्र का पेट भरता है उसके साथ ये सुलूक क्यों??? और ये आज से नहीं है, पिछली सरकारों में भी ऐसा ही होता आया है।
कलेक्टर साहब और मास्टर साहब को ठण्ड लगती है तो स्कूल का समय 10:00 बजे सहकारी दफ्तरों का समय 10:00 बजे कोर्ट का समय 11:00 बजे सभी बैंकों का समय 11:00 बजे ओर किसान को लाइट देने का समय आधी रात। देश के अन्नदाता को ठण्ड नहीं लगती क्या?
कुछ कीजिये साहब, किसानों के लिए भी। सुना है आपके राज में तो इलेक्ट्रिसिटी वैसे ही सरप्लस में चल रही है।
वरना अगले साल राजस्थान विधानसभा चुनावों में 200 में से 163 से 60-70 पर आने पर हार का विश्लेषण करते रहिएगा।
– हंसराज मीणा