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वध हो या हत्या? – क्या वो संविधान से ऊपर है?

हम अपनी आने वाली नस्लों को किस तरह से खराब कर रहे हैं. और उसका कितना भयावह रूप निकलकर सामने आ सकता है, ये हम सबके सामने आ रहा है. राजस्थान में एक युवक ने एक दुसरे मुस्लिम युवक की लव जेहाद के नाम पर निर्मम हत्या तो की ही साथ ही साथ इसे लव जिहाद का नाम भी दे दिया. और उसके बाद इस हत्या का विडियो बनाकर सोशल मीडिया पर भी डाल दिया. हो सकता है कि मामला आपसी रंजिश का हो और उसे मज़हबी रंग दे दिया गया हो. लेकिन सवाल यहाँ पर ये है कि ये बात आई कैसे? ये बात हमारे दिलो में हमारे सियासतदारों द्वारा भरा जा रहा है और हम या तो खुले में तालिया बजा कर या फिर घर के भीतर गालियाँ देकर खुश हो रहे हैं.

यहाँ पर इस हत्या से अधिक अफ़सोस की बात ये है कि इस मुद्दे के समर्थन में कट्टरपंथी लोग सोशल मीडिया पर समर्थन का नग्न नृत्य करते हुए दिख रहे हैं. यह वास्तव में यह स्थिति भयावह है. यह इतना भयावह है जैसे कि हमने एक परमाणु बम को फिक्स कर दिया है और उसके फटने का इंतजार कर रहे हैं. एक जानेमाने तथाकथित हिंदूवादी कवी (सावधान हिंदूवादी कहा है आतंकवादी नहीं) ने इसके समर्थन में खुलकर अपनी टाइमलाइन पर खुल के इस हत्या का समर्थन किया है और इसको वध भी करार दे दिया. उनका नाम नहीं लेना चाहूँगा. लेकिन पूछने पर कहते हैं की दुष्ट का अंत वध कहलाता है. उनसे यही पर नहीं रुका गया, अपने छंद और दोहों का इस्तेमाल करके पहले उन्होंने मुस्लिम संप्रदाय को जम कर कोसा और अंत में कहा कि उन्हें गर्व है की एक दुष्ट का अंत हुआ है. मैं एक सवाल करना चाहता हूँ वो दुष्ट है या फिर सज्जन इसका फैसला आपने कैसे किया उस दरिन्दे के मुख से जो सुना वो सच मान लिया.

हमारे समाज को बांधे रखने के लिए, इसमें शांति को बनाये रखने के लिए संविधान को बनाया गया है. लेकिन ये तथाकथित हिंदूवादी लोग संविधान को परे रख कर खुद ही इन्साफ करने में लगे हुए हैं. आप एक बार अपने दिल से पूछ कर देखिये कि हम किस और जा रहे हैं. या जाना चाहते हैं. आपको नहीं लगता जो हम बो रहे हैं वो हमारी आने वाली नसले काटेंगी, एक दुसरे को शक की नज़र से देखेंगी, एक दुसरे को मारने के लिए तत्पर रहेंगी? बचपन से हमने गंगा जमुनी तहजीब का नज़ारा देखा है, मेरे पिता के परम मित्र मुसलमान है, मेरा परम मित्र एक मुस्लिम है लेकिन कही न कही नजदीकी होने के बाद भी हमारे मन में एक अजीब सी दूरी बन रही है. इसका दोषी कौन है? शायद हम खुद. लेकिन ज़रुरत आज से ही स्वयं से प्रश्न पूछने की कि हम कि हम अपने चारो और किस तरह के समाज को देखना चाहते हैं?

Manish Gupta Guru.

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