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वज़न है कि संभलता नहीं

Sweet

फिल्मी दुनिया के कलाकार से प्रेम करने के अपने फ़ायदे और नुक़सान है| ये दुनिया ऐसी है जहाँ हर कोई अपने ख़ूबसूरत चेहरे मोहरे और तराशे हुए बदन के लिए जाना जाता है| बदन भी एक बुत की ही तरह है| छेनी लेकर जितना तराशो, उतना ही पैना होता जाता है| एक तरफ वो लोग हैं और एक तरफ हम| बचपन से बड़े होने तक, सिर्फ़ दिमाग़ का इस्तेमाल करना और आना सिखाया जाता है|और बदन की देखभाल इतनी ही सिखाई जाती है कि सुबह उठकर ब्रश कर लिया जाए, नित्य कर्म इत्यादि से निवृत हो, साबुन बाल्टी से स्नान कर लिया जाए| 

ज़िंदगी का मध्यांतर पार कर चुके हम जैसे लोग, जो ना पूरी तरह से युवा है, ना ही पूरी तरह से प्रौढ़| हम लोग वर्किंग क्लास यानि नौकरीशुदा वर्ग में आते हैं| हमें सुबह आठ बजे, सरकारी यातायात या फिर अगर खुशनसीब रहे तो चार पहिया पर सवार होकर आफ़िस जाना पड़ता है|आफ़िस में हमारा वफ़ादार डेस्क हमारा इंतजार कर रहा होता है जहाँ हम अपना लॅपटॉप तैनात कर देते है और कुर्सी पर निढाल हो जाते हैं|

पर यह सब हमारे घनिष्ठ मित्र को समझ नहीं आता| वो गाल मुँह फुलाए बैठे रहते हैं कि हम सिने जगत के तौर तरीकों में तालमेल बिठा नहीं पा रहे हैं| एक वो हैं जो चीनी और नमक को श्रद्धांजलि दे, उबले चिकन और सब्जियों पर गुज़ारा कर रहें हैं और एक हम है, जो आफ़िस में कटने वाले बर्थ्डे केक का सबसे बड़ा हिस्सा चपेटने के फेर में रहते हैं| हमारी सबसे ख़ास हमारी जीभ है| और इसे क्या पसंद है, हम उसका पूरा ध्यान रखते है| 

पर उन सुखी, सुई जैसी लड़कियों ने हमारा जीना दुश्वार कर रखा है| कभी फ़ेसबुक पर या मॉल में भ्रमण करते हुए, उन्हे देखकर, हम खुद ही अपनी बढ़ती काया को दोष देने लगते हैं| तो कभी यह कार्यभार हमारे घनिष्ठ मित्र संभाल लेते हैं| फिर घर आने के बाद एक जटिल संकल्प लेते हैं| कल से (आज तो अपने मन की कर लें) तेल, मसाले और मीठे का त्याग करना है| पर रात जैसे ही हम अपने शयन शैय्या में अचेत हो जाते है और अगली सुबह उठते हैं, वह संकल्प ‘रात गयी बात गयी’ तर्ज पर शहीद हो जाता है|

ठीक है, थोड़ा वज़न बढ़ गया, पेट पर सिलवटें आ गयी, कमर का क्षेत्रफल बड़ा हो गया, और हम अपनी उम्र से दो चार साल आगे चले गये| ऐसा नहीं है, हम कोशिश नहीं करते| मीठा और तला भूना खाना छोड़ कर बाकी सब एहतियात बरता है हमने| दस गिलास पानी पीना, लिफ्ट की जगह सीढ़ियाँ चढ़ कर जाना, और एक समोसे की जगह आधा ही खाना| इसके बावजूद भी कटरीना का कुर्ता हमें नहीं अंटता| 

कटरीना, शायद एक है और हमारी जैसे करोड़ो महिलाएँ, बालाएँ है, जो किसी और की छवि के पीछे भाग रही हैं| ये छवि जो कुछेक कमसिन, छरहरी युवतियों ने बड़ी मेहनत, उपवास, और कुर्बानी देकर बनाई है| हम भी उनके पीछे भागते हैं पर बीच में साँस फूल जाती है और हम अवकाश लेकर एक समोसा खा लेते हैं|

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