किसी की महफ़िल किसी की वीरानियों से गुजर,
ऐ रात तू कभी मेरे दिल की तन्हाइयों से गुजर,
भूल जायेगी अपनी मंजिल का भी पता भी तू,
मिले फुर्सत तो कभी मेरे महबूब की निगाहों से गुजर,
बिखरी हुई सी नजर आती है हर बार तू,
बिनपुछे ऐसे न किसी की बाँहों से गुजर,
आ बैठ चंद बातें तो कर लूं तुझसे मैं,
यूं न हरबार इतराकर मेरे करीब से गुजर….
#हर्ष मणि