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ये कैसा जश्न और कैसी राजनीति ?

आखिर कट्टप्पा को मारकर बाहुबली खुश क्यों ?महिस्मती की सड़कों पर बाहुबली की आगमन की खबर से बाहुबली का महिष्मति में स्वागत तो हुआ लेकिन ये बात आम जन के दिमाग मे समा नही रहा की ये कैसी जीत ?या ये कैसी खुशी? जो बाहुबली अपने सेवक कटप्पा को मारकर जश्न मना रहा हो !
भारतीय संविधान को अगर देखा जाय तो बाहुबली का दर्जा कटप्पा से ऊपर का है ,तो फिर बाहुबली ने ऐसे जश्न को रोका क्यों नही? जिससे उनकी खुद की किरकिरी होने वाली थी!खैर ये सब तो अन्हार घर के बात लागो !बाहुबली की आगमन की खबर से समर्थकों के जयघोष से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो बाहुबली ने महिष्मति को भल्लालदेव व बिज्जलदेव के आतंक से मुक्त कर झंडा गाड़े हों । समर्थकों का जोश तो देखने लायक था! आखिर ये खुशी इसलिए थी कि बाहुबली ने कट्टप्पा को मारा था,वही कट्टप्पा जिसने अपने ईमानदारी को निभाने के लिए ही बाहुबली को भाला भोंका था !लेकिन उन समर्थकों को कौन बताए की जिस खुशी में वह झूम रहे हैं वह तो उनके आका के सामने तो कटप्पा के स्तर के कारिंदे थे। इसी तरह चापलूस समर्थक अपने आका को खुश करने के लिए गर्मजोशी से स्वागत के साथ जश्न पर उतरते रहे !ऐसी स्थिति आगे भी रही तो न जाने सम्राज्य का क्या होगा ?
आका को भी पता होना चाहिए की भारतीय संविधान के लोकतंत्र में पूरे सम्राज्य के आधार स्तम्भ में बाहुबली कट्टप्पा और राजमाता को बांट दिया गया है !जिसमे राजमाता के बाद बाहुबली फिर कट्टप्पा का स्थान है यानी कट्टप्पा कार्य करने वाला है,तथा बाहुबली कार्य करवाने वाला है,राजमाता कार्य पर फैसला सुनाने वाली होती है ,अजीब सी बात है मालिक सेवक को मारकर खुशी से इतराते घूम रहा है! ये नव सिखवे समर्थक आज सच में बाहुबली को पप्पू बनाने पर आमादा है !लिखते लिखते एक समर्थक गुनगुना बैठा की …हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे .. .बांकी ये बात है न साहब की ये पब्लिक है, ये सब जानती है… !इसलिए तो सभी राजमाता की प्रतीक्षा में है !

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