कुछ दिन पहले की बात है, जहां सवाईमाधोपुर से बाबा रामदेव के दर्शन के करने निकले 40 लोग। जिनकी बस बनास नदी में जा गिरी, 33 लोगों की मौत हो गई। हंसी खुशी का माहौल अचानक थम सा गया, चारों ओर चींख पुकार, हाहाकार मचा हुआ था। कुछ ग्रामीण मदद के लिए आगे आए, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। घटनाक्रम इतना बड़ा था तो मामले की जांच भी होनी थी। तो सामने आया कि बस एक 16 साल का बच्चा चला रहा था। सरकार ने मरने वालों के परिजनों को 2-2 लाख रुपए सहायता के तौर पर देकर इतिश्री कर ली। पर क्या सिर्फ यही काफी है? क्या इतने बड़े घटनाक्रम का जिम्मेदार सिर्फ वह अकेला 16 वर्ष का बच्चा ही है? नहीं। बिल्कुल भी नहीं।
उन 33 लोगों की मौत के जिम्मेदार हम भी हैं। पूरी तरह से हैं। क्योंकि, जब यातायात का नियम है कि 18 वर्ष से कम उम्र का बच्चा शहर में टू व्हीलर भी नहीं चला सकता है, तो 16 वर्ष के बच्चे को कंडक्टर बनाया क्यों और किसने? इतना ही नहीं, उसे बस भी चलाने को दे दी। वो भी ऐसी जगह जहां से गाड़ी निकालना मुश्किल होता है। इतनी बड़ी लापरवाही का कारण सिर्फ इतना था कि उस बस के ड्राइवर ने शराब पी रखी थी। इसके लिए पूरी तरह से बस मालिक जिम्मेदार है।
हम जिम्मेदार इसलिए भी है कि हम भी आए दिन बच्चों को अॉटो, टेम्पो, बाइक, स्कूटर जैसे वाहन चलाने को देते हैं, जिससे कभी न कभी कोई भी हादसा हो सकता है। उस दिन भी उस नाबालिग को देखते हुए सभी ने नजरअंदाज कर दिया। रोजमर्रा की जिंदगी में हम ऐसी बड़ी गलतियां करते भी हैं और देखते भी। लेकिन उसे नजरअंदाज सिर्फ इसलिए कर देते हैं, क्योंकि यह हमारे लिए आम बात है। इस हादसे से हमें सीखना चाहिए कि हमारी छोटी समझी जाने वाली लापरवाही इतने लोगों की जान ले सकती है।
कब तक सिर्फ सहायता राशि बांटेगी सरकार, सख्ती क्यों नहीं?
ऐसे कई हादसे हुए हैं, जिनमें सरकार ने पीड़ितों के परिजनों को सहायता राशि बांट दी। लेकिन नियम होने के बाद भी सरकार की ओर से सख्ती क्यों नहीं की जाती? क्या इस हादसे के पीछे वहां की सरकार और अधिकारी जिम्मेदार नहीं हैं? जिस बात के लिए वह इतनी मोटी तनख्वाह ले रहे हैं, ये काम उसका हिस्सा नहीं है। 2-2 लाख में सरकार ने 33 परिवारों के आंसू तो खरीद लिए हैं पर क्या कभी कोई सरकार मुस्कान बेचने का काम कर पाएगी। जिस दिन मुस्कान बिकनी शुरू हो जाएगी उस दिन सरकार के पास भी खरीदारों की कोई कमी नहीं होगी।