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प्रेम के वास्तविकता की सच्ची दास्ताँ

नमस्कार,
मैं  आशुतोष आप सभी पाठक को प्रणाम करता हूँ !
ये   कोई   कहानी  नही  है  जो मैं आपसे साझा करने  जा रहा हूँ  मैं अपने जिन्दगी के कुछ पलों को शब्दों की माला मैं पिरो के आपके समक्ष पेश कर रहा हूँ ! त्रुटियों के लिए माफ़ी चाहूँगा
बात  तब की है जब मैं अपने स्नातक अध्ययन के साथ- साथ काम करने का तरीका सीख रहा था एक छोटी सी कंपनी में |
मध्यम वर्गीय होने के बाबजूद भी बहुत सारी सुख-सुविधाएं मिली लेकिन समय से पहले बड़ा भी हो गया था मैं शायद यही वजह है कि मैं हमेशा से अपने से जुड़े लोग जो    मेरा बुरा भी चाहें लेकिन मैं उनसे जुड़े रहने की कोशिश करता हूँ |
तक़रीबन चार साल पहले मेरी जिंदगी में बाढ़ लाने का कारण भी यही था |
हलांकि मेरे मौसा  जी के साथ एक सड़क हादसा हुआ  लेकिन  और उसका घाव मुझे   पीड़ा दे  गया |
वैसे तो मेरा स्वभाव बचपन से चंचल था लेकिन मैं दिल्ली आकर कुछ बदल सा गया था | जैसे: चिडचिडापन , किसी के भी गलत हरकतों  से  मेरे अन्दर  ज्वाला   जलने लगती थी , एकांत  में  रहना  आदि | मौसा जी का हाल जानकर मैं चिंतित हुआ और उन्हेंने  अपने पास दिल्ली आकर इलाज करवाने का अनुरोध करने लगा ,मेरा अनुरोध मौसा जी को समझ में न आया लेकिन किसी और को पसंद आ गया जो की उनकी रिश्तेदार थीं | जैसे – तैसे वो वहां से मेरा नंबर ले पायीं थी | ऐसा उन्होंने ही मुझसे कहा था |
अगले ही दिन शाम को मुझे उनका फोन आया | और अगले ही दिन शाम को मुझे उनका फोन आया क्योंकि मैं उनसे अंजान था मैंने गलत कॉल कर कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया | फिर उनका बार-बार फोन आने लगा तो मैं परेशान हो कर उन्हें डांट भी लगा दी| उसके बाद उन्होंने मुझे पहेलियां बुझाना आरंभ कर दिया लेकिन मैं उन सभी भावनाओं और वातावरण से काफी दूर था मुझे कुछ भी समझ में ना आया | काफी मशक्कत के बाद वह मुझे समझाने में सफल हो पाई मेरे समझ जाने के बाद फिर से मैंने फोन काट दिया था | उसके बाद भी उनका फोन मुझे बार बार आने लगा था कई बार तो उनके फोन का जवाब ना दे कर घंटी बजने दिया करता था हालांकि फोन करने के पीछे उनका असली उद्देश्य क्या था वह मुझे तब समझ में नहीं आया था, शायद उन की चंचलता होगी ! और मेरे किशोरावस्था की सीढ़ी पर मेरा पहला कदम था इसलिए मेरा  मन भी अपने चंचल स्वरूप को अपनाने से इंकार न कर सका और हमारी मित्रता मात्र हुई थी सिलसिला काफी समय तक चलता रहा था दोस्ती का ! अपने सुख दुख बांटना ,अपने पूरे दिन चर्या का बखान करना  | बात कुछ इस कदर बढ़ गई थी कि हम दोनों को एक दूसरे की आदत सी हो गई थी ! समय भाग नहीं बस झुमते हुए चल रहा था और खुश रहना किसे पसंद नहीं और इस झूमते हुए लम्हों में एहसास ना हुआ कि बरस बीत गए, सालों बाद भी मालूम उन्हें ना था मालूम मुझे ना था  | कमी तो खलती थी लेकिन सिर्फ हम एक अच्छे दोस्त थे ! एक-दूसरे से तहजीब भरी बातें और खुशियों के बोल ही बोले जाते थे |अचानक एक दिन हृदय की आवाज़ कंठ मात्र को आई थी अभी जुबान ने  उन तक प्रकाशित भी ना किया था और उनका उत्तर मिल चुका था ! फिर क्या था दोस्ती जो कि अब दोनों को कुबूल थी एक नया रंग मिल चुका था सातवें आसमान पर होना तो हमारा हक बनता था  ! तब तक परिवार वालों को खबर क्या थी मालूम ना था और हम अपने ख्वाब के घरौंदे बनाकर उसमें जीने भी लगे थे ! स्वभाव अब कितना बदल गया था |हंसना ,खुश रहना ,और मंजिल पाना तो हमें भी मंजूर था मेहनत में तब भी करता था अभी कर रहा था  ! लेकिन तब के मेहनत का कोई राह नहीं था| और अबके मेहनत का एक  ख्वाब भरा मंजिल दिखने लगा था! मोहब्बत सब बहुत प्यारा होता है और उसका एहसास भी उतना ही मनमोहक होता है |हमारे प्रेम संबंध की प्रगाढ़ता इतनी तो थी, लेकिन अब तक हमने एक दूसरे को देखा ना था ,
और हृदय प्रेम का  यह एक जीवित उदाहरण है जब आप एक दूसरे को देखे बिना प्रेम का घरौंदा नहीं ,
इमारतें बना देते हैं क्या इसे  पागलपन कहा जा सकता है ? अगर नहीं ! तो प्रेम संसार में सर्वोच्च है !और अगर हां ,
तो यही प्रेम की वास्तविकता है और मेरे प्रेम को मैंने एक और   नाम दिया था वह था विश्वास  !
लेकिन अगर विश्वासघात  हुआ तो ऐसा नहीं है कि प्रेम की वास्तविकता को असर हुआ
यह जरुर हो सकता है कि किसी एक का पलड़ा थोड़ा ऊपर गया
वैसे तो हृदय ने अपनी रफ्तार और शायरी को आगे बढ़ा दिया था, लेकिन उसी बीच एक ऐसा भी लम्हा आया था जब उनके ही रास्ते पर चलते -चलते हमें एक दूसरे को दर्शन का अनूठा अनुभव मिला था ,और फिर ह्रदय ने  दीवाली मनाई थी ,
हृदय के जश्न की रंगीन सांझ थी वो  और तब यह एहसास भी हुआ था कि वास्तविक प्रेम में प्रेम ही होता है !
एक सांवली सी सूरत ,चेहरे पर छोटे छोटे दाने, नाक का कुछ अता पता नहीं ,लेकिन फिर भी यह महसूस हो रहा था कि यह उन के श्रृंगार का एक हिस्सा है!
कभी दोस्तों के साथ मस्ती मजाक में या बचपन में जीवन संगिनी की कल्पना में तो ऐसा   जहन में नहीं आया था मगर वास्तविक प्रेम में दर्शन दृश्य की व्याख्या ही  मूर्खता जान परती है
या फिर यह एक मीठी नोक झोंक का रुप ले सकती है
उस दरमियाँ उनकी ढेर सारी बदमाशियां भी झेली मगर वह मीठी लगती थी और उसका पंचायत कर हम आगे निकल जाते थे
मगर कभी-कभी यह खौफ  था कि इनकी बदमाशियां कहीं मेरी जिंदगी की नाव न डुबो दे | लेकिन प्रेम पर विश्वास कहे या खुद पर भरोसा ने  मुझे इस कदर हराया के ईश्वर की सुंदर रचना इंसान ,और सूरज की लालिमा से भी डर लगने लगा |
और इसका कारण स्पष्ट रुप से खुद को ही मानूंगा !क्योंकि मैं प्रेम संबंध को बदनाम करने या  नीचा दिखाने के उद्देश से रचना नहीं कर रहा
जज्बात ने  यहां पर भी अपना दम नहीं तोड़ा था !अब भी धड़कन – आत्मा उन्हें भोली  ही कह कर पुकार रही थी
उनकी जिद जो    उनके सही रास्ते से भटकाने में सहायक थी उस जिद्द त्याग  को बार-बार याचना कुछ दिनों तक मेरी दिनचर्या का अहम् हिस्सा रहा
हृदय को अब भी मंजूर नहीं कि वह हमारी नहीं
इसका क्या कारण हो सकता है “कल्पना अनंत है”
लेकिन चेहरे का भाव तो कुछ और ही कह रहा था गतिविधियां जो मैंने पढ़ने की कोशिश की थी वह कह रही थी की चाह नहीं पर हां यही है सही या फिर यह सब ह्रदय तसल्ली मात्र के लिए देखा गया हो!!!!
समर्पित  चंद  पंक्ति
मैं राह चलता गया, मैं राह चलता गया
कब भूल गई मंजिल मेरी पर राह चलता गया
पृथक पृथक कर कठिनाई को
यूं सहेज तेरी परछाई को
मैं राह चलता गया
न जाने कब हवा चल गई
ना जाने कब घटा मुड़ गई
मेरे ख्वाबों में तो तुम थे
मेरी यादों में तो तुम थे
मैं नीर नहीं मदिरा प्याला था
हुआ करता मैं भी मतवाला था
सुधारस तेरी चाहत का जो मिल गया
मैं राह चलता गया
मैं राह चलता गया
पृथक पृथक कर कठिनाई को
यूं सहेज कर तेरी परछाई को
मैं राह चलता गया
“धन्यवाद”
आशुतोष कु० गौतम
अगर  मेरी लेखनी आपको पसंद आई तो सूचित कीजियेगा !
 

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