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पर्यावरण को अब बचाने की बारी

प्रकृति और मानव का संबंध चिरकालिक और शाश्वत है । प्रकृति ईश्वर का रूप है जिसे हम देख भी सकते है । प्रकृति की गोंद में खेलते हुए मानव नें उन्नति की है सभ्यता के प्रारम्भ में मानव प्रकृति के बहुत निकट था परन्तु जैसे-जैसे पृथ्वी महाद्वीपों, देशों, और शहरों में विभक्त होने लगी और कंक्रीट के जंगल खड़े होने लगे, धीरे-धीरे मानव प्रकृति से दूर होता गया और उसने प्रकृति की उपेक्षा करनी शुरू कर दी है । हमारे पूर्वज पंचमहाभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, और वायु के महत्व को जानते थे क्योकि प्राणीमात्र की संरचना में यही उपदान के कारण है । वैदिक काल से ही प्रकृति को उच्च भाव से देखा गया है प्रकृति व मानव अन्योंन्याश्रित है इसीलिए प्राणिमात्र वन, उपवन, हरे-भरे वृक्षों, लताओं और वनस्पतियों, झरनों व नदियों में कल-कल बहते शुद्ध जल का लाभ उठाता है । किंतु आज यह सारा पर्यावरण दूषित हो गया है और पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय हो गया है । हमारी लापरवाही के कारण मानो प्रकृति हमसे क्षुब्ध हो गई है और बाढ़, सूखा, भूकंप, भूस्खलन, आदि अनेक प्राकृतिक आपदाओं के रूप में अपना रोष प्रकट कर रही है । इसी वजह से मानव घबराया हुआ है और दिन ब दिन पर्यावरण के प्रति सचेत होता जा रहा है । आज इस् दिशा में अनेक नियम और कानून बनाये जा रहे है । और सरकारें करोडों अरबों रूपया खर्च करके पर्यावरण को प्रदूषण से बचाना चाहती है पर कुछ लोगों के व्यावसायिक स्वार्थ इस दिशा में अवरोध बनकर खड़े है ।प्रकृति मानव तथा पर्यावरण सृष्टि रूपी त्रिभुज के त्रिकोण है प्रदुषण कई प्रकार से प्रकट होता है जैसे जल, वायु, मृदा, ध्वनि, व रेडियोधर्मी प्रदुषण । जनसंख्या विस्फोट से भी प्रदुषण होता है मानव द्वारा फैलाये जा रहे प्रदुषण से आज प्रकृति की आत्मा कराह उठी है । वृक्षों की अनवरत कटान, भूमि का तेजी से क्षरण, औद्योगीकरण, पश्चिमी जीवन शैली से उपजा प्रदुषण, वनस्पतियों तथा अपार वन संपदा का ह्रास, जीव जंतुओं का विलुप्तिकरण, नदी व भूक्षरण, परमाणु परीक्षणों से उत्पन्न जल, वायु तथा भूमि में प्रदुषण, पालीथीन का प्रचुर मात्रा में बढ़ता उपयोग, शहरों में बढ़ता कूडा-करकट, अस्पतालों से निकला कचरा, नदियों में कूडा-करकट फेकने से उपजा जल प्रदुषण, शहरों में बढ़ता ध्वनि प्रदुषण, पेट्रोल-डीजल के जलने से उपजा वायु प्रदुषण, ओजोन की परत में क्षरण, ग्लोबल वार्मिंग तथा न्युक्लियर फाल आउट आदि के गंभीर परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ी को भुगतना पडेगा ।
सुशील कुमार  वर्मा ,गोरखपुर विश्वविद्यालय

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