उम्मीद दिलमे लिये, घर से मै निकलता हूँ
अपनी मंज़िल की तरफ, दो कदम मै चलता हूँ
हज़ारो ख्वाब मूझे चैन से ना सोने दे
मै ख्वाहिशात भी दिलका नही बदलता हूँ
हर एक कसम से मेरी जुस्तजु भी बढ़ने लगी
मै दिलके शहर से बचकर कभी निकलता हूँ
वह रात याद नही मूझको कैसे झूठ कहुं
मै चाहतो से तेरे दुनिया कभी संभलता हूँ
है दिलमे प्यासा मेरे होंठ भी लरज़ते कभी
कभी बदन के तपिश से भी मै उबलता हूँ
सनम तुम्हारी खूशी के लिये कभी जीना
कभी मै ख्वाब तेरा दिलमे लेके चलता हूँ
जो बात तुमने कही मेरा राजदान बनकर
मै तेरा राज कभी ज़िक्र नही करता हूँ
मै मांगता भी नही कूछ खूदा से तेरे सिवा
मै ज़िंदगी की तरह प्यार तुमसे करता हूँ
हबीब मंज़र
९ दिसम्बर २०१७