भारत की जनसंख्या 130 करोड़ से भी ज़्यादा है। गूगल से पूछा तो पता चला कि भारत में तीन हज़ार जातियां और पच्चीस हज़ार उपजातियां है। यहां जो भी पैदा होता है उसकी, अपने धर्म के अंदर ही एक जाति होती है। इस्लाम में जाति प्रथा का ज़िक्र प्रभावी तौर पर नहीं मिलता है पर भारत के मुसलमान भी जातियों में विभाजित हैं। ‘जाति’ हमारा इंडिजेनस प्रोडक्ट है और हम इसका प्रोडक्शन जारी रख रहे हैं। हमारा समाज सदियों से जाति के नाम पर दमन करता चला आ रहा है, पर हमें इस बात से कुछ खास आपत्ति नहीं। आजकल प्रेम विवाह होने लगा है। लड़के या लड़की में जो भी जाति श्रृंखला में ऊंचे पायदान पर होता है, उसके मम्मी-पापा की नाक कटने का खतरा रहता है। इसलिए जो भी इनमें नीची जाति का होगा वह नाक वाले सास-ससुर को मनाने में अपनी नाक रगड़ता रहेगा।
लाइफ पार्टनर पसंद नहीं आने वाले मुद्दे पर बच्चों को अपने पेरेंट्स को अलग-अलग कारणों पर मनाना भी नहीं पड़ता। वजह ये कि वो जानते हैं कि नापसंदगी का कारण बस उनके पार्टनर की जाति ही है। लोग इससे जूझ तो रहे हैं मगर खत्म शायद ही कर पा रहे हैं। समाज तो बहुत बड़ी चीज़ हो गई, अपने घरों में भी ये अंतरजातीय लव मैरेज वाले जोड़े भी कोई बदलाव नहीं ला पा रहे हैं। शादियों का मौसम आ रहा है। सगाइयां शुरू हो चुकी हैं तो आस-पास कुछ ऐसे ही उदाहरणों के चलते इस बात का ज़िक्र सही लगा।
जाति हमारे समाज का कितना खतरनाक पहलू है। एक दलित महिला के हाथ से एक ऊंची जाति की महिला का कूड़ादान छू गया था, जिसके बदले उसकी इतनी पिटाई हुई कि पेट में पल रहे उसके बच्चे की जान चली गई। कुछ घंटो के बाद सावित्री (दलित महिला) की भी मौत हो गई। जाति सिर्फ जाति नहीं, कुछ के लिए अहंकार और कुछ के लिए सज़ा होती है।
ऊंची जाति का होना भारतीयों के रगों में रक्त नहीं, अहंकार का संचार करता है। हम इतने अहंकारी हैं कि हमें मानव का एकमात्र धर्म, मानवता, का भी ख़याल नहीं रहता।
मेरी दोस्त की मम्मी ने कहा था कि ‘सैयद’ के लड़के के अलावा किसी और से अपनी बेटी का प्रेम विवाह वो नहीं स्वीकारेंगी। कारण? दूसरी जाति में शादी से ‘हड्डी’ बदल जाती है! सावित्री की खबर सुनने के बाद मुझे भी यह खयाल आया था कि शायद उसके छूने से उस डस्टबिन का रंग या डिज़ाइन बदल गया होगा, जिससे नाराज़ ऊंची जाति की उस महिला ने सावित्री और उसके बच्चे की हत्या कर दी।
छुआछूत के नाम पर आए दिन किसी को मार देने की खबर आती है। मैंने अपने घर में देखा है कि किस तरह से नीची जाति के बच्चों से बात करते वक्त ऊंची जातियों के मर्दों-औरतों का टोन और शब्द बदल जाता है। इतनी उपेक्षा से वह अपने समाज के बच्चों को नहीं पुकारते। महिलाओं की भी वही स्थिति है। जिस समाज में महिलाओं पर पुरूष सत्ता इतनी बुरी तरह हावी है, वहां उस महिला का क्या होता होगा जो महिला होने के साथ-साथ जाति के निचले पायदान पर भी है?
जाति का अहंकार आप पद्मावती विवाद में भी देखा होगा आपने। यह इतिहास और भूगोल का सवाल नहीं है। न किसी औरत की शान की रक्षा का विषय। यह अहंकार है। किसी खास जाति से होने का। वीरता या कायरता किसी जाति में पैदा होने से नहीं आती। और अगर एक काल्पनिक कथा को आप सच मान भी लेते हैं तो वहां एक राजा, एक दूसरे राजा से हारता है। एक राजपूत एक मुसलमान से नहीं। आपको जाति इतनी प्यारी क्यों है? जाति आपको आखिर देती क्या है? रोज़गार? शिक्षा? सुरक्षा? क्या देती है किसी को भी उसकी जाति?
ऊंची जाति आपको ऐसा घमंड देती है, जिसके नशे में आप पागल हो जाते हैं। और नीची जाति का होना आपको वो अपमान, वो असुरक्षा, वो असमानता प्रदान करता है जिसका हकदार कोई मनुष्य नहीं।
मैं दिल्ली में रहती हूं। और इस शहर का दिल बहुत बड़ा है। यहां रोज़ हज़ारों की संख्या में बच्चे आते हैं। अपने सपनों की उड़ान भरने, अपने लिए रोज़गार ढूंढने। पर यहां भी मुझसे जाति पूछी गई है। पीजी मालिक ने भी पूछा है, पीजी में रह रही लड़कियों ने भी और यूं ही कहीं मिल गए लोगों ने भी।
पता नहीं वो मेरी जाति जानकर क्या करते हैं। मैं उस जाति से खुद को आइडेंटिफाई नहीं कर पाती। और इस बात से मुझे नफरत होती है कि कोई मेरा दोस्त इसलिए बनना चाहे कि मैं उसकी जाति से हूं। या कोई लड़का मुझमें इंटरेस्ट लेने से पहले श्योर हो ले कि मैं किस जाति की हूं।
एक बहुत बड़ा नाम है पत्रकारिता की दुनिया में। मेरे लिए इंसपिरेशन है वो इंसान, वो बिहार से है और मैं भी। अगर नहीं भी होता वह आदमी बिहार से, तब भी मेरे लिए वह उतना ही प्यारा होता, उतना ही आदरणीय होता। हां, वो रवीश कुमार हैं पर भारत में अनेक अलग-अलग राज्यों के बेहद ईमानदार और प्रभावी पत्रकार हैं, जो मुझे उतने ही पसंद हैं। आज यूं ही मैंने गूगल को रवीश कुमार लिखकर सौंपा, मुझे रिज़ल्ट्स देखने थे। मैं दंग रह गई देख जब रिलेटेड सर्च में ‘Ravish Kumar Caste’ भी आया। मतलब लोगों को रवीश कुमार की भी जाति जाननी है। थोड़ा हल्का महसूस कर रही हूं तब से। खुद को सांत्वना दे पा रही हूं कि मैं अकेली नहीं हूं। इस देश में सबको सबकी जाति जाननी है।