वैसे इसे मत पढ़िए तो बेहतर है। आपको बड़ी तकलीफ़ होगी एक ऐसे शख्स को याद करके, जिसे आपने हमेशा गिरोह के पन्नों में पढ़ा। खैर…
जब दो टुकड़ों में देश मिला तो उन्होंने इसका रोना नहीं रोया। रियासतों का झगड़ा मिला तो भी उन्होंने इसका रोना नहीं रोया। शुरुआत में ही महात्मा का साथ छूटा वो इस ज़बरदस्त झटके के बावजूद भी मायूस होकर नहीं बैठे। अपनों ने जी भर कोसा लेकिन इस पर भी रोना नहीं रोया। दुनिया ने शक से देखा लेकिन उन्होंने उफ़्फ़ तक ना की। मज़हबी रंग से उन पर कीचड़ फेंका गया वो इस पर भी पलट कर नहीं मुड़े। तमाम विचारवादियों ने उनमें अपने आप को ना पाकर खूब आलोचना की। उन्होंने तब भी इनमें से किसी एक को भी देशद्रोही या अपने रास्ते का कांटा नहीं कहा। बहुतों ने उनकी जड़ो में दही डालने का काम किया, उन्होंने उन्हें भी साथ रखकर दुनिया के सामने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की वह मिसाल रखी जिसे आज भी कोई तोड़ नहीं पाया।
17 साल देश के शीर्ष पद पर रहे मगर कभी अपने आलोचकों को नहीं दबाया। अडिग अपने काम करते ही रहे। देश की हर उस चीज़ जिस पर तुम फ़क्र कर सकते हो, उसकी बुनियाद रखी। देश की भुजाओं को जिसने हर दिशा में फैला दिया। जिसकी छांव में सब धर्म, सब विचार फलते फूलते रहे, उन्होंने किसी को जबरन नहीं रोका, इसी आज़ादी का तो ख्वाब बुना था। वह आधुनिक तो थे ही, मगर उनमे ज़बरदस्त आध्यात्म भी था। उनकी ज़िन्दगी के तमाम रंग बिखरे पड़े हैं, हर एक अपने मतलब का रंग लिए मतवाला फिरता है।
आपने तो उन्हें कुछ खास किताबों से जाना जिस पर उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में कभी रोक नहीं लगाई। जमकर अपनी आलोचना करने के मौके दिए। मैं मानता हूं कि गलतियां हुई होंगी। निर्माण के मार्ग पर बहुत बार गलतियां होती हैं, मगर इसका मतलब यह नहीं कि वो व्यक्ति पूरा गलत है। हो सकता है एक बेहतर मुल्क़ की तस्वीर बनाने में आपके धर्म को चोट पहुंची हो, मगर उससे ज़्यादा ज़रूरी ये कि उन्होंने इसे एक किया। आज जो पाकिस्तान और आपमें फ़र्क है, जिसे आपको छोड़ पूरी दुनिया महसूस करती है। वह यह है कि पाकिस्तान को नेहरू जैसा व्यक्तित्त्व नहीं मिला। वो देश अस्थिर और असफल है, नेहरू ने हमें स्थिर किया और दिशा दी।
हां बात पर पहले-पहले कहने वाले अगर देश के पहले प्रधानमंत्री को इज़्ज़त से याद कर लेंगे तो उनकी देशभक्ति कम नहीं पड़ जाएगी। मुझे भी लगता है जिसका कट्टर हिन्दू या मुस्लिम विरोध करें, यानी वो ही सही था। नेहरू में छिपी हर तरह की समझ को समझना मामूली बात नहीं है। नेहरू चन्द पन्नों के मोहताज नहीं, जो खुद मोटी-मोटी किताबों को लिख गया हो, उन्हें स्कूल के कोर्स के दो पेज से निकाल कर लोग अपनी ज़हनी कमज़ोरी और तंगनज़री के सिवा कुछ नहीं दिखाते।
आज नेहरू का जन्मदिन है, हमें पता है उन्हें याद करने में बहुतों की सांस फूलने लगेगी। हर वो व्यक्ति उन्हें याद करने में कतराएगा जो अपने धर्म के तो करीब है मगर देश से दूर है। नेहरू जब तक हम हैं तब तक भले अकेले आपको याद करें, लेकिन करते रहेंगे। मेरे देश के निर्माता आप ही हैं। कोई इसका चाहकर, जितना रूप बदलने की कोशिश करे, ज़र्रे-ज़र्रे में पड़ी नेहरू की छाप को खत्म करने में उनका दम निकल जाएगा, मगर वो यह बिल्कुल भी मिटा नहीं पाएंगे। आज आपकी बहुत-बहुत याद आती है पण्डित जवाहर लाल नेहरू।