कुछ दिनों पहले मुलायम सिंह ने कृष्ण को पूरे देश का आराध्य बताया वो यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने कृष्ण को राम के मुकाबले अधिक पूजनीय बताया। इसे भारतीय राजनीति का कुरूप चेहरा कहा जा सकता है, वरना इस भारत में जन्मा हर एक महापुरुष इस देश और समाज के लिए बराबर है। विरोध राजनेताओं का आपसी हो सकता है, वरना राम हो, कृष्ण हो, बुद्ध या महावीर या गुरु नानक, यह सभी हमारे आराध्य हैं।
अभी तक मेरा मानना था कि भारतीय धर्म और इतिहास सैकड़ों साल पुरानी भारतीय संस्कृति का महत्व दर्शाता है, शिल्पकला, परंपराओं और प्राचीन आध्यात्मिक संदेशों के तत्वों को शानदार ढंग से दिखाता है।
फिलहाल मेरी थोड़ी मनोदशा बदली और मुझे लगा दूहने वाला अच्छा हो इस इतिहास और धर्म से ज्ञान ही नहीं बल्कि वोट भी दूह सकता है।
फिलहाल रानी पद्मावती को लेकर राजनेता, पत्रकार और इतिहासकार अतीत के खंडहरों में लाठी लिए बैठे हैं। उम्मीद है जो भी फैसला होगा उससे इतिहास का तो पता नहीं पर सामाजिक समरसता का ज़रूर नुकसान होगा। हज़ारों साल के इतिहास में कौन हारा और कौन जीता अभी बयानों की हांडी में ज़ुबानों की मथनी चल रही है। उम्मीद हैं इसके बाद जो निकलेगा उससे लोग अपने-अपने तरीकों से आत्ममंथन कर आत्ममुग्ध हो सकते हैं।
हाल ही में हमने लगभग 441 साल बाद इतिहास में हमने हल्दीघाटी का युद्ध जीता था। अचानक टीपू सुल्तान को लेकर 217 साल पहले हुई उठापटक पर हमने फिर से धोती चढ़ा ली थी। टीपू महान था या लार्ड कार्नवालिस, थोड़ी देर को भूल जाओ पर 70 के दशक में कर्नाटक की आरएसएस शाखा ने भारतीय महावीरों को श्रद्धांजलि देने के लिए कन्नड़ में “भारत भारती” पुस्तक सीरीज़ निकाली थी। इसी में एक पुस्तक टीपू सुल्तान के बारे में भी थी, शायद उस समय टीपू महावीर रहा होगा पर समय के साथ तो बड़े-बड़े कद्दावर नेता आज बूढ़े हो चले तो टीपू की क्या बिसात वह तो इतिहास की चंद लाइनों में सिमटा बैठा है।
मैंने कहीं पढ़ा था कि 2012 में बी.एस. येद्दयुरप्पा ने जब कर्नाटक जनता पक्ष के नाम से अपनी पार्टी बनाई तो एक जलसे में टीपू सुल्तान जैसी पगड़ी बांधकर और हाथ में वैसी ही तलवार पकड़कर टीपू को महान वीर का सम्मान दिया। उसके बाद उन्होंने पार्टी बदली तो टीपू से महानता की गद्दी भी छीन ली, मुझे समझ नहीं आ रहा में टीपू के खेमे में जाऊं या अंग्रेज लार्ड कार्नवालिस के?
जब छोटा था तो सुनता था इतिहास हमारा मार्गदर्शन करता हैं पर 2017 में आकर पता चला कि सरकार ठीक-ठाक हो तो हम भी इतिहास की लगाम पकड़कर उसका भी मार्गदर्शन कर सकते हैं।
कुछ दिन पहले ताजमहल को लेकर नेतागण एक-दूसरे की ज़ुबान पकडे खड़े थे। अचानक किसी ने बता दिया कि नया मामला बाज़ार में आया है, 721 साल पहले के इतिहास में कुदाली मारो, वोट और नोट दोनों निकलकर आएंगे। इसके बाद मेरठ के कुछ युवाओं ने पद्मावती फिल्म के निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली और हीरोइन दीपिका पादुकोण का सिर काटने के लिए 5 करोड़ रुपये का इनाम घोषित किए जाने का समर्थन किया।
हरियाणा बीजेपी मीडिया संपर्क प्रमुख सूरजपाल अम्मु ने इनाम राशी बढाकर दुगुनी कर दी और कहा कि फिल्म पद्मावती भारतीय संस्कृति और नारीशक्ति का अपमान है। किसी का सर, नाक या जीभ काटने की धमकी और सिर की कीमत लगाकर सम्मान की पब्लिसिटी करना कितना आसान सा हो गया है, है ना?
पता नहीं जब हरियाणा में सुभाष बराला के बेटे पर वर्णिका कुंडू को छेड़ने का आरोप लगा तो ये माननीय विधायक जी कहां सो रहे थे? या सिर्फ ऐतिहासिक नारियों के ही मान सम्मान पर इनकी आंख खुलती हैं। सब मानते है सात सौ साल पहले जो खिलजी रानी पद्मावती को जबरन पाने की कोशिश में लगा था, वह गलत था। पर ये आधुनिक खिलजी कहां तक सही हैं जो आए दिन देश में बहन-बेटियों को हड़पने की कोशिश में लगे हैं?
असल में भारत के इतिहास में अनेक त्रासदी खंड हैं और उनसे निकले अनेक नायक महानायक भी हैं। पर सच यह भी है कि बिना खिलजी के रानी पद्मावती का इतिहास नहीं पढ़ाया जा सकता, बिना अकबर के महाराणा का इतिहास भी अधूरा ही रहेगा। शिवाजी की वीरता का थाल भी मुस्लिम आक्रान्ताओं के बिना नहीं सज सकता। चौहान हो या गौरी, यह सब इसी इतिहास का भाग हैं और इतिहास यह है कि बर्बर सुल्तान ने चित्तौड़ को घेर लिया था, जिस कारण राणा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मावती को आग में कूदना पड़ा था। यह सब इतिहास के सत्य हैं पर फिल्म और राजनीति का बाज़ार तो इतिहास के बजाय अपना फायदा देखता है ना?
नारी शक्ति के मान अपमान पर यदि कलम घिसें तो इसी माह भारतीय महिला हाकी टीम ने जापान के काकामिगाहारा में टूर्नामेंट के फाइनल में चीन को हराकर एशिया कप जीता था। इसके बाद टीम की प्रत्येक सदस्य को एक-एक लाख रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की गई। मतलब देश का नाम ऊंचा करने वाली बेटियों को एक लाख और सर काटने वालों को 10 करोड़ और जीभ काटने वाले को 21 लाख!! अब बताइए युवा कौन सा करियर चुने?
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